देश के केवल 66 प्रतिशत ज़िले मैला ढोने की प्रथा से मुक्त: सरकार

केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय द्वारा जारी डेटा के मुताबिक देश के कुल 766 ज़िलों में से सिर्फ 508  ने ही ख़ुद को मैला ढोने (मैनुअल स्केवेंजिंग) से मुक्त घोषित किया है. देश में पहली बार 1993 में इस प्रथा पर प्रतिबंध लगाया गया था. बाद में 2013 में क़ानून बनाकर इस पर पूरी तरह से बैन लगाया गया.

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(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय द्वारा जारी डेटा के मुताबिक देश के कुल 766 ज़िलों में से सिर्फ 508  ने ही ख़ुद को मैला ढोने (मैनुअल स्केवेंजिंग) से मुक्त घोषित किया है. देश में पहली बार 1993 में इस प्रथा पर प्रतिबंध लगाया गया था. बाद में 2013 में क़ानून बनाकर इस पर पूरी तरह से बैन लगाया गया.

(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: मैला ढोने की प्रथा को प्रतिबंध करने और सरकार के तमाम दावों के बावजूद देशभर में ऐसी मौतें जारी हैं. हालांकि इससे जुड़ी मौतों की जानकारी होने से सरकार इनकार कर चुकी है. अब सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने कहा है कि देश में केवल 66 प्रतिशत जिले मैला ढोने की प्रथा से मुक्त हैं.

सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने हाल के वर्षों में कहा है कि देश में मैला ढोने की प्रथा को समाप्त कर दिया गया है, बाकी खतरा ‘सीवर और सेप्टिक टैंकों की खतरनाक सफाई’ है.

द हिंदू के रिपोर्ट के मुताबिक, केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा जारी डेटा के मुताबिक देश के कुल 766 जिलों में से सिर्फ 508 जिलों ने ही खुद को मैला ढोने से मुक्त घोषित किया है.

सामाजिक न्याय मंत्रालय ने पिछले दो वर्षों में लगभग हर संसद सत्र में कहा है कि देश भर में मैला ढोने की प्रथा से कोई मौत नहीं हो रही है. इन मौतों के लिए ‘सीवर और सेप्टिक टैंक की खतरनाक सफाई’ को जिम्मेदार ठहराया गया है.

रिपोर्ट के मुताबिक, मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों ने हाथ से मैला ढोने और खतरनाक तरीके से सीवरों की सफाई के मामलों को अलग किया है. इसमें बताया गया है कि 2013 और 2018 में किए गए सर्वे में सभी हाथ से मैला ढोने वालों (लगभग 58,000) की पहचान की गई थी और अब देश में हाथ से मैला ढोने की प्रथा मौजूद नहीं है.

हालांकि, मंत्रालय ने अपनी उपलब्धियों की पुस्तिका जारी करते हुए उनमें से एक उपलब्धि के रूप में दर्ज किया है- ‘508 जिलों ने खुद को मैला ढोने से मुक्त घोषित बताया है.’

सामाजिक न्याय मंत्री वीरेंद्र कुमार ने एक सवाल कि अन्य जिलों ने खुद को मैला ढोने से मुक्त क्यों नहीं घोषित किया, के जवाब में कहा, ‘राज्यों, नगर निकायों से जो भी जानकारी मिली है – सभी ने कहा है कि अब मैला ढोने की प्रथा नहीं होती है. उन सभी ने सामूहिक रूप से 58,000 से अधिक मैला ढोने वालों की पहचान की है, उनमें जिन लोगों ने अपने दम पर कुछ और करने का फैसला किया है, हम उन्हें कौशल प्रशिक्षण केंद्रों से जोड़ रहे हैं.’

रिपोर्ट के मुताबिक, मैला ढोने वालों के पुनर्वास योजना के अनुसार, 58,000 चिह्नित सीवर कर्मचारियों को प्रत्येक को 40,000 रुपये का एकमुश्त नकद भुगतान दिया गया है. इसके अलावा उनमें से लगभग 22,000 (आधे से भी कम) कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रमों से जुड़े हुए हैं. यदि उनमें से कोई भी व्यक्ति जो अपना खुद का व्यवसाय स्थापित करना चाहता है, उसे सब्सिडी और ऋण उपलब्ध हैं.

आगे वीरेंद्र कुमार ने कहा, ‘हम हाथ से मैला ढोने से होने वाली मौतों को शून्य करना चाहते हैं.’

हालांकि, सीवर कार्य के 100 प्रतिशत मशीनीकरण के लिए मैला ढोने वालों के पुनर्वास योजना को अब नमस्ते योजना के साथ जोड़ दिया गया है. वित्त वर्ष 2023-24 के केंद्रीय बजट में पुनर्वास योजना के लिए कोई आवंटन नहीं दिखाया गया और नमस्ते योजना के लिए 100 करोड़ का आवंटन किया गया.

मशीनीकरण की इस योजना पर मंत्री ने कहा कि अन्य मंत्रालयों के साथ सहयोग चल रहा है और वर्तमान चरण में अधिकांश काम आवास एवं शहरी मामलों का मंत्रालय कर रहा है.

मंत्रालय के अनुसार, इस योजना के दिशानिर्देशों को अभी अंतिम रूप दिया जाना बाकी है.

गौरतलब है कि दिसंबर 2021 में केंद्र सरकार ने संसद में जानकारी दी थी कि देश में 58,098 हाथ से मैला ढोने वाले हैं और उनमें से 42,594 अनुसूचित जाति के हैं.

सरकार ने कहा था कि देश में इन पहचानशुदा 43,797 लोगों में से 42,594 अनुसूचित जातियों से हैं, जबकि 421 अनुसूचित जनजाति से हैं. कुल 431 लोग अन्य पिछड़े वर्ग से हैं, जबकि 351 अन्य (Others) श्रेणी से हैं.

मालूम हो कि देश में पहली बार 1993 में मैला ढोने की प्रथा पर प्रतिबंध लगाया गया था. इसके बाद 2013 में कानून बनाकर इस पर पूरी तरह से बैन लगाया गया. हालांकि आज भी समाज में मैला ढोने की प्रथा मौजूद है.

मैनुअल स्कैवेंजिंग एक्ट 2013 के तहत किसी भी व्यक्ति को सीवर में भेजना पूरी तरह से प्रतिबंधित है. अगर किसी विषम परिस्थिति में सफाईकर्मी को सीवर के अंदर भेजा जाता है तो इसके लिए 27 तरह के नियमों का पालन करना होता है. हालांकि इन नियमों के लगातार उल्लंघन के चलते आए दिन सीवर सफाई के दौरान श्रमिकों की जान जाती है.