नए संसद भवन में स्थापित सेंगोल पहले लॉर्ड माउंटबेटन को दिए जाने के दावे पर संशय जताते हुए ‘तिरुववदुथुरई अधीनम’ के प्रमुख ने कहा, ‘उन्हें सेंगोल देने का क्या अर्थ था? आख़िर वे सभी शक्तियां सौंपते हुए भारत छोड़कर जा रहे थे.’
नई दिल्ली: तमिलनाडु के मइलादुथुराई जिले में स्थित शैव मठ ‘तिरुववदुथुरई अधीनम’ के प्रमुख ने कहा है कि इस बारे में कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है कि भारत की स्वतंत्रता की पूर्व संध्या पर पंडित जवाहरलाल नेहरू को सौंपे जाने से पहले सेंगोल (राजदंड) को भारत के अंतिम वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन के सामने पेश किया गया था.
इसी मठ के द्वारा सेंगोल पंडित नेहरू को भेंट किया गया था.
बीते 28 मई को नए संसद भवन के उद्घाटन समारोह के दौरान इसे यहां स्थापित करने से पूर्व केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने दावा किया था कि ‘सेंगोल’ नामक स्वर्ण राजदंड 15 अगस्त, 1947 को सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के तौर पर ब्रिटिश भारत के अंतिम वायसरॉय लॉर्ड माउंटबेटन ने भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को सौंपा था.
हालांकि तमाम विशेषज्ञों ने सरकार के इस दावे को खारिज किया है.
द हिंदू अखबार के साथ एक इंटरव्यू में तिरुववदुथुरई अधीनम के 24वें प्रमुख श्री ला श्री अंबालावन देसिका परमाचार्य स्वामीगल ने कहा, ‘इस बारे में कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है. मैंने सुना है कि उस घटना के संबंध में एक लघु फिल्म जारी की गई थी. कुछ लोग कहते हैं कि सेंगोल लॉर्ड माउंटबेटन को दिया गया था. उस जमाने के लोग भी यही कहते हैं.’
उनकी प्रतिक्रिया एक स्पष्ट सवाल पर थी कि क्या अधीनम के पास सबूत है कि 14 अगस्त, 1947 को नेहरू को पेश करने से पहले सेंगोल को माउंटबेटन को दिया गया था.
यह पूछे जाने पर कि क्या यह साबित करने के लिए दस्तावेजी साक्ष्य हैं कि सेंगोल केवल नेहरू को प्रस्तुत किया गया था, न कि माउंटबेटन को, अधीनम प्रमुख ने कहा, ‘लॉर्ड माउंटबेटन को सेंगोल देने का क्या फायदा था? आखिरकार वह सभी शक्तियों को सौंप कर भारत छोड़ रहे थे. यह नेहरू थे, जो उस दिन सबसे ज्यादा मायने रखते थे.’
भारत सरकार ने मई में दावा किया था कि अधीनम ने ब्रिटेन से भारत में ‘सत्ता के हस्तांतरण’ को दर्शाने के लिए एक सुनहरा राजदंड पेश किया था. केंद्र सरकार द्वारा साझा किए गए डॉकेट में प्रस्तुत अनुबंध 4 में तिरुववदुथुरई अधीनम द्वारा प्रस्तुत ‘सेंगोल के महत्व’ पर एक तमिल प्रतिलेख (Transcript) शामिल किया गया था.
बिना किसी स्रोत (प्रमाण) के इस ट्रांसस्क्रिप्ट में दावा किया गया है कि राजदंड माउंटबेटन को अधीनम द्वारा भेजे गए एक प्रतिनिधिमंडल द्वारा दिया गया था. बाद में इसे गंगा जल छिड़ककर शुद्ध किया गया और फिर नेहरू को सौंप दिया गया.
रिपोर्ट के अनुसार, 26 मई को जब हिंदू ने इस ट्रांसस्क्रिप्ट के बारे में अधीनम के एक प्रतिनिधि से पूछा था तो उन्होंने कहा था कि यह 1947 और 1950 में विशेष स्मारिका में छापा गया था, जिसे अधीनम द्वारा प्रकाशित किया गया था और जो इसके रिकॉर्ड में उपलब्ध थे.
हालांकि, बीते बृहस्पतिवार को इन दो स्मृति चिह्नों के बारे में पूछे जाने पर अधीनम प्रमुख ने कहा, ‘हम स्मृति चिह्नों का पता नहीं लगा सके. हम नहीं जानते कि वे कहां हैं. नेहरू को सेंगोल भेंट किए हुए 75 वर्ष बीत चुके हैं. (इस दौरान) इतिहास पर एक नजर डालने का प्रयास किसी ने नहीं किया.’
उन्होंने आगे कहा, ‘साल 2022 में राष्ट्रीय ध्वज फहराने के बाद हमने सेंगोल को पेश करने की ऐतिहासिक घटना को फिर से दर्शाने के लिए कदम उठाए. हमने हाल ही में एक स्मारिका भी जारी की. उस जमाने में ज्यादा तस्वीरें नहीं हुआ करती थीं और तस्वीरें (खींचना) दुर्लभ ही हुआ करती थीं. हालांकि, हम उनकी तलाश कर रहे हैं. दिल्ली में इसके बारे में एक अभिलेख के होने के बारे में बताया जाता है. यह यूट्यूब पर उपलब्ध है.’
जब उन्हें बताया गया कि ऐसा प्रतीत होता है कि इस दावे का कोई सबूत नहीं है कि इस राजदंड को ‘सत्ता के हस्तांतरण’ के प्रतीक के रूप में माना जाता है, तो उन्होंने सहमति व्यक्त की और कहा, ‘हां, हमने नहीं देखा कि हमारा देश कब आजाद हुआ. हमने (मठ) ने 1947 में राजदंड दिया था. तब से कई साल बीत चुके हैं. हम इतिहास के माध्यम से राजदंड सौंपने को देखते हैं. पाठ्यपुस्तकों में इसका उल्लेख होना चाहिए था, लेकिन यह पाठ्यपुस्तकों का हिस्सा नहीं था. यह भ्रम का मुख्य कारण है. यदि पाठ्यपुस्तकों में इसका उल्लेख किया गया होता तो यह महत्वपूर्ण घटना सभी को पता चल सकती थी.’
उन्होंने कहा कि अधीनम के पास यह साबित करने के लिए दस्तावेज और तस्वीरें हैं कि राजदंड नेहरू को दिया गया था, यह एक ऐसा मुद्दा जिस पर कोई विवाद नहीं है.
उनके अनुसार, कई लोगों को नेहरू को सेंगोल भेंट किए जाने की जानकारी नहीं थी. तब हमने इसके बारे में तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि और केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण लिखा था. हाल ही में जब आरएन रवि ने तिरुववदुथुरई अधीनम मठ का दौरा किया, तो उन्होंने राजदंड सौंपने के बारे में पूछताछ की थी.
अधीनम प्रमुख के अनुसार, हमने हाल ही में शास्त्र विश्वविद्यालय के माध्यम से ‘थुरासई स्पेक्ट्रे इन इंडियाज इंडिपेंडेंस’ पर एक पुस्तक का विमोचन किया. हमें बहुत अच्छा लग रहा है कि तमिलनाडु के सभी शैव मठों के प्रमुखों की उपस्थिति में सभी धर्मों की पूजा और अनुष्ठान करने के बाद नए संसद भवन में स्पीकर की कुर्सी के पास यह राजदंड स्थापित किया गया है.