मणिपुर में हिंसा जारी, कथित तौर पर सेना की वर्दी में आए लोगों की गोलीबारी में तीन लोगों की मौत

ताज़ा हिंसा बीते 9 जून को तड़के कांगकपोकपी और इंफाल पश्चिम ज़िले की सीमा पर स्थित एक कुकी बहुल गांव में हुई. आरोप है कि सेना और पुलिस की वर्दी में आए मेईतेई उग्रवादियों ने घटना को अंजाम दिया. इस बीच सीबीआई ने हिंसा की जांच के लिए डीआईजी रैंक के अधिकारी के नेतृत्व में एक एसआईटी का गठन किया है.

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मणिपुर में तैनात सुरक्षा बल. (फोटो साभार: एएनआई)

ताज़ा हिंसा बीते 9 जून को तड़के कांगकपोकपी और इंफाल पश्चिम ज़िले की सीमा पर स्थित एक कुकी बहुल गांव में हुई. आरोप है कि सेना और पुलिस की वर्दी में आए मेईतेई उग्रवादियों ने घटना को अंजाम दिया. इस बीच सीबीआई ने हिंसा की जांच के लिए डीआईजी रैंक के अधिकारी के नेतृत्व में एक एसआईटी का गठन किया है.

मणिपुर में तैनात सुरक्षा बल. (फोटो साभार: एएनआई)

नई दिल्ली: मणिपुर के कांगपोकपी जिले के कुकी गांव में शुक्रवार (9 जून) तड़के ​‘अज्ञात हमलावरों​’ की गोलीबारी में 67 वर्षीय एक महिला समेत 3 लोगों की मौत हो गई.

इस बीच, केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने मणिपुर सरकार द्वारा अधिसूचित जातीय हिंसा के छह मामलों की जांच के लिए एक विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया है. एक उप-महानिरीक्षक (डीआईजी) के नेतृत्व वाली एसआईटी में 10 अधिकारी शामिल होंगे. सीबीआई ने बीते शुक्रवार को जांच अपने हाथ में ली थी.

द हिंदू की एक रिपोर्ट के अनुसार, इंडीजिनस ट्राइबल लीडर्स फोरम (आईटीएलएफ) ने दावा किया कि ​‘सेना और पुलिस की वर्दी में भेष बदलकर आए मेईतेई उग्रवादियों​’ ने कांगकपोकपी और इंफाल पश्चिम जिले की सीमा पर स्थित खोकेन गांव पर हमला किया. पुलिस के पास हमलावरों का कोई सुराग नहीं है.

कांगपोकपी के पुलिस अधीक्षक (एसपी) मनोज प्रभाकर एम. ने द हिंदू को बताया, ​‘सशस्त्र बदमाशों ने कुकी गांव में गोलियां चलाईं, तीन लोग मारे गए, दो अन्य घायल हो गए. हमने अपराधियों की पहचान करने के लिए अभियान शुरू किया है.​’

कांगपोकपी मुख्य रूप से कुकी क्षेत्र है, जबकि इंफाल पश्चिम में मेईतेई लोगों का वर्चस्व है. 3 मई को राज्य में दो समुदायों के बीच जातीय हिंसा भड़कने के बाद से, दोनों समुदायों के वर्चस्व वाले क्षेत्रों की सीमा पर स्थित गांवों में हिंसा बढ़ने की सूचना मिली है.

ताजा गोलीबारी में मारे गए लोगों की पहचान जंगपाओ तौथांग (35 वर्ष), डोमखोहोई हाओकिप (67 वर्ष) और खैमंग गुइते (57 वर्ष) के रूप में हुई है. हाओकिप के पति एक भूतपूर्व सैनिक थे. वह स्थानीय चर्च में प्रार्थना करने गई थीं, जहां उनकी हत्या कर दी गई.

इसके अलावा निजी स्कूल के शिक्षक खुप डौंगेल ने कहा कि पुलिस की वर्दी पहने लगभग 20 लोग सुबह करीब 4:30 बजे खोकेन गांव आए थे.

डौंगेल ने द हिंदू से बातचीत में कहा, जैसे ही हमने गोलियों की आवाज सुनी, हम पास के केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) शिविर पहुंच गए. इस तरह अधिकांश ग्रामीणों को कोई नुकसान नहीं हुआ है. हालांकि चर्च में मौजूद महिला गोलियों की आवाज नहीं सुन सकीं और सशस्त्र मेईतेई समूह ने उन्हें गोली मार दी. अन्य दो व्यक्ति जो मारे गए, वे उस समय खेतों में थे.

उन्होंने कहा कि हमले से दो दिन पहले दोनों समुदायों के बीच गांव में एक शांति बैठक हुई थी और यह फैसला किया गया था कि महिलाओं और बच्चों को निशाना नहीं बनाया जाएगा.

न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, चुराचंदपुर जिले में कुकी और ज़ो जनजातियों समूह इंडीजिनस ट्राइबल लीडर्स फोरम के एक बयान में दावा किया गया है, ‘ग्रामीण हमलावरों की असली पहचान के बारे में नहीं जानते थे. उन्होंने यह मानते हुए कि यह सेना का एक तलाशी अभियान है, उन्हें रास्ता दिया, लेकिन उन्होंने स्वचालित राइफलों से गोलीबारी शुरू कर दी.’

फोरम ने एक बयान में कहा, ​‘उग्रवादियों द्वारा सेना की वर्दी और वाहनों का इस्तेमाल उनके उपकरणों के स्रोत और बाहरी ताकतों की संभावित भागीदारी के बारे में गंभीर सवाल खड़े करता है.​’

बयान में कहा गया है, ​‘यह हमला केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा किए गए 15-दिवसीय शांति आह्वान के लिए मेईतेई उग्रवादियों, अलगाववादी भीड़, अरम्बाई तेंग्गोल और मेईतेई लीपुन जैसे कट्टरपंथी समूहों और मेईतेई-केंद्रित राज्य सरकार द्वारा दिखाई गई घोर अवहेलना का एक और उदाहरण है. इस तरह की कार्रवाइयां केवल शांति के लिए मंत्री के आह्वान को मानने वालों के प्रयासों को कमजोर करने का काम करती हैं.’

बयान में कहा गया है, ‘एक समुदाय के रूप में हम कोई भी आवश्यक कार्रवाई करने के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध हैं. मेईतेई द्वारा किए जा रहे हमलों और कुकी-ज़ो आबादी की जातीय सफाई को रोकने के लिए भले ही हमें बलिदान देने की आवश्यकता हो.​’

सीबीआई ने हिंसा की जांच के लिए एसआईटी गठित, 6 केस दर्ज

केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने मणिपुर में जातीय हिंसा से संबंधित मामलों की जांच के लिए एक उप-महानिरीक्षक (डीआईजी) रैंक अधिकारी के नेतृत्व में एक विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया है.

रिपोर्ट के अनुसार, एसआईटी में 10 अधिकारी शामिल होंगे, जो छह एफआईआर की जांच करेंगे, जिन्हें अब सीबीआई द्वारा फिर से दर्ज किया गया है. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पिछले हफ्ते हिंसा प्रभावित राज्य के अपने दौरे के दौरान सीबीआई जांच की घोषणा की थी.

मालूम हो कि मणिपुर में बीते 3 मई को भड़की जातीय हिंसा लगभग एक महीने से जारी है. बहुसंख्यक मेईतेई समुदाय की एसटी दर्जे की मांग के कारण राज्य में तनाव शुरू हुआ था, जिसे पहाड़ी जनजातियां अपने अधिकारों पर अतिक्रमण के रूप में देखती हैं. हिंसा में लगभग 100 लोगों की जान चली गई है और कई लोग विस्थापित हुए हैं.

मुख्यमंत्री कार्यालय (सीएमओ) द्वारा जारी एक आधिकारिक बयान के अनुसार, घायलों की संख्या 310 है और आगजनी के मामलों की संख्या 4,104 है.

बयान में कहा गया है कि कुल 3,734 एफआईआर दर्ज की गई हैं, जिनमें इंफाल पश्चिम जिले में सबसे ज्यादा 1,257 एफआईआर दर्ज की गई हैं, इसके बाद कांगपोकपी में 932 और बिष्णुपुर में 844 एफआईआर दर्ज की गई हैं.

मालूम हो कि मणिपुर में बीते 3 मई को भड़की जातीय हिंसा लगभग एक महीने से जारी है. बहुसंख्यक मेईतेई समुदाय की एसटी दर्जे की मांग के कारण राज्य में तनाव शुरू हुआ था, जिसे पहाड़ी जनजातियां अपने अधिकारों पर अतिक्रमण के रूप में देखती हैं. इस​ हिंसा के बाद आदिवासी नेता अब अलग प्रशासन की मांग कर रहे हैं.

हिंसा में 100 से अधिक लोग मारे गए हैं और 35,000 से अधिक लोग विस्थापित हुए हैं.

यह मुद्दा एक बार फिर तब ज्वलंत हो गया था, जब मणिपुर हाईकोर्ट ने बीते 27 मार्च को राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि वह मेईतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने के संबंध में केंद्र को एक सिफारिश सौंपे.

ऐसा माना जाता है कि इस आदेश से मणिपुर के गैर-मेईतेई निवासी जो पहले से ही अनुसूचित जनजातियों की सूची में हैं, के बीच काफी चिंता पैदा हो कर दी थी, जिसके परिणामस्वरूप बीते 3 मई को आदिवासी संगठनों द्वारा निकाले गए निकाले गए एक विरोध मार्च के दौरान जातीय हिंसा भड़क उठी.

बीते 17 मई को सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर हाईकोर्ट द्वारा राज्य सरकार को अनुसूचित जनजातियों की सूची में मेईतेई समुदाय को शामिल करने पर विचार करने के निर्देश के खिलाफ ‘कड़ी टिप्पणी’ की थी. शीर्ष अदालत ने इस आदेश को तथ्यात्मक रूप से पूरी तरह गलत बताया था.

मणिपुर में मेईतेई समुदाय आबादी का लगभग 53 प्रतिशत है और ज्यादातर इंफाल घाटी में रहते हैं. आदिवासी, जिनमें नगा और कुकी शामिल हैं, आबादी का 40 प्रतिशत हिस्सा हैं और ज्यादातर पहाड़ी जिलों में रहते हैं, जो घाटी इलाके के चारों ओर स्थित हैं.

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