वर्ष 2017-18 के केंद्रीय बजट में रेलवे सुरक्षा में सुधार के लिए राष्ट्रीय रेल सुरक्षा कोष की स्थापना की गई थी, जिसमें 5 साल की अवधि के लिए एक लाख करोड़ रुपये का प्रावधान था. कैग रिपोर्ट बताती है कि 2017-18 से 2020-21 के बीच इसमें आवंटित धन पूरी तरह ख़र्च नहीं किया गया और बजट में भी कटौती की गई.
नई दिल्ली: रेलवे सुरक्षा में सुधार के लिए 2017 में नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा बनाए गए एक विशेष कोष- राष्ट्रीय रेल सुरक्षा कोष (आरआरएसके) का दुरुपयोग फुट मसाजर, क्रॉकरी, बिजली के उपकरण, फर्नीचर, सर्दियों की जैकेट, कंप्यूटर और एस्केलेटर खरीदने, उद्यान विकसित करने, शौचालय बनाने, वेतन और बोनस का भुगतान करने और झंडा लगाने के लिए किया गया था.
द टेलीग्राफ के मुताबिक, दिसंबर 2022 में नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) द्वारा सौंपी गई भारतीय रेलवे में ट्रेनों के पटरी से उतरने पर एक ऑडिट रिपोर्ट में इसी तरह के विवरण हैं.
रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2017-18 से 2020-21 तक 48 महीने की अवधि से संबंधित चार चुनिंदा महीनों (दिसंबर 2017, मार्च 2019, सितंबर 2019 और जनवरी 2021) में 11,464 वाउचर की एक आकस्मिक ऑडिट जांच और प्रत्येक रेलवे जोन के दो चुने हुए मंडलों को कवर करने पर पता चला कि सुरक्षा के लिए बने कोष के तहत 48.21 करोड़ रुपये के गलत व्यय दर्शाए गए.
योजना का अनावरण 2017-18 के बजट में किया गया था. तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा था, ‘यात्रियों की सुरक्षा के लिए पांच साल की अवधि में 1 लाख करोड़ रुपये के कोष के साथ एक राष्ट्रीय रेल सुरक्षा कोष बनाया जाएगा. सरकार से शुरुआती पूंजी के अलावा रेलवे शेष संसाधनों की व्यवस्था अपने स्वयं के राजस्व और अन्य स्रोतों से करेगा.’
अब एक ट्वीट में कांग्रेस पार्टी ने निंदा करते हुए लिखा, ‘मोदी सरकार धन के दुरुपयोग के मामले में श्रेष्ठ है. कैग रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय रेलवे ने ‘राष्ट्रीय रेल सुरक्षा कोष’ से फुट मसाजर्स, क्रॉकरी, फर्नीचर, कार किराया, लैपटॉप और बहुत कुछ पर फिजूलखर्ची की.’
𝗠𝗼𝗱𝗶 𝗴𝗼𝘃𝘁. 𝗲𝘅𝗰𝗲𝗹𝘀 𝗶𝗻 𝗺𝗶𝘀𝘂𝘀𝗶𝗻𝗴 𝗳𝘂𝗻𝗱𝘀!
According to CAG reports, the Indian Railways spent extravagantly on foot massagers, crockery, furniture, car rentals, laptops & much more from the ‘Rashtriya Rail Sanraksha Kosh’. pic.twitter.com/SEWlVGMNcW
— Congress (@INCIndia) June 8, 2023
कैग की रिपोर्ट भारतीय रेलवे पर 2015 में तैयार किए गए एक श्वेत पत्र की ओर ध्यान आकर्षित करने से शुरू होती है, जिसमें सिफारिश की गई थी कि 1.14 लाख किलोमीटर रेलवे नेटवर्क में 4,500 किलोमीटर पटरियों को सालाना नवीनीकृत किया जाना चाहिए.
यह उन प्रमुख कारणों में से एक था, जिसके कारण आरआरएसके की स्थापना की गई थी.
रिपोर्ट कहती है कि आरआरएसके को हमेशा खराब तरीके से वित्तपोषित किया गया था. मूल शर्तों के तहत हर साल सुरक्षा कोष में 20,000 करोड़ रुपये डाले जाने थे. इसमें से 15,000 करोड़ रुपये की राशि केंद्र से सकल बजटीय सहायता के रूप में आती; शेष 5,000 करोड़ रुपये रेलवे के आंतरिक संसाधनों से आने थे.
चार साल की अवधि में रेलवे को 20,000 करोड़ रुपये जमा करने थे. उनके योगदान में 15,775 करोड़ रुपये या 78.9 प्रतिशत की कमी रह गई.
कैग ने कहा, ‘20,000 करोड़ रुपये के कुल हिस्से में से 15,775 करोड़ रुपये (78.88 प्रतिशत) आंतरिक संसाधनों से जुटाकर देने में रेलवे की असमर्थता ने पूर्ण सुरक्षा प्रदान करने के आरआरएसके के निर्माण के प्राथमिक उद्देश्य को विफल कर दिया है.’
रिपोर्ट में कहा गया है कि अधिकारी अप्रासंगिक चीजों पर पैसा खर्च कर रहे थे. आरआरएसके के तहत गैर-प्राथमिकता वाले कार्यों का हिस्सा 2017-18 में 2.76 प्रतिशत से बढ़कर 2019-20 में 6.36 प्रतिशत हो गया.
2017-18 के केंद्रीय बजट में घोषित आरआरएसके के तहत धन कैसे खर्च किया जाना है, इस पर साफ दिशानिर्देशों की धज्जियां उड़ाते हुए 2019-20 में इस मद में कुल मिलाकर 1,004 करोड़ रुपये खर्च किए गए.
कैग रिपोर्ट में कहा गया है कि गैर-प्राथमिकता वाले कामों पर खर्च की बढ़ती प्रवृत्ति आरआरएसके कोष लाने के ढांचे के मार्गदर्शक सिद्धांतों के खिलाफ है, जो यह तय करता है कि प्राथमिकता-1 के कार्यों को आरआरएसके के तहत पहले पूरा किया जाना चाहिए.
आरआरएसके के तहत प्राथमिकता-1 के कार्य मे सिविल इंजीनियरिंग कार्य, जिसमें ट्रैक नवीनीकरण शामिल है, को वर्गीकृत किया गया है, जिसमें मूल रूप से 1,19,000 करोड़ रुपये का कोष दिया गया, जिसे घटाकर 1 लाख करोड़ रुपये कर दिया गया था.
ऑडिटर ने पाया कि आरआरएसके के तहत व्यय 2017-18 में 81.55 प्रतिशत से घटकर 2019-20 में 73.76 प्रतिशत रह गए. ट्रैक नवीनीकरण कार्यों के लिए धन का आवंटन 2018-19 में 9,607.65 करोड़ रुपये से घटकर 2019-20 में 7,417 करोड़ रुपये हो गया.
ऑडिटर की रिपोर्ट से पता चलता है कि रेलवे उसे प्राप्त धन का भी उपयोग नहीं कर सका. वर्ष 2017-18 में सात रेलवे जोन ने 299 करोड़ रुपये की राशि सरेंडर की. इसी तरह, वर्ष 2018-19 में नौ रेलवे जोन ने 162.85 करोड़ रुपये की राशि सरेंडर की.
ऑडिट रिपोर्ट के अनुसार, 2017-18 और 2020-21 के बीच देश भर में हुईं 217 प्रमुख ट्रेन दुर्घटनाओं में से चार में से लगभग तीन घटनाएं ट्रेन के पटरी से उतरने के कारण हुईं थीं.
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘16 क्षेत्रीय रेलवे (क्षेत्रीय रेलवे) और 32 मंडलों में हुईं 1,392 पटरी से उतरने की दुर्घटनाओं की 1129 ‘जांच रिपोर्ट’ (81 प्रतिशत) के विश्लेषण से पता चला है कि पटरी से उतरने के चुनिंदा मामलों में 33.67 करोड़ रुपये की संपत्ति की कुल हानि हुई है.
ऑडिट में 1129 मामलों/दुर्घटनाओं में ट्रेन के पटरी से उतरने के 23 कारकों को जिम्मेदार ठहराया गया है, जिनमें सबसे प्रमुख कारण ट्रैक के रखरखाव (167) से संबंधित है. 144 मामले खराब ड्रायविंग/ओवर स्पीड के हैं.
रिपोर्ट कहती है, ‘2017-21 के दौरान पटरी से उतरने की कुल घटनाओं में से 26 फीसदी घटनाएं (289) ट्रैक नवीनीकरण से जुड़ी थीं.’
मालूम हो कि ओडिशा के बालासोर जिले में बीते 2 जून को हुई तीन ट्रेनों की भयानक टक्कर में लगभग 290 यात्रियों के मारे जाने के कुछ घंटों बाद ही रेलवे ने पुष्टि की थी कि उक्त रेल मार्ग पर ‘कवच’ प्रणाली नहीं थी, जो एक्सप्रेस ट्रेनों को आपस में टकराने से रोक सकती थी.
दुर्घटना में विश्वेश्वरैया (बेंगलुरु)-हावड़ा सुपरफास्ट एक्सप्रेस (ट्रेन नंबर 12864), शालीमार-चेन्नई सेंट्रल कोरोमंडल एक्सप्रेस (ट्रेन नंबर 12841) और एक मालगाड़ी शामिल थीं.