केंद्रीय गृह मंत्रालय ने मणिपुर में विभिन्न जातीय समूहों के बीच शांति स्थापित करने के लिए एक समिति का गठन किया था. राज्यपाल अनुसुइया उइके इसकी अध्यक्षता करेंगी, जिसमें मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह भी शामिल हैं. कुकी नेताओं ने कहा कि वे इसका बहिष्कार करेंगे, क्योंकि इसमें मुख्यमंत्री और उनके समर्थक शामिल हैं.
नई दिल्ली: केंद्र द्वारा मणिपुर में एक शांति समिति गठित करने के एक दिन बाद अधिकांश कुकी नेताओं ने कहा कि वे इसका बहिष्कार करेंगे, क्योंकि इसमें मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह और उनके समर्थक शामिल हैं.
उनके अनुसार, उन्हें समिति में शामिल करने के लिए उनकी सहमति नहीं ली गई थी. उन्होंने मांग की कि केंद्र बातचीत के लिए अनुकूल स्थिति बनाए.
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, कुकी समूहों के कई प्रतिनिधियों ने रविवार को कहा कि वे इस बात से खुश नहीं हैं कि उन्हें उनकी सहमति के बिना समिति में शामिल किया गया है. उन्होंने कहा कि राज्य सरकार और मुख्यमंत्री पर सब कुछ छोड़ने के बजाय केंद्र को समिति का हिस्सा होना चाहिए.
समिति के लिए गृह मंत्रालय द्वारा नामित लोगों में से 25 बहुसंख्यक मेईतेई समुदाय से हैं, 11 कुकी समूहों से संबंधित हैं और 10 नगा समुदाय से हैं. मुस्लिम और नेपाली समुदायों का प्रतिनिधित्व क्रमश: तीन और दो सदस्यों द्वारा किया जाएगा.
शांति समिति मणिपुर में जारी हिंसा को शांत करने उपायों की एक कवायद का हिस्सा है, जिसमें एक न्यायिक जांच समिति भी शामिल है, जिसकी घोषणा केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने मणिपुर की अपनी चार दिवसीय यात्रा (29 मई से 1 जून) के अंत में की थी.
बीते 10 जून को गृह मंत्रालय ने मणिपुर में विभिन्न जातीय समूहों के बीच शांति प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाने के लिए एक समिति का गठन किया था. राज्यपाल अनुसुइया उइके 51 सदस्यीय इस समिति की अध्यक्षता करेंगी, जिसमें मुख्यमंत्री सिंह भी शामिल हैं.
इनके अलावा राज्य के कुछ मंत्रियों, सांसदों, विधायकों और विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं को भी इसमें शामिल किया गया है.
समिति में नागरिक समाज का प्रतिनिधित्व मणिपुर विश्वविद्यालय के दो सेवानिवृत्त प्रोफेसर, बार काउंसिल ऑफ मणिपुर के अध्यक्ष, पांच सामाजिक कार्यकर्ता और सेवानिवृत्त सरकारी अधिकारी करेंगे. समिति में पूर्व पुलिस महानिदेशक पी. डोंगल को भी शामिल किया गया है.
द हिंदू की एक रिपोर्ट के अनुसार, समिति के सदस्य बनाए गए कई लोगों ने खुलासा किया कि उन्हें उनकी सहमति के बिना इसमें जोड़ा गया है. ऐसे ही एक सदस्य कुकी इन्पी मणिपुर (केआईएम) के अध्यक्ष अजांग खोंगसाई ने कहा कि वह शांति वार्ता के लिए मणिपुर सरकार के साथ नहीं बैठ पाएंगे.
खोंगसाई ने द हिंदू से बातचीत में कहा, ‘समिति में सीओसीओएमआई (COCOMI – इंफाल का नागरिक समाज समूह ‘कोऑर्डिनेटिंग कमेटी ऑन मणिपुर इंटिग्रीटि’) शामिल है, जिसने कुकी समुदाय के खिलाफ युद्ध की घोषणा की है. हम शांति चाहते हैं, लेकिन इस महत्वपूर्ण मोड़ पर, जब हिंसा जारी है, हम मणिपुर सरकार के साथ बातचीत नहीं कर सकते.’
भारतीय रक्षा लेखा सेवा (आईडीएएस) से रिटायर जे. लुंगदिम ने भी कहा कि उनका नाम उनकी सहमति के बिना शांति समिति में शामिल किया गया है.
2020 में सेवानिवृत्त हुए लुंगदिम ने कहा, ‘2016 में मुझे हथियारों के सौदे को अंतिम रूप देने के लिए रूस भेजा गया था. 37 साल सरकार की सेवा करने के बाद मुख्यमंत्री द्वारा हमें विदेशी कहा जा रहा है. समिति का नेतृत्व केंद्र सरकार के अधिकारियों द्वारा किया जाना चाहिए, अन्यथा यह फलदायी नहीं होगा. यह शर्म की बात है कि यह मुद्दा एक महीने से अधिक समय से लटका हुआ है.’
रिपोर्ट के अनुसार, केंद्र द्वारा गठित शांति समिति में मणिपुर के पूर्व पुलिस महानिदेशक पी. डोंगेल भी शामिल हैं, जिन्हें ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटी (ओएसडी) गृह के रूप में यहां भेजा गया है. यह पद बीते 1 जून को रातोंरात बनाया गया था. कुकी समुदाय से आने वाले डोंगेल इस महीने सेवानिवृत्त होने वाले हैं. उन्हें 3 मई को राज्य में जातीय हिंसा भड़कने के बाद से दरकिनार कर दिया गया था.
मणिपुर के आदिवासी मंत्री नेमचा किपगेन भी समिति के सदस्य हैं. द हिंदू के अनुसार, वह इस संबंध में किसी टिप्पणी के लिए उपलब्ध नहीं हो सकीं.
राजधानी इंफाल में रहने वाले ऑल मणिपुर यूनाइटेड क्लब्स ऑर्गनाइजेशन (एएमयूसीओ) के अध्यक्ष नंदो लुवांग ने कहा कि उन्हें समिति में अपना नाम शामिल किए जाने की जानकारी नहीं थी, लेकिन उन्होंने इसे एक सकारात्मक कदम के रूप में देखा.
उन्होंने कहा, ‘समिति के अन्य सदस्यों के साथ चर्चा करने के बाद बैठक में भाग लेने पर अंतिम निर्णय लेंगे.’
प्रख्यात रंगमंच कलाकार रतन थियाम, जिन्होंने 10 जून को इंफाल में केंद्र की पहल पर सवाल उठाते हुए विरोध प्रदर्शन किया था, भी इस समिति में शामिल हैं.
सांस्कृतिक भाईचारे पर समन्वय समिति द्वारा आयोजित विरोध प्रदर्शन में थियाम ने सवाल किया थ्रर कि जब राज्य में पूरी तरह से अव्यवस्था थी तो प्रधानमंत्री चुप क्यों थे.
बीते 3 मई से कुकी और मेईतेई समुदायों के बीच भड़की जातीय हिंसा में अब तक 100 से अधिक लोग मारे गए हैं. लगभग 50,000 लोग विस्थापित हुए हैं और पुलिस शस्त्रागार से 4,000 से अधिक हथियार लूटे या छीन लिए गए हैं.
गृह मंत्री ने कहा कि समिति का जनादेश राज्य के विभिन्न जातीय समूहों के बीच शांति प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाने के लिए होगा, जिसमें शांतिपूर्ण वार्ता और परस्पर विरोधी दलों/समूहों के बीच बातचीत शामिल है.
इंडिजिनस ट्राइबल लीडर्स फोरम (आईटीएलएफ) ने कहा कि संगठन ने क्षेत्र में ऐसी किसी भी शांति समिति के गठन से पहले सामान्य स्थिति की आवश्यकता को दृढ़ता से दोहराया है.
फोरम ने कहा, ‘शांति की तत्काल आवश्यकता को दोहराते हुए संगठन शांति समिति में वर्तमान हिंसा के लिए जिम्मेदार मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह को शामिल करने की कड़ी निंदा करता है.’
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, आईटीएलएफ के गिन्ज़ा वुलज़ोंग ने एक बयान में कहा, ‘ऐसी शांति समिति कुकी-आदिवासी गांवों के लिए एक निश्चित अवधि के लिए सामान्य स्थिति और सुरक्षा की स्थिति के बाद ही केंद्र सरकार द्वारा बनाई जानी चाहिए. वर्तमान में 160 से अधिक कुकी-ज़ो गांवों को जला दिया गया है और मेईतेई उग्रवादियों के लगातार हमले जारी हैं.’
मणिपुर में नगाओं की सर्वोच्च नागरिक संस्था ‘यूनाइटेड नगा काउंसिल’ के पूर्व अध्यक्ष एल. अदिनो माओ ने कहा कि उन्हें सोशल मीडिया के माध्यम से पैनल में उन्हें ‘शामिल’ किए जाने की जानकारी मिली और उनसे इस बारे में ‘परामर्श नहीं किया गया’.
उन्होंने कहा, ‘शांति समिति में मेरी नियुक्ति के बारे में मुझे अभी तक कोई आधिकारिक सूचना नहीं मिली है.’
मेईतेई संगठन ऑल मणिपुर यूनाइटेड क्लब ऑर्गनाइजेशन (एएमयूसीओ) के अध्यक्ष पीएच नंदो लुवांग ने फोन पर कहा कि शांति समिति का गठन एक ‘सकारात्मक कदम’ है.
उन्होंने कहा, ‘मुझे आज गृह विभाग द्वारा सूचित किया गया कि मैं शांति समिति का सदस्य हूं. आने वाले दिनों में समिति के अध्यक्ष द्वारा बैठक बुलाए जाने के बाद चीजें स्पष्ट हो जाएंगी.’