कोर्ट सीबीएसई के दो भाइयों के कक्षा 10 और कक्षा 12 के बोर्ड प्रमाणपत्रों पर उनके पिता का सरनेम बदलने से मना करने के ख़िलाफ़ याचिका सुन रहा था. इसमें कहा गया था कि उनके पिता ने अपना सरनेम ‘मोची’ से बदलकर ‘नायक’ किया, क्योंकि उन्हें सरनेम के आधार पर जातिगत दुराग्रहों का सामना करना पड़ रहा था.
नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने हाल ही में कहा कि कोई भी व्यक्ति अपना सरनेम बदलने का हकदार है ताकि किसी जाति विशेष के साथ उसकी पहचान न हो ‘जो किसी तरह के पूर्वाग्रह का कारण बन सकता है’. अदालत ने कहा कि संविधान सभी को सम्मान के साथ जीने और जातिवाद से बंधे नहीं रहने का का अधिकार देता है.
रिपोर्ट के अनुसार, उच्च न्यायालय केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) द्वारा कक्षा 10वीं और कक्षा 12वीं के बोर्ड प्रमाणपत्रों पर अपने पिता का सरनेम बदलने से इनकार करने के खिलाफ दो भाइयों द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रहा था.
उन्होंने अदालत को बताया कि उनके पिता ने अपना सरनेम ‘मोची’ से बदलकर ‘नायक’ कर लिया था, क्योंकि उनके सरनेम के आधार पर उनको रोजाना जातिगत दुराग्रहों का सामना करना पड़ रहा था.’
उन्होंने जोड़ा कि इसके लिए पिता ने अपना सरनेम बदलने के बारे में अख़बार में एक नोट प्रकाशित करवाया था और इसे बाद में राजपत्रित अधिसूचना के माध्यम से अधिसूचित किया गया. इसके बाद आधार कार्ड, पैन कार्ड और मतदाता पहचान पत्र जैसे सभी दस्तावेजों में भी उनका सरनेम ‘नायक’ दिखाने के लिए संशोधन किया गया.
उनके बेटों ने सीबीएसई के बोर्ड प्रमाणपत्रों में पिता का सरनेम बदलने के लिए आवेदन किया था. लेकिन सीबीएसई ने आवेदन को खारिज कर दिया, जिसके बाद उन्होंने दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका दायर की.
सीबीएसई ने उच्च न्यायालय के समक्ष तर्क दिया कि याचिकाकर्ताओं के सरनेम में परिवर्तन से ‘याचिकाकर्ताओं की जाति में परिवर्तन होगा, जिसका दुरुपयोग किया जा सकता है.’
लाइव लॉ के अनुसार, सीबीएसई ने यह भी दावा किया कि याचिकाकर्ता अपने पिता के नाम में बदलाव की मांग कर रहे हैं, जो स्कूल के रिकॉर्ड से परे है और इसकी अनुमति नहीं है.’
जस्टिस मिनी पुष्करणा ने 19 मई को पारित एक आदेश में कहा कि सीबीएसई द्वारा नाम बदलने के अनुरोध को अस्वीकार करना पूरी तरह से अनुचित है.
आदेश में कहा गया है, ‘यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि याचिकाकर्ताओं को एक पहचान रखने का पूरा अधिकार है जो उन्हें समाज में एक सम्मानजनक पहचान देता है. यदि याचिकाकर्ताओं को उनके सरनेम के कारण कोई नुकसान हुआ है और इसके कारण सामाजिक पूर्वाग्रहों का सामना करना पड़ा है, तो वे निश्चित रूप से अपनी पहचान बदलने के हकदार हैं जो सामाजिक संरचना में याचिकाकर्ताओं को सम्मान प्रदान करता है.’
आदेश में कहा, ‘पहचान का अधिकार भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार का एक आंतरिक हिस्सा है. इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता है कि जीवन के अधिकार में सम्मान के साथ जीने का अधिकार शामिल है, जिसमें किसी भी जातिवाद से बंधा नहीं होना शामिल है, जिसका सामना किसी व्यक्ति को उस जाति के कारण करना पड़ सकता है जिससे वह संबंधित है. इस प्रकार, यदि कोई व्यक्ति अपना सरनेम बदलना चाहता है, ताकि किसी विशेष जाति के साथ उसकी पहचान न हो, जो किसी भी तरह से ऐसे व्यक्ति के लिए पूर्वाग्रह का कारण बने, तो इसकी अनुमति है.’
न्यायाधीश ने कहा, ‘यदि सरकारी एजेंसियों द्वारा जारी किए गए सार्वजनिक दस्तावेजों में सरनेम में परिवर्तन किया गया है, तो 10वीं और 12वीं के सीबीएसई प्रमाणपत्रों में समान परिवर्तन की अनुमति न देने का कोई औचित्य नहीं है.’
सीबीएसई की ओर से उठाई गई चिंताओं कि बदले गए नाम का दुरुपयोग किया जा सकता है, को दूर करने के लिए अदालत ने स्पष्ट किया कि प्रमाणपत्रों पर सरनेम में बदलाव केवल उनके पिता के नाम में परिवर्तन होगा. उक्त परिवर्तन से याचिकाकर्ताओं की जाति में परिवर्तन नहीं होगा.