मणिपुर: आदिवासी फोरम ने राज्यपाल को पत्र लिखकर मेईतेई और कुकी को ‘अलग करने’ की मांग की

मणिपुर के एक जनजातीय समूह इंडिजिनस ट्राइबल लीडर्स फोरम ने राज्यपाल अनुसुइया उइके को पत्र लिखकर कहा है कि राज्य में जारी हिंसा का एकमात्र समाधान मेईतेई और कुकी-जो समुदायों को पूरी तरह से अलग करना है क्योंकि दोनों समुदायों के बीच 'जातीय मतभेद और अविश्वास' समझौते से परे जा चुका है.

मणिपुर में लगा अलग प्रशासन की मांग का एक बैनर. (फोटो: द वायर)

मणिपुर के एक जनजातीय समूह इंडिजिनस ट्राइबल लीडर्स फोरम ने राज्यपाल अनुसुइया उइके को पत्र लिखकर कहा है कि राज्य में जारी हिंसा का एकमात्र समाधान मेईतेई और कुकी-जो समुदायों को पूरी तरह से अलग करना है क्योंकि दोनों समुदायों के बीच ‘जातीय मतभेद और अविश्वास’ समझौते से परे जा चुका है.

मणिपुर में लगा अलग प्रशासन की मांग का एक बैनर. (फोटो: द वायर)

नई दिल्ली: इंडिजिनस ट्राइबल लीडर्स फोरम (आईटीएलएफ) ने मणिपुर की राज्यपाल अनुसुइया उइके को पत्र लिखकर कहा है कि राज्य में 3 मई से जारी हिंसा का एकमात्र समाधान मेईतेई और कुकी-जो समुदायों को पूरी तरह से अलग करना है क्योंकि दोनों समुदायों के बीच ‘जातीय मतभेद और अविश्वास’ समझौते से परे जा चुका है.

रिपोर्ट के अनुसार, यह फोरम, जो खुद को मणिपुर के लमका जिले की मान्यता प्राप्त जनजातियों का समूह बताता है, ने कहा कि कुकी-ज़ो समुदाय ‘मेईतेई और मणिपुर की सांप्रदायिक सरकार द्वारा जातीय सफाई अभियान (एथनिक क्लींजिंग) के परिणामस्वरूप’ चुनौतीपूर्ण समय का सामना कर रहे हैं.

ज्ञात हो कि राज्य में तीन मई से जातीय संघर्ष जारी है. इसकी वजह यह है कि मणिपुर में बहुसंख्यक मेईतेई अनुसूचित जनजाति के दर्जे की मांग कर रहे हैं, जिसका आदिवासी समुदायों द्वारा विरोध किया जा रहा है.

फोरम के पत्र में उल्लेख किया गया है कि 40 दिनों से अधिक समय से चल रही हिंसा में 160 गांवों में 4,500 घरों को जला दिया गया है, जिससे लगभग 36,000 लोग बेघर हो गए हैं. उन्होंने यह भी जोड़ा, ‘253 चर्चों को जला दिया गया था और हमारे हजारों लोग [कुकी-ज़ो समुदाय के] देश भर में विभिन्न स्थानों पर जा रहे हैं.’

फोरम ने कहा कि अगर राज्यपाल राहत केंद्रों में जाकर विस्थापित लोगों से बातचीत करती हैं, तो उन्हें एक नया नजरिया मालूम चलेगा और आदिवासी समुदायों की दुर्दशा के बारे में जानकारी मिलेगी.

मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह और उनके ‘कट्टर समर्थकों’ पर सरकार को आदिवासी समुदायों के प्रति ‘असहिष्णु’ होने को मजबूर करने का आरोप लगाते हुए आईटीएलएफ ने कहा कि कुकी-ज़ो लोगों और क्षेत्रों पर मेईतेई मिलिशिया द्वारा किए गए हमले मणिपुर पुलिस कमांडो, आईआरबी और एमआर कर्मियों जैसे सांप्रदायिक ‘सरकारी’ बलों के ‘सरकारी मार्गदर्शन’ में किए जा रहे हैं.

फोरम ने यह भी दावा किया कि कुकी-ज़ो समुदाय के जो वालंटियर्स मेईतेई मिलिशिया द्वारा हमलों के ‘खिलाफ लाइसेंस और पारंपरिक हथियारों का उपयोग कर रहे हैं, मणिपुर सरकार द्वारा ‘कट्टरपंथी’ और ‘आतंकवादी’ बताया जा रहा है. दूसरी ओर, ‘मेईतेई मिलिशिया, कट्टरपंथी भीड़, पुलिस कमांडो और अन्य सरकारी बल’ जिन्होंने इंफाल घाटी में आदिवासी लोगों के खिलाफ ‘आतंक फैला’ रखा है, ऐसे इल्ज़ामों से बरी हैं.

आईटीएलएफ ने सरकार द्वारा कुकी-ज़ो लोगों को ‘अवैध अप्रवासी’, ‘विदेशी, ‘अफीम उगाने वाले’, ‘ड्रग डीलर’, ‘वन अतिक्रमणकारियों,’ ‘किरायेदार’, ‘उग्रवादी’ और ‘नार्को-आतंकवादियों’ बताने की भी निंदा की है.

पत्र में कहा गया है कि कुकी-ज़ो के लोगों के लिए इंफाल घाटी में वापस जाना अकल्पनीय है. उन्होंने कहा, ‘समस्या की जड़ असमान या बेमेल समुदायों का बिना किसी दबाव या बाध्यता के साथ रहना है. इसलिए, अंतिम समाधान ‘कनेक्टेड’ समुदायों को अलग करने में निहित है ताकि वे पड़ोसियों के तौर पर तो साथ रह सकें.’

फोरम ने यह भी दावा किया कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की यात्रा के बाद से ’55 गांवों को जला दिया गया, 11 से अधिक लोगों की जान चली गई.’ पत्र में यह भी कहा गया है कि कांगचुप के गांव, जिन्हें विस्थापित कुकी-ज़ो ग्रामीण छोड़ गए थे, अब मेईतेई लोगों के कब्जे में हैं.

इस पत्र को पूरा पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.