इलाहाबाद हाईकोर्ट एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें दावा किया गया है कि ‘इंडिया… हू लिट द फ्यूज़’ शीर्षक वाली फिल्म में भारत में विभिन्न धार्मिक संप्रदायों के बीच नफ़रत पैदा करने और इसके धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को नष्ट करने की क्षमता है.
नई दिल्ली: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बुधवार (14 जून) को अल ज़जीरा को न्यूज डॉक्यूमेंट्री ‘इंडिया… हू लिट द फ्यूज?’ को तब तक प्रसारित करने या जारी करने से रोक दिया, जब तक कि याचिका में उठाए गए मुद्दे पर दोहा के इस प्रसारक को नोटिस देने के बाद फैसला नहीं हो जाता.
रिपोर्ट के अनुसार, विचाराधीन फिल्म के प्रसारण से सामने आने वाले संभावित ‘बुरे परिणामों’ पर विचार करते हुए हाईकोर्ट ने याचिका को ध्यान में रखते हुए प्रसारण को स्थगित कर दिया.
अदालत ने केंद्र सरकार और उसके तहत गठित अधिकरणों को भी निर्देश दिया है कि ‘यह सुनिश्चित करने के लिए उचित कानूनी उपाय किए जाएं कि फिल्म को तब तक प्रसारण की अनुमति न मिले जब तक कि इसकी सामग्री की जांच संबंधित अधिकरणों द्वारा नहीं की जाती है, और सक्षम अधिकरण से आवश्यक प्रमाण पत्र/अनुज्ञा प्राप्त नहीं कर ली जाती है.’
केंद्र और राज्य सरकारों को ‘सामाजिक सद्भाव की रक्षा करने और भारतीय राज्य की सुरक्षा एवं हितों की रक्षा करने’ के लिए निर्देशित किया गया है. याचिका स्वयं को सामाजिक कार्यकर्ता बताने वाले सुधीर कुमार द्वारा दायर की गई है, जिसमें अदालत द्वारा अल जज़ीरा की डॉक्यूमेंट्री को प्रतिबंधित करने को लेकर विस्तृत कारणों का हवाला दिया गया है, जिनमें मुख्य कारण यह है कि इसके ‘विभिन्न धार्मिक संप्रदायों के बीच नफरत फैलाने की संभावना है और जिससे भारतीय राज्य का धर्मनिरपेक्ष ताना-बाना नष्ट हो सकता है. फिल्म में सामाजिक अशांति खड़ा करने की क्षमता है और सार्वजनिक व्यवस्था, शिष्टाचार एवं नैतिकता को नुकसान पहुंचा सकती है.’
द वायर डॉक्यूमेंट्री की सामग्री को सत्यापित करने में असमर्थ था, वहीं याचिकाकर्ता का दावा है कि उसे प्रिंट और सोशल मीडिया रिपोर्ट से पता चला है कि फिल्म ‘भारत के अल्पसंख्यकों को डर के साये में दिखाती है और सार्वजनिक घृणा की भावना को पैदा करने वाली विकृत व्याख्या प्रस्तुत करती है, जो वास्तविकता से परे हैं.’
याचिकाकर्ता का दावा है कि फिल्म भारत राज्य के राजनीतिक पदाधिकारियों को ‘नकारात्मक रूप में चित्रित’ करती है और उन्हें अल्पसंख्यकों के हितों के लिए नुकसानदेह होने के रूप में पेश करती है.
भारत में मुस्लिम अल्पसंख्यकों के साथ व्यवहार और उनकी स्थिति पर अल जज़ीरा की डॉक्यूमेंट्री के अरबी संस्करण को समाचार चैनल द्वारा ट्वीट किया गया है.
मालूम हो कि समाचार चैनलों को उन पर प्रसारित होने वाले वृत्तचित्रों को प्रदर्शित करने के लिए प्रमाणपत्र प्राप्त करने की जरूरत नहीं होती है. इस साल की शुरुआत में जब बीबीसी ने 2002 के गुजरांत दंगों, जब नरेंद्र मोदी राज्य के मुख्यमंत्री थे, पर डॉक्यूमेंट्री बनाई थी तो इसे आपातकालीन प्रावधानों के इस्तेमाल कर भारत में प्रसारित होने की अनुमति नहीं दी गई थी. इसके पीछे के कारणों को अभी भी सार्वजनिक किया जाना बाकी है.
गौरतलब है कि अल जज़ीरा मामले में भारत सरकार की ओर से पेश वकील ने याचिकाकर्ता की ओर से की गई कानूनी प्रस्तुतियों पर कोई वाद-विवाद नहीं किया. उन्होंने इस तथ्य का खंडन नहीं किया कि ‘आवश्यक प्रमाणन प्राप्त नहीं किया गया है.’
जस्टिस अश्विनी कुमार मिश्रा और जस्टिस आशुतोष श्रीवास्तव की पीठ ने याचिकाकर्ता की दलीलें सुनीं कि अल जज़ीरा केवल एक समाचार संगठन है, लेकिन इसने फिल्मों को प्रसारित कर ‘अपने दायरे से बाहर’ काम किया है. याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि यह देश में अशांति पैदा करने और सार्वजनिक व्यवस्था को खतरे में डालने के एकमात्र इरादे से था.
यह भी कहा गया है कि फिल्म विभिन्न धार्मिक संप्रदायों के नागरिकों के बीच वैमनस्य पैदा करने के लिए तथ्यों का विकृत रूप में पेश करती है.
अदालत ने कहा कि जनहित याचिका में लगाए गए आरोपों की गंभीरता ने उसे अनुच्छेद 19(2) का सहारा लेने के लिए मजबूर किया है, जो भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर उचित प्रतिबंधों की बात करता है.
लाइव लॉ द्वारा उपलब्ध कराए गए सात पन्नों के आदेश में कहा गया है, ‘हम इस तथ्य से अवगत हैं कि भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के साथ-साथ प्रसारण का अधिकार भी एक मौलिक अधिकार है, लेकिन यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(2) द्वारा लगाए गए उचित प्रतिबंधों के अधीन है.’
अदालत ने कहा कि अल जज़ीरा का अदालत में प्रतिनिधित्व नहीं किया गया है और फिल्म अवलोकन के लिए उपलब्ध नहीं है. अदालत ने याचिकाकर्ता को 48 घंटों के अंदर नोटिस जारी करने का निर्देश दिया और सुनवाई के लिए अगली तारीख 6 जुलाई निर्धारित की.
अल जजीरा से प्रतिक्रिया के लिए संपर्क किया गया लेकिन उसने टिप्पणी करने से इनकार कर दिया, लेकिन ऐसा माना जा रहा है कि वह क़ानूनी रुख अख्तियार करेगा.