2018 में 21वें विधि आयोग ने कहा था कि इस समय समान नागरिक संहिता की ज़रूरत नहीं है. अब 22वें विधि आयोग ने एक नई अधिसूचना जारी करते हुए इस बारे में जनता और धार्मिक संगठनों समेत विभिन्न हितधारकों राय मांगी है. विपक्ष ने इसे विभाजनकारी राजनीति को बढ़ावा देने की कोशिश बताया है.
नई दिल्ली: भारत के 21वें विधि आयोग ने अगस्त 2018 में यह स्पष्ट कर दिया था कि समान नागरिक संहिता (यूसीसी) की ‘इस स्तर पर न तो इसकी जरूरत है और न ही यह वांछित है. हालांकि, अब 22वें विधि आयोग ने बुधवार (14 जून) को एक नई अधिसूचना जारी करते हुए इस बारे में विभिन्न हितधारकों- जनता और धार्मिक संगठनों समेत राय मांगी है.
रिपोर्ट के अनुसार, अधिसूचना में कहा गया है कि इच्छुक व्यक्तियों या संगठनों के पास यूसीसी से संबंधित किसी भी मुद्दे पर परामर्श/चर्चा/वर्किंग पेपर के रूप में विधि आयोग को अपने विचार देने के लिए 30 दिनों का समय है.
नए आयोग ने अगस्त 2018 में पिछले आयोग के परामर्श पत्र का उल्लेख किया है, लेकिन दोबारा राय मांगे जाने का कारण नहीं बताया है. अधिसूचना में कहा गया है, ‘चूंकि उक्त परामर्श पत्र जारी करने की तारीख से तीन साल से अधिक समय बीत चुका है, विषय की प्रासंगिकता और महत्व को ध्यान में रखते हुए और इस विषय पर विभिन्न अदालती आदेशों को भी ध्यान में रखते हुए 22वें विधि आयोग ने नए सिरे से विचार-विमर्श करना आवश्यक समझा.’
नोटिस में कहा गया है कि कानून और न्याय मंत्रालय द्वारा 17 जून, 2016 को संदर्भ भेजे जाने के बाद 22वां विधि आयोग इस विषय की जांच कर रहा है.
उल्लेखनीय है कि अगस्त 2018 में ‘रिफॉर्म्स ऑफ फैमिली लॉ’ पर 185 पेज का परामर्श पत्र देते हुए 21वें विधि आयोग ने कहा था, ‘सांस्कृतिक विविधता से इस हद तक समझौता नहीं किया जा सकता कि हमारी एकरूपता की चाहत ही देश की क्षेत्रीय अखंडता के लिए खतरा बन जाए.’
इसका कहना था कि एक एकीकृत राष्ट्र को ‘एकरूपता’ रखने की जरूरत नहीं है और यह कि ‘हमारी विविधता को समेटने के प्रयास मानवाधिकारों पर सार्वभौमिक और निर्विवाद तर्कों के साथ किए जाने चाहिए.’ आयोग ने जोर देकर कहा था कि एक मजबूत लोकतंत्र में मतभेद का मतलब हमेशा भेदभाव नहीं होता है.
विपक्ष ने लगाया विभाजनकारी राजनीति का आरोप
22वें विधि आयोग की नई अधिसूचना पर कांग्रेस ने कहा कि यह कदम अपनी कमियों को ‘ध्रुवीकरण और विभाजन के एजेंडा’ से छिपाना जारी रखने के लिए मोदी सरकार की ‘हताशा’ को दर्शाता है.
Here is our statement on the Law Commission's move on the Uniform Civil Code. pic.twitter.com/zBb8Q8Miyu
— Jairam Ramesh (@Jairam_Ramesh) June 15, 2023
पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने इस बाबत बयान जारी करते हुए कहा कि यह नवीनतम प्रयास मोदी सरकार के ध्रुवीकरण के अपने निरंतर एजेंडा और अपनी स्पष्ट विफलताओं से ध्यान भटकाने की हताशा दिखाता है.
रमेश ने पिछले विधि आयोग की सराहना करते हुए कहा कि याद रखें कि राष्ट्र के हित भाजपा की राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं से अलग हैं.’
उधर, तृणमूल कांग्रेस के प्रवक्ता और राज्यसभा सांसद डेरेक ओ’ब्रायन ने भी इस कदम को लेकर मोदी सरकार पर निशाना साधा.
When you cannot deliver on jobs.
When you cannot control price rise.
When you rip the social fabric.
When you fail to keep every promise made.
All you can do, in your desperation, is to fan the flame with your deeply divisive politics before 2024#Uniform_Civil_Code
— Derek O'Brien | ডেরেক ও'ব্রায়েন (@derekobrienmp) June 15, 2023
उन्होंने कहा कि सरकार ‘हताशा’ के चलते विभाजनकारी राजनीति को बढ़ावा दे रही है.
ओ’ ब्रायन ने कहा, ‘जब आप नौकरियां नहीं दे सकते, महंगाई नियंत्रित नहीं कर सकते. जब आप सामाजिक ताने-बाने को छिन्न-भिन्न करते हैं. जब आप अपने किए गए हर वादे को पूरा करने में विफल रहते हैं, तब आप अपनी हताशा में इतना ही कर सकते हैं कि 2024 से पहले अपनी गहरी विभाजनकारी राजनीति की आग और भड़का दें.’