दो युवकों द्वारा एक हिंदू लड़की के कथित अपहरण के प्रयास के बाद से उत्तराखंड के उत्तरकाशी ज़िले के पुरोला क़स्बे में तनाव व्याप्त है. दक्षिणपंथी हिंदू समूह घटना को ‘लव जिहाद’ बता रहे हैं, वहीं, इससे इनकार करते हुए लड़की के मामा ने बताया है कि पूरा मामला कुछ हिंदुत्ववादी संगठनों, नेताओं और एक पत्रकार की साज़िश का नतीजा है.
नई दिल्ली: उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के पुरोला में बीते कुछ दिनों से सांप्रदायिक तनाव की स्थिति बनी हुई है. बीते 26 मई को यहां उस समय तनाव व्याप्त हो गया था, जब दो युवकों ने कथित तौर पर एक नाबालिग लड़की को अगवा करने का प्रयास किया था.
आरोपी (उबैद खान और जितेंद्र सैनी) घटना के अगले दिन ही गिरफ्तार कर लिए गए थे. बाद में 29 मई को पुरोला में एक विरोध मार्च निकाला गया. आंदोलनकारियों द्वारा मुसलमानों की दुकानों और प्रतिष्ठानों पर हमले के बाद यह हिंसक हो गया था.
इस घटना के बाद से दक्षिणपंथी हिंदू समूहों, स्थानीय व्यापार मंडल और कुछ स्थानीय निवासियों द्वारा राज्य में आने वाले सभी ‘बाहरी लोगों’ के सत्यापन की मांग को लेकर विरोध रैलियां निकाली गई हैं.
प्रदर्शनकारियों ने जल्द ही अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों पर अवैध गतिविधियों में शामिल होने का आरोप लगाना शुरू कर दिया और 26 मई की घटना को ‘लव जिहाद’ का उदाहरण बताया.
लड़की का कथित तौर पर अपहरण करने के दो आरोपियों में से एक के मुस्लिम समुदाय से होने के बाद इस पूरे मामले का ‘लव जिहाद’ से जोड़ दिया गया, जबकि मामले का एक आरोपी हिंदू समुदाय से है.
हिंदू महिलाओं को लुभाने और बहकाने के लिए मुस्लिम पुरुषों द्वारा एक कथित साजिश का वर्णन करने के लिए दक्षिणपंथी समूहों द्वारा ‘लव जिहाद’ शब्द का इस्तेमाल किया जाता है. हालांकि अदालतें और केंद्र सरकार इसे आधिकारिक रूप से मान्यता नहीं देती हैं.
पुरोला में तब से लगातार स्थिति तनावपूर्ण बनी हुई है. मुस्लिम व्यापारियों को दुकान खाली करने की धमकी देने वाले पोस्टर लग चुके हैं. 11 दुकानदारों के पुरोला छोड़ने की पुष्टि भी हो चुकी है.
हिंदुत्ववादी संगठनों ने बीते 15 जून को एक महापंचायत भी बुलाई थी. मामला हाईकोर्ट में भी पहुंचा. बहरहाल, के अनुसार, धारा 144 लगाने के चलते महापंचायत का आयोजन नहीं किया जा सका.
अब सामने आया है कि इस मामले को जबरन ‘लव जिहाद’ का एंगल देने की साजिश को हिंदुत्ववादियों और एक पत्रकार ने अंजाम दिया था.
समाचार वेबसाइट न्यूजलॉन्ड्री ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया है कि पुरोला में हुए जिस तथाकथित ‘लव जिहाद’ कांड को लेकर देश में पिछले काफी दिनों से हिंदुत्ववादियों और मीडिया ने हल्ला मचा रखा है, वह पूरा मामला कुछ हिंदुत्ववादी संगठनों, नेताओं और एक पत्रकार की कारस्तानी है.
रिपोर्ट के अनुसार, जान-बूझकर इस मामले को सांप्रदायिक रंग देकर मुसलमानों को पुरोला से पलायन करने के लिए मजबूर किया गया.
लड़की के परिजनों ने न्यूजलॉन्ड्री को बताया है कि घटना को ‘लव जिहाद’ और ‘सांप्रदायिक रंग’ हिंदुत्ववादी संगठनों ने दिया.
उन्होंने बताया कि नाबालिग लड़की को अगवा करने की कोशिश की गई थी, जिसके चलते ये मामला पुलिस तक पहुंचा. बाद में इसे लव जिहाद का रंग देने के लिए हिंदुत्ववादी संगठनों ने उनसे कई बार संपर्क किया था.
परिजनों ने यह भी जानकारी दी है कि जब वह पहली बार शिकायत दर्ज कराने पुलिस चौकी पहुंचे तो वहां पर एक स्थानीय पत्रकार अनिल आसवाल ने घटना को ‘लव जिहाद’ का एंगल देने के लिए खुद ही एक फर्जी शिकायत पत्र तैयार किया था, जिसमें केवल उबैद खान को आरोपी दर्शाया गया था. जबकि, घटना में दो आरोपी थे. दूसरा आरोपी हिंदू था, जिसका नाम जितेंद्र सैनी है.
न्यूजलॉन्ड्री की रिपोर्ट बताती है कि अपने शिकायत पत्र में अनिल ने घटना को ‘लव जिहाद’ और ‘देह व्यापार’ से जोड़ दिया था. वह पुरोला में ‘बीबीसी खबर डॉट इन’ नाम से वेबसाइट चलाते हैं और पूर्व में एबीवीपी और आरएसएस से भी जुड़े रहे हैं.
न्यूजलॉन्ड्री ने पत्रकार द्वारा तैयार शिकायती पत्र और पीड़िता के मामा द्वारा लिखे शिकायती पत्र, दोनों की ही प्रति अपनी रिपोर्ट में साझा की है.
पत्रकार के पत्र में लिखा गया था, ‘उक्त विपक्षी (उबैद खान) कई दिनों से प्रार्थी की भांजी का पीछा करता आ रहा था और शादी का झांसा देकर फरार करने की फिराक में था. विपक्षी बहुत शातिर किस्म का व्यक्ति है तथा विपक्षी का मकसद नाबालिग लड़की को फरार कर देह व्यापार में झोंकने का है. विपक्षी इतना शातिर है कि अपना नाम अंकित बताकर उक्त लड़की को धोखा देता रहा है. यह लड़की को बहला-फुसलाकर बहुत बड़ी घटना को अंजाम देना प्रतीत होता है. विपक्षी का मकसद धार्मिक उन्माद तथा धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का है, जिससे समाज में अशांति का माहौल पैदा होने की पूरी आशंका है.’
न्यूजलॉन्ड्री ने बताया है कि फर्जी पुलिस शिकायत से बात न बनने पर पत्रकार अनिल आसवाल ने अपनी वेबसाइट पर एक खबर प्रकाशित कर दी, जिसका शीर्षक था- ‘नाबालिग लड़की को शादी का झांसा देकर भगाने के आरोप में दो गिरफ्तार, लव जिहाद का मामला, हिंदू संगठनों में उबाल’.
वहीं, मामले में शिकायतकर्ता लड़की के मामा ने हिंदुस्तान टाइम्स को बताया, ‘पहले घंटे से ही मामले को सांप्रदायिक मुद्दा बनाने की कोशिश की जा रही थी. दक्षिणपंथी कार्यकर्ताओं ने भी खुद से ही हमारे लिए एक पुलिस शिकायत तैयार कर ली थी, लेकिन पुलिस ने इसे स्वीकार नहीं किया. यह ‘लव जिहाद’ का मामला नहीं था, बल्कि एक नियमित अपराध था. जिन्होंने इसे अंजाम दिया, वे सलाखों के पीछे हैं. न्यायपालिका अब फैसला करेगी.’
घटना को लेकर जारी प्रदर्शनों और आयोजनों के संबंध में शिकायतकर्ता मामा ने कहा कि कई दक्षिणपंथी गुटों द्वारा उनसे संपर्क किया गया था, लेकिन वह किसी आंदोलन में न शामिल होने पर अड़े हुए हैं. बता दें कि आंदोलन देवभूमि रक्षा अभियान और विश्व हिंदू परिषद द्वारा किए जा रहे हैं.
उन्होंने कहा, ‘मैंने उन्हें (प्रस्तावों को) हर बार ठुकरा दिया. मुझ तक पहुंचने की उनकी कोशिशों ने मेरा जीवन नरक बना दिया है. मैं बाहर भी नहीं जा सकता. मैं समझता हूं कि वे केवल सांप्रदायिक तनाव पैदा करना चाहते हैं और उनका एकमात्र उद्देश्य नारे लगाना है. मैंने अनजान नंबरों से आने वाले फोन कॉल का जवाब देना भी बंद कर दिया है और एक नया नंबर भी खरीद लिया है.’
उन्होंने न्यूजलॉन्ड्री से कहा, ‘पत्रकारों और हिंदुत्ववादी संगठन के लोगों ने मेरा जीना मुहाल कर रखा है. मैं लगभग एक महीने से घर से नहीं निकल पाया हूं. पुलिस अपना काम ठीक से कर रही है, लेकिन फिर भी मेरे कंधे पर बंदूक रखकर हिंदू-मुस्लिम का नैरेटिव बनाया जा रहा है. शुरू के एक-दो दिन जब वे लोग (हिंदुत्ववादी संगठन) आए तो मैं उनसे मिला, लेकिन जब देखा कि मामले को किसी और ही दिशा में धकेला जा रहा है, तो उसके बाद मैं किसी से नहीं मिला.’
26 मई के बाद से पुरोला में हिंदुत्ववादी संगठनों ने तीन बार प्रदर्शन किया है, लेकिन लड़की के परिजन किसी भी प्रदर्शन में शामिल नहीं हुए हैं, जबकि हिंदुवादी संगठन घटना को ‘लव जिहाद’ का रंग देने के लिए उनसे लगातार संपर्क कर रहे थे और उन्हें प्रदर्शन में बुला रहे थे.
लड़की के मामा कहते हैं, ‘मैं जान-बूझकर किसी प्रदर्शन में शामिल नहीं हुआ, क्योंकि यह सब कुछ झूठ था और राजनीतिक मकसद से किया जा रहा था.’
मालूम हो कि पुरोला पुलिस थाने में घटना वाले दिन ही मामला दर्ज हो गया था. आरोपियों पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 363 (अपहरण), 366ए (नाबालिग लड़की की खरीदी) और पॉक्सो अधिनियम की धाराएं लगाई गई हैं.
आरोपी माफ़ी मांग लेते तो पुलिस में शिकायत ही नहीं होती
बता दें कि 14 वर्षीय नाबालिग के माता-पिता बचपन में ही गुजर गए थे. तब से वह अपने मामा-मामी और उनके बच्चों के साथ पुरोला में रहती है. लड़की के मामा पुरोला में सरकारी स्कूल में शिक्षक हैं.
मामा ने घटना वाले दिन का ब्योरा देते हुए न्यूजलॉन्ड्री को बताया कि 26 मई की दोपहर करीब तीन बजे उन्हें फोन पर बताया गया कि दो लोग उनकी भांजी को अगवा करने की फिराक में हैं. वह तब गांव में नहीं थे, तो उन्होंने अपने एक दोस्त को घटनास्थल पर भेजा और थोड़ी देर बाद खुद भी पहुंच गए.
उनके मुताबिक, ‘वहां पहले ही भाजपा, बजरंग दल और विश्व हिंदू परिषद के लोग पहुंच चुके थे. भीड़ को देखकर उबैद और जितेंद्र सैनी वहां से भागकर अपनी दुकान पर आ गए थे. उनकी दुकान वहां से करीब 200 मीटर दूर पुरोला बाजार में है. हम उबैद की दुकान पर पहुंचे. मैंने उनसे माफी मांग लेने पर पुलिस में शिकायत न करने की बात कही. दोनों ने माफी नहीं मांगी और अकड़ दिखाने लगे. तब मैंने पुलिस में शिकायत की.’
उन्होंने बताया है कि इसके बाद अगले दिन हिंदुत्ववादियों ने घटना को ‘लव जिहाद’ बताकर हंगामा शुरू कर दिया था. तब उन्होंने पुरोला थाने के एसएचओ से एफआईआर दर्ज न करने का निवेदन किया था. हालांकि, तब तक एफआईआर दर्ज हो चुकी थी.
पुरोला थाने के एसएचओ खजान सिंह चौहान ने भी उनकी इस बात की पुष्टि न्यूज़लॉन्ड्री से की है.
उन्होंने कहा, ‘27 मई को उन्होंने हमसे एफआईआर दर्ज न करने के लिए कहा था, लेकिन तब तक एफआईआर दर्ज हो चुकी थी, आरोपी गिरफ्तार हो चुके थे और कानूनी प्रक्रिया शुरू हो गई थी, इसलिए कुछ नहीं हो सकता था.’
मामा ने बताया, ‘उबैद और जितेंद्र मेरी भांजी को अगवा करने की नीयत से ले जा रहे थे, लेकिन फिर भी मैं उन्हें माफ कर देता, क्योंकि मैं उबैद को जानता था और साथ ही कोर्ट-कचहरी के चक्करों से बचना चाहता था.’
उन्होंने पुरोला से मुसलमानों के पलायन को गलत बताया है और कहा है कि पुरोला में कभी हिंदू-मुस्लिम की दरार पैदा नहीं हुई, लेकिन हिंदुत्ववादी संगठनों ने इस मामले को इतना सांप्रदायिक बना दिया कि मुसलमानों को शहर छोड़कर जाना पड़ा. मैं चाहता हूं कि जो (मुसलमान) लोग पुरोला छोड़ कर चले गए हैं, वह वापस आ जाएं.
पीड़िता को लेकर उसके मामा ने बताया है, ‘अब हम उसे घर के अंदर रखते हैं. उस पर मनोवैज्ञानिक असर पड़ा है. वह पढ़ने में अच्छी है, लेकिन अब हर समय अपने भविष्य को लेकर चिंतित रहती है.’
हिन्दुस्तान टाइम्स के साथ बातचीत में उन्होंने कहा, ‘मैं मुसलमानों को अपना समर्थन देना चाहता था, लेकिन डर था कि इस माहौल में इसे सकारात्मक रूप से नहीं लिया जाएगा. जब भी मैं फेसबुक खोलता हूं, ज्यादातर समाचार-संबंधी वीडियो कहते हैं कि यह ‘लव जिहाद’ का मामला है. इससे मुझे निराशा होती है. कोई मुझसे नहीं पूछता कि असल कहानी क्या है.’
उन्होंने कहा, ‘जो चले गए उन्हें कभी नहीं जाना चाहिए था. मैं उन्हें वापस लाना चाहता हूं. एक के अपराध के लिए पूरे समुदाय को निशाना नहीं बनाया जाना चाहिए.’