डब्ल्यूएचओ द्वारा दूषित दवाइयों की जांच में भारत और इंडोनेशिया के ऐसे बीस उत्पाद सामने आए

विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा की जा रही दूषित कफ सीरप की जांच में इससे पहले 15 कफ सीरप को लेकर चेतावनी जारी की गई थी, जिनमें से सात भारत में निर्मित थे.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: Steve Mcsweeny Via Pharma Adda dot in)

विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा की जा रही दूषित कफ सीरप की जांच में इससे पहले 15 कफ सीरप को लेकर चेतावनी जारी की गई थी, जिनमें से सात भारत में निर्मित थे.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: Steve Mcsweeny Via Pharma Adda dot in)

नई दिल्ली: विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा की जा रही दूषित कफ सीरप की जांच, जो अब तक दुनियाभर में हुई लगभग 300 मौतों से जुड़ी हुई है, में भारत और इंडोनेशिया की ऐसी 20 विषाक्त दवाओं को चिह्नित किया गया है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, अख़बार के संपर्क करने पर डब्ल्यूएचओ के प्रवक्ता क्रिश्चियन लिंडमीयर ने कहा कि ये 20 उत्पाद दोनों देशों के ’15 अलग-अलग निर्माताओं’ द्वारा निर्मित थे.

सभी दवाएं सीरप हैं, जिनमें खांसी की दवा, पैरासिटामोल या विटामिन शामिल हैं. इनमें पहले पहचाने गए 15 दूषित सीरप भी शामिल हैं, जिनमें से सात भारत के थे-  इनमें से हरियाणा के मेडेन फार्मास्यूटिकल्स के 4, नोएडा के मैरियन बायोटेक के 2 और एक पंजाब स्थित क्यूपी फार्माकेम द्वारा निर्मित हैं. बाकी की दवाइयां इंडोनेशिया में बनी हुई हैं.

इससे पहले डब्ल्यूएचओ ने गांबिया और उज्बेकिस्तान में 15 दवाओं को लेकर ‘मेडिकल प्रोडक्ट अलर्ट’ (चेतावनी) जारी किया है, जहां पिछले साल कम से कम 88 मौतों से भारतीय निर्मित सीरप को जोड़ा गया था. माइक्रोनेशिया और मार्शल द्वीप समूह में भी ऐसा अलर्ट जारी हुआ था, साथ ही इंडोनेशिया में भी अलर्ट जारी किया गया था, जहां घरेलू स्तर पर बेचे जाने वाले सीरप को 200 से अधिक बच्चों की मौत से जोड़ा गया था.

इस साल जून की शुरुआत में नाइजीरियाई ड्रग कंट्रोलर ने लाइबेरिया में बेचे जाने वाले पैरासिटामोल सीरप को डायथिलीन ग्लाइकॉल या एथिलीन ग्लाइकॉल से दूषित पाए जाने के बाद अलर्ट जारी किया था. सीरप का निर्माण मुंबई की एक कंपनी द्वारा किया गया था.

लिंडमीयर ने कहा कि डब्ल्यूएचओ अधिक देशों में ‘संभावित दूषित सीरप’ की ख़बरों से अवगत है, लेकिन मेडिकल प्रोडक्ट अलर्ट की सूची को अभी ‘विस्तार’ नहीं दिया गया है. उन्होंने जोड़ा कि अधिक जानकारी मिलने पर इसमें बदलाव किया जा सकता है.

ज्ञात हो कि यह अलर्ट यह सुनिश्चित करने के लिए  जारी किए जाते हैं कि अधिक लोग दूषित दवा का सेवन न करें और इन उत्पादों को आपूर्ति श्रृंखला से हटा दिया जाए. लिंडमीयर ने कहा कि डब्ल्यूएचओ इस तरह के अलर्ट तभी जारी करता है, जब इस बात के पर्याप्त सबूत हों कि कोई उत्पाद दूषित है.

यह पूछे जाने पर कि क्या इन उदाहरणों को जोड़ा जा सकता है, लिंडमीयर ने कहा, ‘प्रभावित देशों में हमारी जांच जारी है. अभी तक हम किसी लिंक की पुष्टि नहीं कर सकते हैं.’

अन्य देशों द्वारा भारतीय सीरपों को लेकर सवाल उठाए जाने की घटनाओं के बाद सरकार ने निर्यात के लिए भेजे जाने वाले सभी कफ सीरपों को बाहर भेजने से पहले जांचने के लिए एक तंत्र स्थापित किया है. मई में जारी एक अधिसूचना में विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) ने कहा था कि एक जून से कफ सीरप निर्यातकों के लिए विदेश भेजने के पहले उनके उत्पादों का निर्धारित सरकारी प्रयोगशालाओं में टेस्ट कराना अनिवार्य होगा. सीरप के सैंपल के लैब परीक्षण के बाद ही निर्यात की अनुमति मिलेगी.

उल्लेखनीय है कि इस तरह का पहला मामला पिछले साल अक्टूबर में सामने आया था जब डब्ल्यूएचओ ने मेडेन फार्मा के दूषित कफ सीरपों को लेकर मेडिकल अलर्ट जारी किया था. तब इन दवाओं को गांबिया में हुई 70 बच्चों की मौत से जोड़ा गया था.

इसके बाद उज्बेकिस्तान ने नोएडा के मैरियन बायोटेक द्वारा निर्मित दो सीरप के कारण कम से कम 18 बच्चों की मौत की खबर आई थी. इसी तरह के एक मामले में इंडोनेशिया में लगभग 200 बच्चों की मौत को आठ दूषित सीरप से जोड़ा गया था.

इसके बाद माइक्रोनेशिया और मार्शल द्वीपों में पाए जाने वाले दूषित उत्पादों के लिए ऑस्ट्रेलियाई ड्रग रेगुलेटर द्वारा अलर्ट जारी किया गया था. दवाओं का निर्माण पंजाब स्थित क्यूपी फार्माकेम द्वारा किया गया था, जिसने बताया था कि उन्होंने कभी भी इन देशों को अपने सीरप का निर्यात नहीं किया.