मणिपुर हाईकोर्ट के 27 मार्च के विवादास्पद आदेश पर मेईतेई ट्राइब्स यूनियन ने समीक्षा याचिका दायर करते हुए कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक किसी भी समुदाय को एसटी में शामिल करना या बाहर करना संसद और राष्ट्रपति का विशेषाधिकार है, हाईकोर्ट का आदेश इसका पालन नहीं करता है.
नई दिल्ली: मणिपुर हाईकोर्ट ने सोमवार (19 जून) को 27 मार्च के अपने विवादास्पद आदेश को संशोधित करने की मांग वाली एक समीक्षा याचिका को स्वीकार कर लिया. उक्त आदेश में अदालत ने राज्य सरकार को अनुसूचित जनजाति (एसटी) सूची में मेईतेई समुदाय को शामिल करने की सिफारिश करने का निर्देश दिया था.
द हिंदू की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अदालत ने याचिका पर सोमवार को केंद्र सरकार और राज्य सरकार को नोटिस जारी कर सुनवाई की अगली तारीख तक जवाब मांगा है.
मणिपुर में 3 मई से घाटी के प्रभावशाली मेईतेई समुदाय के लोगों और पहाड़ी क्षेत्र के अनुसूचित जनजाति के कुकी-ज़ोमी लोगों के बीच लगातार जातीय हिंसा देखी जा रही है.
हिंसा मणिपुर हाईकोर्ट के 27 मार्च के विवादास्पद आदेश के खिलाफ आदिवासी समुदाय द्वारा निकाले गए एक मार्च के बाद शुरू हुई थी. हिंसा में अब तक 100 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है, सैकड़ों लोग घायल हो गए हैं और हजारों आंतरिक रूप से विस्थापित हुए हैं.
मेईतेई ट्राइब्स यूनियन (एमटीयू) द्वारा दायर समीक्षा याचिका को कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश एमवी मुरलीधरन, जिन्होंने 27 मार्च का आदेश भी लिखा था, की पीठ द्वारा सुनवाई के लिए स्वीकार किया गया है. उक्त आदेश यूनियन द्वारा दायर शुरुआती रिट याचिका पर पारित किया गया था.
आदेश में जस्टिस मुरलीधरन ने एसटी सूची में मेईतेई को शामिल करने के अनुरोध से संबंधित एक फाइल पर मणिपुर सरकार को केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्रालय को जवाब देने का निर्देश दिया था.
हाईकोर्ट ने उल्लेख किया था कि मेईतेई लोगों ने 2013 से केंद्र सरकार के समक्ष एसटी दर्जे के लिए कई अनुरोध प्रस्तुत किए थे, अनुरोध को प्रक्रिया के अनुसार औपचारिक सिफारिश की मांग के लिए कई बार राज्य सरकार को भेजा गया था. हालांकि, मणिपुर सरकार ने इस पत्र पर कभी कार्रवाई नहीं की.
इस निर्देश के अलावा हाईकोर्ट ने यह भी कहा था कि राज्य सरकार मेईतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति सूची में शामिल करने के याचिकाकर्ताओं के मामले पर, शीघ्रता से इस आदेश की प्रति प्राप्त होने के चार सप्ताह के भीतर विचार करेगी.
मेईतेई ट्राइब्स यूनियन के वकीलों में से एक एडवोकेट अजॉय पेबम ने द हिंदू को बताया, ‘यह आदेश का वह हिस्सा है, जिसमें हमने संशोधन की मांग की है. सुप्रीम कोर्ट का एक फैसला है, जो कहता है कि किसी भी समुदाय को शामिल करना या बाहर करना संसद और राष्ट्रपति का विशेषाधिकार है. इसलिए यह निर्देश इसका पालन नहीं करता है.’
उन्होंने कहा कि उन्होंने शुरुआत में केवल प्रक्रिया के अनुसार केंद्र सरकार को जवाब देने के लिए राज्य सरकार को निर्देश दिए जाने की मांग की थी.
हाईकोर्ट ने अब इस समीक्षा याचिका को अगली सुनवाई के लिए 5 जुलाई को सूचीबद्ध किया है.
इस बीच, ऑल मणिपुर ट्राइबल यूनियन (एएमटीयू) द्वारा 27 मार्च के आदेश के खिलाफ दायर अपील को 22 जून को अगली सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है.
इस अपील पर मेईतेई ट्राइब्स यूनियन ने पहले ही अपनी आपत्ति दर्ज करा दी है और केंद्र ने अपील पर आपत्ति नहीं जताने का फैसला किया है, लेकिन मणिपुर सरकार का अभी तक इस पर फैसला लेना बाकी है कि वह अपील में शामिल होना चाहती है या नहीं.
पिछले हफ्ते इस मामले में हुई पिछली सुनवाई में हाईकोर्ट की खंडपीठ ने कहा था कि वह अपील को सूचीबद्ध करने से पहले समीक्षा याचिका पर आदेश का इंतजार करेगी.
बता दें कि 3 मई से शुरू हुई हिंसा के कुछ दिनों के भीतर ही ऑल मणिपुर ट्राइबल यूनियन द्वारा हाईकोर्ट में अपील दायर की गई थी. हालांकि, मेईतेई ट्राइब्स यूनियन द्वारा समीक्षा याचिका जून के दूसरे सप्ताह में दायर की गई थी.
अदालत के समक्ष अपनी प्रस्तुतियों में मेईतेई ट्राइब्स यूनियन ने यह कहते हुए देरी को उचित ठहराया है कि उन्होंने 17 मई को सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों के बाद ही फैसले में त्रुटि देखी.
पेबम ने कहा, ‘उसके बाद मुवक्किलों से परामर्श करने, फैसलों को पढ़ने में समय लगा और कानून व्यवस्था की स्थिति भी अनुकूल नहीं थी. इसीलिए पुनर्विचार याचिका दायर करने में समय लगा.’
मालूम हो कि बीते 17 मई को सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर हाईकोर्ट द्वारा राज्य सरकार को अनुसूचित जनजातियों की सूची में मेईतेई समुदाय को शामिल करने पर विचार करने के निर्देश के खिलाफ ‘कड़ी टिप्पणी’ की थी. शीर्ष अदालत ने इस आदेश को तथ्यात्मक रूप से पूरी तरह गलत बताया था.
इससे पहले बीते 8 मई को हुई सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर में हुई हिंसा को एक ‘मानवीय समस्या’ बताया था. अदालत ने कहा था कि किसी समुदाय को अनुसूचित जाति (एससी) या अनुसूचित जनजाति (एसटी) के रूप में नामित करने की शक्ति हाईकोर्ट के पास नहीं, बल्कि राष्ट्रपति के पास होती है.
अदालत ने पूछा- क्या सोशल मीडिया एक्सेस के बिना इंटरनेट शुरू कर सकते हैं
इसके अलावा कई व्यक्तियों द्वारा दायर अनुरोधों के बाद मणिपुर हाईकोर्ट ने एक अंतरिम आदेश में मंगलवार (20 जून) को राज्य के अधिकारियों को आदेश दिया कि वह अपने नियंत्रण में कुछ निर्दिष्ट स्थानों पर जनता को सीमित इंटरनेट सेवा प्रदान करें.
एनडीटीवी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, हाईकोर्ट 23 जून को फिर से मामले की सुनवाई करेगा. हाईकोर्ट ने जनता द्वारा झेली जा रही कठिनाई, विशेष तौर पर छात्रों की चल रही प्रवेश प्रक्रिया के संबंध में और जनता को उसकी अत्यावश्यक एवं मूलभूत सेवाओं को पूरा करने में सक्षम बनाने पर विचार किया.
मणिपुर में हिंसा भड़कने के अगले ही दिन यानी 4 मई से इंटरनेट बंद है.
अदालत ने सेवा प्रदाताओं वोडाफोन, आइडिया, जियो, बीएसएनएल और एयरटेल को एक संक्षिप्त हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया है, जिसमें उन्हें बताना है कि क्या सोशल मीडिया वेबसाइट्स को ब्लॉक करके और राज्य में कानून व्यवस्था बनाए रखने की राज्य सरकार की चिंता को दूर करते हुए सीमित इंटरनेट प्रदान करने की कोई संभाव्यता है.
यह आदेश जस्टिस अहंथेम बिमोल सिंह और ए. गुनेश्वर शर्मा ने शुक्रवार को राज्य में इंटरनेट सेवाओं की बहाली की मांग वाली कई जनहित याचिकाओं की सुनवाई करते हुए जारी किया. अधिवक्ताओं ने कहा कि आदेश मंगलवार को सार्वजनिक हुआ.
उल्लेखनीय है कि बीते 3 मई से कुकी और मेईतेई समुदायों के बीच भड़की जातीय हिंसा में अब तक 100 से अधिक लोग मारे गए हैं. लगभग 50,000 लोग विस्थापित हुए हैं और पुलिस शस्त्रागार से 4,000 से अधिक हथियार लूटे या छीन लिए गए हैं.
गौरतलब है कि मणिपुर में अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने की मेईतेई समुदाय की मांग के विरोध में तीन मई को पर्वतीय जिलों में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ के आयोजन के बाद झड़पें हुई थीं.
मणिपुर की 53 प्रतिशत आबादी मेईतई समुदाय की है और ये मुख्य रूप से इंफाल घाटी में रहते हैं. आदिवासियों- नगा और कुकी की आबादी 40 प्रतिशत है और ये पर्वतीय जिलों में रहते हैं.
बीते सप्ताह केंद्रीय गृह मंत्रालय ने राज्य के विभिन्न जातीय समूहों के बीच शांति स्थापित करने के लिए शांति समिति का गठन किया है. हालांकि मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह के इसमें शामिल किए जाने का विरोध हो रहा है. कुकी समूहों के साथ अब मेईतेई संगठनों भी इसमें हिस्सा लेने से इनकार कर चुके हैं.