मध्य प्रदेश के मुरैना ज़िले में विकलांगता कोटे के तहत प्राथमिक स्कूलों में नियुक्त किए गए कम से कम 77 शिक्षकों पर नौकरी के लिए फर्जी तरीके से विकलांगता प्रमाण-पत्र प्राप्त करने का केस दर्ज किया गया है. चयनित 750 शिक्षकों में से 450 ने मुरैना जिला अस्पताल द्वारा जारी प्रमाण-पत्र प्रस्तुत किया था.
नई दिल्ली: मध्य प्रदेश के मुरैना जिले में प्राथमिक विद्यालयों में नियुक्त किए गए कम से कम 77 शिक्षकों पर नौकरी पाने के लिए फर्जी तरीके से विकलांगता प्रमाण-पत्र प्राप्त करने को लेकर केस दर्ज किया गया है.
हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, पुलिस ने कहा कि 75 नवनियुक्त शिक्षकों ने नौकरी पाने के लिए बहरापन या अंधापन और 2 ने शारीरिक रूप से अक्षम होने का प्रमाण-पत्र जमा किया था.
सभी 77 अभ्यर्थियों के खिलाफ कोतवाली थाना मुरैना में आईपीसी की धारा 420 (धोखाधड़ी), 419, 468 (जालसाजी) और 471 के तहत एफआईआर दर्ज की गई है.
मुरैना के जिला शिक्षा अधिकारी अनुप कुमार पाठक ने बताया कि यह मामला तब सामने आया जब विकलांगता कोटे के तहत चयनित 750 शिक्षकों में से 450 शिक्षकों ने मुरैना जिला अस्पताल द्वारा जारी प्रमाण पत्र पेश किया.
फर्जीवाड़े का संदेह होने पर लोक शिक्षण निदेशालय (डीपीआई) ने मुरैना जिला कलेक्टर को मामले की जांच करने के लिए कहा.
निदेशालय के एक अधिकारी ने कहा, ‘सभी के प्रमाण-पत्र पर हस्ताक्षर और मुहर हैं, लेकिन यह कथित तौर पर मुरैना जिला अस्पताल में तैनात एक चपरासी द्वारा 2016 से 2020 के बीच पैसे लेकर जारी किया गया था. चपरासी प्रमोद सिकरवार की 2020 में कोविड-19 से मृत्यु हो गई थी.’
उन्होंने कहा कि 77 शिक्षकों के खिलाफ केस तब दर्ज किया गया, जब अस्पताल प्रशासन ने जिला शिक्षा विभाग को सूचित किया कि अस्पताल द्वारा ऐसे प्रमाण-पत्र प्रदान करने का कोई रिकॉर्ड नहीं है.
अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि मुरैना जिला अस्पताल से प्रमाण-पत्र जमा करने वाले सभी उम्मीदवारों की दोबारा मेडिकल जांच की जाएगी.
इस बीच, शिक्षकों ने अस्पताल प्रशासन पर डॉक्टरों और अन्य कर्मचारियों की संलिप्तता का आरोप लगाते हुए कथित घोटाले की निष्पक्ष जांच की मांग की कि इससे उनके भविष्य पर असर पड़ेगा.
मुरैना के पुलिस अधीक्षक शैलेंद्र चौहान ने कहा, ‘हम मामले की जांच कर रहे हैं और उन सभी डॉक्टरों से पूछताछ करेंगे, जिनके हस्ताक्षर प्रमाण-पत्र पर पाए गए हैं.’