मद्रास हाईकोर्ट ने 2018 में दायर एक याचिका का निपटारा करते हुए कहा कि किसी भी जाति या पंथ के किसी भी व्यक्ति को पुजारी के रूप में नियुक्त किया जा सकता है, बशर्ते वह मंदिर में किए जाने वाले आवश्यक अनुष्ठानों में पारंगत और निपुण व्यक्ति हो. याचिका में सलेम ज़िले के श्री सुगवनेश्वर स्वामी मंदिर में पुजारियों की भर्ती के लिए निकाले गए एक विज्ञापन को चुनौती दी थी.
नई दिल्ली: मद्रास हाईकोर्ट ने सोमवार को कहा कि मंदिरों में पुजारियों की नियुक्ति में जाति की कोई भूमिका नहीं होगी. एकमात्र आवश्यकता यह है कि व्यक्ति मंदिर के सिद्धांतों में अच्छी तरह से पारंगत हो, उचित रूप से प्रशिक्षित हो और आवश्यकताओं के अनुसार पूजा करने के लिए योग्य हो.
जस्टिस एन. आनंद वेंकटेश ने 2018 की एक याचिका का निपटारा करते हुए यह फैसला सुनाया.
अदालत ने कहा, ‘यह पूरी तरह से स्पष्ट कर दिया गया है कि जाति के आधार पर वंशावली की अर्चक (पुजारी) की नियुक्ति में कोई भूमिका नहीं होगी. अगर इस प्रकार चयनित व्यक्ति अन्यथा आवश्यकताओं को पूरा करता है.’
हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, इस मामले में मुथु सुब्रमणिया गुरुक्कल द्वारा याचिका दायर की गई थी. उन्होंने तमिलनाडु के हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती विभाग (एचआर एंड सीई) द्वारा 2018 में सलेम जिले के श्री सुगवनेश्वर स्वामी मंदिर में पुजारियों की भर्ती के लिए निकाले गए एक विज्ञापन को चुनौती दी थी.
याचिका में उनकी ओर से कहा गया था कि यह उनके वंशानुगत अधिकारों का उल्लंघन है. याचिकाकर्ता गुरुक्कल ने अपने दादा से पुजारी का पद संभाला था, क्योंकि उनके शिवाचार्यों का परिवार ‘प्राचीन काल’ से मंदिर में पूजा करता रहा है.
बार एंड बेंच की एक रिपोर्ट के अनुसार, हाईकोर्ट ने 2018 में दायर एक रिट याचिका का निपटारा करते हुए यह टिप्पणी की. याचिका में तमिलनाडु के सलेम जिले में श्री सुगवनेश्वर स्वामी मंदिर के कार्यकारी अधिकारी (ईओ) द्वारा जारी एक अधिसूचना को चुनौती दी गई थी, जिसमें अर्चागर या स्थानिगार (मंदिर के पुजारी) का पद भरने के लिए आवेदन मांगे गए थे.
याचिकाकर्ता ने जोर देकर कहा था कि पुजारियों को यह पद विरासत में मिलना चाहिए. उन्होंने अदालत को बताया था कि अधिसूचना पुजारी का पद संभालने के उनके वंशानुगत अधिकारों का उल्लंघन करती है, क्योंकि वह वर्षों से उत्तराधिकार की पंक्ति में रीति-रिवाजों और प्रथाओं के अनुसार मंदिर में सेवा कर रहे थे.
हालांकि, हाईकोर्ट ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय ने माना था कि मंदिर के पुजारी की नियुक्ति एक धर्मनिरपेक्ष कार्य है और इसलिए ऐसी नियुक्ति पर वंशानुगत अधिकार का दावा करने का कोई सवाल ही नहीं है.
हाईकोर्ट ने कहा, ‘सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि धार्मिक सेवा करना धर्म का अभिन्न अंग है, जबकि पुजारी या अर्चक द्वारा ऐसी सेवा करना धर्म का अभिन्न अंग नहीं है. शीर्ष अदालत ने धार्मिक भाग और धर्मनिरपेक्ष भाग के बीच अंतर किया और माना कि अर्चक द्वारा की गई धार्मिक सेवा धर्म का धर्मनिरपेक्ष हिस्सा है और धार्मिक सेवा का प्रदर्शन धर्म का एक अभिन्न अंग है.’
मद्रास हाईकोर्ट ने आगे कहा, ‘इसलिए आगम (धार्मिक ग्रंथ) द्वारा प्रदान किया गया नुस्खा केवल तभी महत्व प्राप्त करता है, जब धार्मिक सेवा के प्रदर्शन की बात आती है. किसी भी जाति या पंथ से संबंधित किसी भी व्यक्ति को अर्चक के रूप में नियुक्त किया जा सकता है, बशर्ते वह मंदिर के विशेष आगमों और अनुष्ठानों में पारंगत और निपुण व्यक्ति हो.’
इसके बाद अदालत ने ईओ को उचित प्रक्रिया का पालन करके पुजारी की नियुक्ति के लिए एक नया विज्ञापन जारी करने का निर्देश दिया. कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता को भी चयन प्रक्रिया में भाग लेने की अनुमति है.
याचिकाकर्ता मुथु सुब्रमणिया गुरुक्कल की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता आर. सिंगारवेलन और अधिवक्ता एम. मुरुगनाथम उपस्थित हुए, जबकि विशेष सरकारी वकील एन आरआर अरुण नटराजन हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती विभाग की ओर से पेश हुए थे.