हिरासत में मौत के मामले में हाईकोर्ट ने यूपी के पांच पुलिसकर्मियों की सज़ा बरक़रार रखी

2006 में नोएडा में डकैती के एक मामले में 26 वर्षीय व्यक्ति की हिरासत में लिए जाने के बाद मौत हो गई थी, जिसके लिए 2019 में यूपी पुलिस के पांच कर्मचारियों को दस साल क़ैद की सज़ा सुनाई गई थी. अब दिल्ली हाईकोर्ट ने रिकॉर्ड में गंभीर विसंगतियों का हवाला देते हुए निचली अदालत के सज़ा के आदेश को बरक़रार रखा है.

(इलस्ट्रेशन: परिप्लब चक्रवर्ती/द वायर)

2006 में नोएडा में डकैती के एक मामले में 26 वर्षीय व्यक्ति की हिरासत में लिए जाने के बाद मौत हो गई थी, जिसके लिए 2019 में यूपी पुलिस के पांच कर्मचारियों को दस साल क़ैद की सज़ा सुनाई गई थी. अब दिल्ली हाईकोर्ट ने रिकॉर्ड में गंभीर विसंगतियों का हवाला देते हुए निचली अदालत के सज़ा के आदेश को बरक़रार रखा है.

(इलस्ट्रेशन: परिप्लब चक्रवर्ती/द वायर)

नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने 26 वर्षीय एक व्यक्ति की हिरासत में मौत के मामले में उत्तर प्रदेश के पांच पुलिसकर्मियों को 10 साल कैद की सजा सुनाने के निचली अदालत के आदेश को बरकरार रखा है. अदालत ने कहा कि इस कहानी की उस शख्स ने आत्महत्या की थी, इसमें गंभीर झोल है और इसके संबंध में दिए गए रिकॉर्ड भी मनगढ़ंत थे.

टाइम्स ऑफ इंडिया के रिपोर्ट के मुताबिक, मामला 2006 के एक केस से संबंधित है, जहां 26 साल के सोनू नाम के व्यक्ति को 1 सितंबर, 2006 को डकैती के किसी मामले में सादे कपड़े पहने पुलिसकर्मियों ने उठाया था और अपने निजी वाहन में पुलिस चौकी निठारी, सेक्टर 31, नोएडा ले आए थे. 2 सितंबर को सुबह 3.25 बजे सोनू को सेक्टर 20 थाने के लॉकर में बंद कर दिया गया. जांच से सामने आया था कि पुलिसकर्मियों के टॉर्चर के कारण उसी सुबह लगभग 5.30 बजे उसने आत्महत्या कर ली.

14 मार्च, 2019 को निचली अदालत ने सब-इंस्पेक्टर हिंदवीर सिंह और महेश मिश्रा, कॉन्स्टेबल प्रदीप कुमार, पुष्पेंद्र कुमार और हरिपाल सिंह को आईपीसी की धारा 304 (लापरवाही से मौत) के साथ कुछ अन्य धाराओं के तहत दोषी ठहराते हुए 10 साल की सजा सुनाई थी. एक इंस्पेक्टर कुंवर पाल सिंह को तीन साल की सजा सुनाई गई थी. कोर्ट ने साक्ष्य के अभाव में सब-इंस्पेक्टर विनोद कुमार पांडे को बरी कर दिया था.

अब दिल्ली हाईकोर्ट में जस्टिस मुक्ता गुप्ता और जस्टिस अनीश दयाल की पीठ ने आरोपी पुलिसवालों की कहानी की विभिन्न विसंगतियों को इंगित करते हुए कहा, ‘ये विसंगतियां स्पष्ट हैं और केवल अभियोजन पक्ष के मामले को ही मजबूत करती हैं कि उस रात सेक्टर-20 थाने में मौजूद सभी पुलिसकर्मी आरोपी पुलिस टीम द्वारा सोनू को लाए जाने के बाद उस समय अपनी मौजूदगी से इनकार करने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे थे. इसलिए, यह पूरी तरह से स्पष्ट है कि इन सभी पुलिसकर्मियों का सोनू के ठहरने के बाद या उसके आसपास अपनी उपस्थिति को स्वीकार करने से इनकार इस नतीजे पर पहुंचता है कि उस समय थाने की स्थिति ठीक नहीं थी.’

फैसला 19 मई को सुरक्षित रखा गया था और सोमवार (26 जून) को सुनाया गया. पुलिसवालों को आईपीसी की धारा 304 (लापरवाही से मौत) के तहत दोषी ठहराया गया. हालांकि, उच्च न्यायालय ने मृतक के परिजनों की दोषसिद्धि को धारा 304 से धारा 302 (हत्या) में बदलने की याचिका खारिज कर दी.

हाईकोर्ट ने कहा, ‘घटनाओं के उक्त अनुक्रम और रिकॉर्ड पर मौजूद सबूतों से पता चलता है कि मृतक को हिरासत में यातना दी गई थी, यह जानते हुए कि इससे मृतक की मृत्यु होने की संभावना थी, लेकिन मृत्यु का कारण बनने का कोई इरादा नहीं था. इसलिए, शारीरिक चोट पहुंचाना, जो संभव है कि मौत का कारण हो सकता है, आरोपियों को आईपीसी धारा 304 भाग-I के तहत दंडनीय अपराध का दोषी बनाता है और उन्हें 10 साल कठोर कारावास की सजा मिलनी चाहिए.’

पीठ ने इसी मामले में सोनू के अपहरण के आरोप में एक इंस्पेक्टर को तीन साल कैद की सजा देने के आदेश को भी बरकरार रखा.

रिकॉर्ड में गंभीर विसंगतियों और जनरल डायरी एंट्री को मनगढ़ंत और इनमें हेरफेर की बात कहते हुए हाईकोर्ट ने जोड़ा, ‘इस बात पर विश्वास करना मुश्किल है कि सोनू ने आत्महत्या की और फिर प्रशिक्षित पुलिसकर्मियों द्वारा बचाए जाने के प्रयास के दौरान उसे ऐसी चोटें लगीं.’