राइट्स एंड रिस्क एनालिसिस ग्रुप की रिपोर्ट के अनुसार, 2022 में पूरे भारत में सात महिला पत्रकारों सहित कुल 194 पत्रकारों को निशाना बनाया गया, जिनमें सर्वाधिक कश्मीर के थे. कम से कम 103 पत्रकार सरकारों द्वारा निशाना बनाए गए, जबकि 91 राजनीतिक कार्यकर्ताओं समेत गैर-सरकारी तत्वों के निशाने पर रहे.
नई दिल्ली: राइट्स एंड रिस्क एनालिसिस ग्रुप (आरआरएजी) के अनुसार, साल 2022 में पूरे भारत में सात महिला पत्रकारों सहित कुल 194 पत्रकारों को निशाना बनाया गया.
रिपोर्ट के अनुसार, इन पत्रकारों को राज्य एजेंसियों, गैर-सरकारी राजनीतिक तत्वों, अपराधियों और सशस्त्र विपक्षी समूहों द्वारा निशाना बनाया गया था. निशाना बनाए गए पत्रकारों की सबसे अधिक संख्या जम्मू और कश्मीर (48) से है, उसके बाद तेलंगाना (40) का स्थान है.
प्रभावित अन्य क्षेत्रों में – ओडिशा (14), उत्तर प्रदेश (13), दिल्ली (12), पश्चिम बंगाल (11), मध्य प्रदेश और मणिपुर (प्रत्येक में छह), असम और महाराष्ट्र (प्रत्येक में पांच), बिहार, कर्नाटक और पंजाब (चार-चार), छत्तीसगढ़, झारखंड और मेघालय (तीन-तीन), अरुणाचल प्रदेश और तमिलनाडु (दो-दो), आंध्र प्रदेश, गुजरात, हरियाणा, पुडुचेरी, राजस्थान, त्रिपुरा और उत्तराखंड (प्रत्येक में एक) शामिल हैं.
आरआरएजी ने कहा कि कम से कम 103 पत्रकारों को राज्य तत्वों द्वारा निशाना बनाया गया, जबकि 91 पत्रकारों को राजनीतिक कार्यकर्ताओं सहित गैर-सरकारी राजनीतिक तत्वों द्वारा निशाना बनाया गया.
रिपोर्ट के अनुसार, 103 पत्रकारों में से 70 गिरफ्तार किए गए या उन्हें हिरासत में लिया गया, 14 के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई और चार को पुलिस और ईडी द्वारा तलब किया गया. पंद्रह पत्रकारों को सार्वजनिक अधिकारियों और पुलिस से शारीरिक हमलों, धमकियों और उत्पीड़न का सामना करना पड़ा और उन्हें इमिग्रेशन अधिकारियों द्वारा विदेश जाने से भी रोक दिया गया.
आरआरएजी के निदेशक सुहास चकमा ने कहा, ‘तेलंगाना में 40 पत्रकारों को निशाना बनाने के साथ सबसे अधिक गिरफ्तारी/हिरासत की सूचना मिली, इसके बाद उत्तर प्रदेश (6), जम्मू और कश्मीर (4), मध्य प्रदेश (3), असम, छत्तीसगढ़, झारखंड, महाराष्ट्र, मणिपुर और ओडिशा (2 प्रत्येक) और आंध्र प्रदेश, दिल्ली, तमिलनाडु, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल (प्रत्येक 1) में आईपीसी के विभिन्न प्रावधानों के तहत 14 पत्रकारों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गईं, जिनमें धारा 124-ए (राजद्रोह), धारा 500 (मानहानि की सजा), 295ए (धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के इरादे से किए गए कृत्य), 153ए (विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना), सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम की धारा 66-सी, धारा 67 और धारा 69 शामिल हैं.’
रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2022 में कम से कम चार पत्रकारों को पूछताछ के लिए बुलाया गया था. उनमें से तीन – जम्मू कश्मीर के गौहर गिलानी और यशराज शर्मा और मणिपुर के वांगखेमचा शामजई – को पुलिस ने बुलाया था. महाराष्ट्र की पत्रकार सुचेता दलाल को ईडी ने नई दिल्ली में तलब किया था. कम से कम तीन पत्रकारों- आकाश हुसैन, सना इरशाद मट्टू और राना अय्यूब – को अधिकारियों ने विदेश जाने से रोक दिया.
देश भर में गैर-सरकारी राजनीतिक तत्वों और अपराधियों द्वारा जिन 91 पत्रकारों पर हमला किया गया, उनमें से पत्रकारों पर सबसे अधिक हमले ओडिशा और उत्तर प्रदेश (पांच-पांच) में दर्ज किए गए.
गैर-सरकारी राजनीतिक तत्वों और अपराधियों द्वारा सात पत्रकारों की हत्या कर दी गई. 26 वर्षीय पत्रकार सुभाष कुमार महतो को बिहार में रेत और भूमि माफिया पर रिपोर्टिंग के लिए मार दिया गया, जबकि बाकी की जान व्यक्तिगत दुश्मनी, रोड रेज आदि के चलते गई.
आरआरएजी ने कहा कि जम्मू कश्मीर, मणिपुर और नक्सल प्रभावित इलाकों में सशस्त्र विपक्षी समूहों ने लगभग 41 पत्रकारों को निशाना बनाया.
ओडिशा के दैनिक धारित्री के रिपोर्टर 43 वर्षीय रोहित बिस्वाल, कथित तौर पर माओवादियों द्वारा लगाए गए आईईडी विस्फोट में मारे गए थे. वह भी ऐसे समय जब वे मदनपुर-रामपुर ब्लॉक के मोहनगिरी गांव में पंचायत चुनाव में संदिग्ध माओवादियों द्वारा लोगों को वोट न देने की चेतावनी देने वाले लगाए गए पोस्टरों के पास जाने की कोशिश कर रहे थे.
चकमा ने कहा, ‘वर्ष के दौरान प्रेस की स्वतंत्रता की स्थिति में सुधार नहीं हुआ है और पत्रकार सरकारी और गैर-सरकारी तत्वों की तरफ से ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरह के गंभीर हमलों के प्रति संवेदनशील बने हुए हैं.’
एक अन्य रिपोर्ट में 1 दिसंबर, 2022 तक कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स (सीपीजे) ने कहा था कि वर्तमान में 363 पत्रकार अपनी स्वतंत्रता से वंचित हैं. सीपीजे ने अपनी वार्षिक जेल जनगणना में कहा कि यह आंकड़ा पिछले वर्ष के रिकॉर्ड की तुलना में 20 प्रतिशत से अधिक है.