मणिपुर में हिंसा के बीच सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा जारी एक सर्कुलर में कहा गया है कि उन सभी कर्मचारियों पर ‘काम नहीं, वेतन नहीं’ नियम लागू किया जा सकता है जो अधिकृत अवकाश के बिना अपनी आधिकारिक ड्यूटी पर नहीं पहुंच रहे हैं.
नई दिल्ली: मणिपुर में बीते पचास से अधिक दिनों से जारी हिंसा के बीच राज्य सरकार ने कार्यालय नहीं आने वाले अपने कर्मचारियों के लिए ‘काम नहीं, वेतन नहीं’ नियम लागू करने का निर्णय लिया है.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, सामान्य प्रशासन विभाग (जीएडी) को उन कर्मचारियों का विवरण प्रस्तुत करने के लिए कहा गया है जो राज्य में मौजूदा स्थिति के कारण अपने आधिकारिक काम पर उपस्थित नहीं हो पा रहे हैं.
जीएडी सचिव माइकल एकोम द्वारा सोमवार रात जारी एक परिपत्र में कहा गया है, ’12 जून को मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में हुई बैठक और कार्यवाही के पैरा 5-(12) में लिए गए निर्णय के अनुसार, मणिपुर सचिवालय के सामान्य प्रशासन विभाग से वेतन प्राप्त कर रहे सभी कर्मचारियों को सूचित किया जाता है कि उन सभी कर्मचारियों पर ‘काम नहीं, वेतन नहीं’ नियम लागू किया जा सकता है जो अधिकृत अवकाश के बिना अपनी आधिकारिक ड्यूटी पर नहीं आ रहे हैं.’
अखबार ने बताया है कि मणिपुर सरकार में एक लाख कर्मचारी हैं.
सर्कुलर में सभी प्रशासनिक सचिवों से उन कर्मचारियों का विवरण प्रस्तुत करने के लिए भी कहा गया है जो राज्य में मौजूदा स्थिति के कारण अपनी आधिकारिक ड्यूटी पर उपस्थित नहीं हो सके. कर्मचारियों के विवरणों में उनके पदनाम, नाम, ईआईएन, वर्तमान पता 28 जून तक सामान्य प्रशासन विभाग और कार्मिक विभाग उपलब्ध कराने कहा है, ताकि उचित आवश्यक कार्रवाई की जा सके.
पूर्वोत्तर राज्य में मेईतेई और कुकी समुदायों के बीच जातीय हिंसा में अब तक 100 से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है, लाखों रुपये की संपत्ति नष्ट हो चुकी है और 50 हजार से अधिक लोग विस्थापित हुए हैं.
मेइतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा दिए जाने के विरोध में पहाड़ी जिलों में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ आयोजित किए जाने के बाद 3 मई को पहली बार झड़पें हुईं थीं.
मणिपुर की आबादी में मेइतेई लोगों की संख्या लगभग 53 प्रतिशत है और वे ज्यादातर इंफाल घाटी में रहते हैं. आदिवासी- नगा और कुकी- आबादी का 40 प्रतिशत हिस्सा हैं और वे पहाड़ी जिलों में रहते हैं.