बीते 26 मई को मुस्लिम समुदाय के एक युवक सहित दो लोगों द्वारा एक हिंदू लड़की के कथित अपहरण के प्रयास के बाद से उत्तराखंड के पुरोला में तनाव व्याप्त हो गया था. उसके बाद कई मुस्लिम परिवारों ने शहर छोड़ दिया था. अब वापस लौटे परिवारों से कहा गया है कि वे घर के अंदर भी सभा में नमाज़ का आयोजन न करें, इससे शांति भंग हो सकती है.
नई दिल्ली: उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के पुरोला शहर में दक्षिणपंथी हिंदू समूहों की धमकियों के बाद जून की शुरुआत में भाग गए मुस्लिम परिवार अब अपने घरों में लौट आए हैं और अपनी दुकानों को खोलना शुरू कर दिया है.
शहर में उनके वापस लौटने के कुछ दिनों बाद ही उन्हें उन्हीं समूहों और स्थानीय बाजार संघों द्वारा निर्देश दिया गया है ईद-उल-अजहा (बकरीद) के लिए वे घर के अंदर भी सभा में नमाज अदा करने के लिए एकत्र न हों.
यह त्योहार आज यानी 29 जून को ही है.
बीते 26 मई को मुस्लिम समुदाय के एक व्यक्ति सहित दो युवकों द्वारा एक हिंदू लड़की के कथित अपहरण के प्रयास के बाद से उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के पुरोला कस्बे में तनाव व्याप्त हो गया था. पुलिस ने अपहरण के संबंध में उबैद खान (24 वर्ष) और जितेंद्र सैनी (23 वर्ष) को गिरफ्तार किया था.
इस घटना के बाद से दक्षिणपंथी हिंदू समूहों, स्थानीय व्यापार मंडल और कुछ स्थानीय निवासियों द्वारा राज्य में आने वाले सभी ‘बाहरी लोगों’ के सत्यापन की मांग को लेकर विरोध रैलियां निकाली गई थीं. चिह्नित किए गए मुसलमानों के स्वामित्व और पट्टे पर दी गई दुकानों में तोड़फोड़ की गई. मुस्लिम व्यापारियों और परिवारों को शहर छोड़ने की धमकी देने वाले पोस्टर शहर में लगा दिए गए थे.
बीते 15 जून को एक हिंदू महापंचायत आयोजित करने की योजना थी, जिस पर तब उत्तराखंड हाईकोर्ट ने रोक लगा दी थी, लेकिन 40-45 मुस्लिम परिवारों में से अधिकांश ने देहरादून या पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में रिश्तेदारों के यहां शरण लेने का फैसला किया.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, कम से कम 20 परिवारों ने वापस लौटने और अपना व्यवसाय फिर से शुरू करने का विकल्प चुना है, लेकिन बुधवार (28 जून) को विश्व हिंदू परिषद (विहिप) के कार्यकारी अध्यक्ष वीरेंद्र रावत ने कहा कि उन्होंने मांग की है कि नमाज न हो, यहां तक कि अपने घरों की निजी सीमा के अंदर भी नहीं, क्योंकि यह उनके लिए ‘भड़काऊ’ है.
रावत ने कहा, ‘हमारा विचार है कि सभा में नमाज (Namaz Congregation) घर पर भी नहीं होनी चाहिए. हमने विभिन्न मंचों पर अपनी आपत्तियां उठाईं. वे (मुसलमान) इस पर सहमत हो गए हैं. यह हमारे समुदाय के लिए उकसाने वाला है और यहां की शांति भंग कर सकता है.’
अखबार के अनुसार, 1978 में उत्तर प्रदेश के बिजनौर से पुरोला आए 66 वर्षीय बल्ले खान ने कहा कि हर साल वह ईद के दौरान नमाज अदा करने के लिए अपने घर में 70-80 स्थानीय लोगों की सभा आयोजित करते हैं. हालांकि, इस साल समुदाय ने नमाज आयोजित करने से बचने का सामूहिक निर्णय लिया है.
खान के 40 वर्षीय बेटे मोहम्मद अशरफ ने कहा, ‘जब 29 मई को दक्षिणपंथी संगठनों द्वारा एक विरोध मार्च निकाला गया था, तो हमने सुना कि हमें निशाना बनाने का एक कारण यह भी था कि हम अपने घर पर ईद के दौरान नमाज सभा का आयोजन करते हैं. 15 जून को प्रस्तावित महापंचायत से पहले जिला मजिस्ट्रेट (डीएम) के साथ बैठक में भी यही आपत्ति जताई गई थी, इसलिए हमने इस बार अपने घरों पर नमाज सभा आयोजित नहीं करने का फैसला किया है.’
पहचान उजागर न करने की शर्त पर एक अन्य मुस्लिम परिवार ने कहा कि उनके ऐसा करने के लिए सहमत होने का एकमात्र कारण हिंसा के दोबारा फैलने का डर था.
उन्होंने कहा, ‘भले ही हम जानते हैं कि कोई भी कानून हमें अपने घरों के अंदर नमाज पढ़ने से नहीं रोकता है, फिर भी हमें डर है कि इससे सांप्रदायिक तनाव पैदा हो जाएगा. हम फिर निशाना बनेंगे. आखिरकार, हमें बाकी जीवन यहीं रहना है. हम ऐसा जोखिम नहीं ले सकते.’
बाजार संघ भी हिंदू समूहों से सहमत है.
पुरोला व्यापार मंडल के अध्यक्ष बृज मोहन चौहान ने कहा, ‘स्थानीय लोगों ने बल्ले खान के घर पर नमाज के लिए एकत्र होने के खिलाफ आवाज उठाई थी. जब अज्ञात लोग वहां नमाज पढ़ने आते हैं, तो इससे कोई भी स्थिति पैदा हो सकती है और धार्मिक सद्भाव को खतरा हो सकता है.’
रिपोर्ट के अनुसार, इस प्रकरण से पता चलता है कि पुरोला में सांप्रदायिक तनाव अभी भी बना हुआ है.
देहरादून स्थित राजनीतिक विश्लेषक एसएमए काज़मी ने कहा, ‘संविधान का अनुच्छेद 25 भारत में सभी व्यक्तियों को धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देता है. अगर कोई अपने घर की चारदीवारी के भीतर नमाज पढ़ता है तो इससे किसी को क्या दिक्कत होनी चाहिए? यह दशकों से पुरोला में रहने वाले मुसलमानों पर (शहर छोड़ने के लिए) दबाव डालने का एक और प्रयास है और समुदाय को स्पष्ट रूप से निशाना बनाया जा रहा है. उन्होंने डर के कारण ईद की नमाज के लिए एकत्र नहीं होने का फैसला किया है.’
हालांकि पुलिस का कहना है कि यह निर्णय स्वैच्छिक है.
पुरोला पुलिस स्टेशन के स्टेशन हाउस ऑफिसर (एसएचओ) अशोक चक्रवर्ती ने कहा, ‘हमने ईद-उल-अजहा के दौरान शांति और सद्भाव सुनिश्चित करने के लिए बुधवार को एक शांति बैठक आयोजित की. घर पर ईद के लिए कोई सभा आयोजित न करना उनका (मुसलमानों का) अपना निर्णय था.’
कुछ लोगों ने घर बेचने का फैसला किया
द हिंदू की एक रिपोर्ट के अनुसार, 26 मई को हुई घटना के तकरीबन एक महीने बाद कुछ मुस्लिम परिवार पुरोला लौट आए हैं, तो कुछ अपने घरों को बेचने की कोशिश में हैं.
रिपोर्ट के अनुसार, पुरोला में कपड़े की दुकान चलाने वाले मोहम्मद सलीम अपने परिवार के साथ देहरादून भाग गए थे. अब उन्होंने यहां के अपने घर को बेचने का मन बना लिया है. उन्होंने कहा कि वह वापस नहीं लौटना चाहते, क्योंकि उन्हें अपने परिवार की सुरक्षा का डर है. उन्होंने कहा, ‘उस शहर में हमारे लिए कुछ भी नहीं बचा है.’
उत्तरकाशी में भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा के प्रमुख मोहम्मद जाहिद स्थानीय लोगों के विरोध प्रदर्शन के बाद देहरादून भाग गए थे. उन्होंने कहा कि उन्होंने पुरोला में अपना कारोबार बंद करने का फैसला किया है.
सब्जी विक्रेता मुन्ना खान कथित तौर पर अपने हिंदू मकान मालिक द्वारा बेदखल किए गए कई मुस्लिम किरायेदारों में से एक है. वह 3 लाख की अपनी किराया जमा राशि वापस पाने के लिए बेताब हैं. अभी वह पुरोला से 90 किमी दूर विकास नगर में रह रहे हैं.
उन्होंने कहा, ‘मुझे 2 लाख रुपये के फलों और सब्जियों का अपना स्टॉक सड़ने के लिए छोड़कर जल्दी में निकलना पड़ा. मैं अब बेरोजगार हूं और नए सिरे से शुरुआत करने के लिए मेरे पास पैसे नहीं हैं.’