हिंसा प्रभावित मणिपुर से भागकर 12 हज़ार से अधिक लोग मिज़ोरम पहुंचे, राज्य ने केंद्र से फंड मांगा

मिज़ोरम ने हिंसा प्रभावित मणिपुर से भागकर आ रहे हज़ारों लोगों को अपने यहां शरण देने के लिए केंद्र से मदद मांगी है. अधिकारियों ने कहा है कि अगर मदद नहीं दी गई तो उनके यहां जल्द ही संसाधनों की कमी हो गई है. इस बीच मणिपुर पहुंचे कांग्रेस नेता राहुल गांधी का क़ाफ़िला बिष्णुपुर में रोक दिया गया है.

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मणिपुर में हिंसा प्रभावित लोगों के लिए सेना द्वारा आयोजित एक मेडिकल कैंप. (फाइल फोटो साभार: ट्विटर/@Spearcorps)

मिज़ोरम ने हिंसा प्रभावित मणिपुर से भागकर आ रहे हज़ारों लोगों को अपने यहां शरण देने के लिए केंद्र से मदद मांगी है. अधिकारियों ने कहा है कि अगर मदद नहीं दी गई तो उनके यहां जल्द ही संसाधनों की कमी हो गई है. इस बीच मणिपुर पहुंचे कांग्रेस नेता राहुल गांधी का क़ाफ़िला बिष्णुपुर में रोक दिया गया है.

मणिपुर में हिंसा प्रभावित लोगों के लिए सेना द्वारा आयोजित एक मेडिकल कैंप. (फाइल फोटो साभार: ट्विटर/@Spearcorps)

नई दिल्ली: हिंसा प्रभावित मणिपुर के 12,000 से अधिक लोगों को अपने यहां शरण देने के बाद पड़ोसी राज्य मिजोरम दबाव महसूस करने लगा है. राज्य के अधिकारियों ने केंद्र सरकार से इस संबंध में धन की आवश्यता को दोहराई है.

द इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए मिजोरम के गृह आयुक्त एच. लालेंगमाविया ने कहा, ‘अब तक हमें एक पैसा भी नहीं मिला है. हम चर्च, स्वैच्छिक संगठनों और निजी व्यक्तियों के योगदान से अब तक राहत प्रदान करने में सक्षम रहे हैं, लेकिन अगर केंद्र सरकार तुरंत हस्तक्षेप नहीं करती, संभवत: लगभग दो सप्ताह के बाद हमारे पास संसाधनों की कमी हो जाएगी.’

उन्होंने कहा, ‘इतने सारे छात्रों को मिजोरम के स्कूलों में दाखिला दिया गया है, स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान की जा रही हैं, भोजन उपलब्ध कराया जा रहा है. हम अपने बेहद कम बजट के बावजूद उन्हें ये सब प्रदान करने की पूरी कोशिश कर रहे हैं.’

रिपोर्ट के अनुसार, बीते मई महीने में मिजोरम के मुख्यमंत्री जोरामथांगा ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर जातीय हिंसा से विस्थापित लोगों के समर्थन के लिए कम से कम 10 करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता की मांग की थी. राज्य के कैबिनेट मंत्री रॉबर्ट रॉयटे के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल ने धन के लिए दबाव बनाने के लिए इस महीने की शुरुआत में दिल्ली का दौरा भी किया था.

बीते 3 मई को हिंसा भड़कने के बाद से लगभग 37,000 लोग मणिपुर के राहत शिविरों में रह रहे हैं और हजारों लोग अन्य राज्यों में भाग गए हैं. हालांकि मणिपुर के साथ 95 किमी लंबी सीमा साझा करने वाले मिजोरम ने इस संघर्ष की आंच को सबसे ज्यादा महसूस किया है.

कुकी-ज़ोमी, जो मणिपुर में मेईतेई समुदाय के साथ संघर्ष में हैं, मिजोरम के मिजो लोगों के साथ एक गहरा जातीय बंधन साझा करते हैं, जिससे विस्थापित लोगों में से कई लोग वहां आश्रय लेने के लिए प्रेरित होते हैं.

सोमवार (26 जून) शाम तक मिजोरम में मणिपुर से विस्थापित लोगों की कुल संख्या 12,162 थी, जो राहत शिविरों में रहने के अलावा बाकी परिवार या दोस्तों के साथ थे.

मिजोरम सरकार ने राहत और मानवीय सहायता की निगरानी के लिए गृहमंत्री लालचमलियाना के नेतृत्व में राज्य में मणिपुर के आंतरिक रूप से विस्थापित लोगों के लिए 19 सदस्यीय कार्यकारी समिति का भी गठन किया है.

राज्य के शिक्षा निदेशक लालसांगलियाना के अनुसार, ‘आंतरिक रूप से विस्थापित परिवारों’ के 1,500 से अधिक बच्चों को अब तक मिजोरम के स्कूलों में प्रवेश दिया गया है.’

नागरिक समाज संगठनों, विशेष रूप से प्रभावशाली यंग मिज़ो एसोसिएशन और जिला प्रशासन के सहयोग से ग्राम परिषदों द्वारा राहत शिविर स्थापित किए गए हैं. कोलासिब जिले में मंगलवार (27 जून) रात तक सबसे अधिक 4,415 विस्थापित लोगों को आश्रय ​दिया गया था. यंग मिज़ो एसोसिएशन और ग्राम परिषदों ने इनके लिए बांस से बने अस्थायी घरों का निर्माण किया है.

तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा ने कहा, ‘मणिपुर में परिवार डर के मारे अपना जन्मस्थान छोड़ रहे हैं और पड़ोसी राज्यों में जाने को मजबूर हैं. कोई युद्ध नहीं, कोई विदेशी हाथ नहीं, यह स्थिति भाजपा और अमित शाह की राक्षसी अयोग्यता के कारण हुई, जबकि माननीय प्रधानमंत्री विश्व नेताओं को गले लगाने, ट्रेनों को हरी झंडी दिखाने या चुनाव प्रचार में व्यस्त हैं.’

यह बताया गया है कि असम और नगालैंड ने मणिपुर के 3,000 लोगों को आश्रय दिया है.

मालूम हो कि मणिपुर में मई की शुरुआत में शुरू हुई जातीय हिंसा अभी भी जारी है, जिसमें 100 से अधिक लोग मारे गए हैं. राज्य में इंटरनेट सेवाओं पर अभी भी रोक हैं.

वहीं, द हिंदू की एक रिपोर्ट के मुताबिक, मणिपुर में दर्ज किए गए मामलों का एक बड़ा हिस्सा पुलिस को क्षेत्राधिकार की परवाह किए बिना दर्ज करना पड़ा है, क्योंकि अधिकांश शिकायतकर्ता अभी भी राज्य की यात्रा करने से डर रहे हैं.

द हिंदू ने बताया है कि पिछले 56 दिनों में दर्ज आगजनी और हिंसा के 5,960 मामलों में से लगभग एक तिहाई मामलों में पुलिस ने अधिकार क्षेत्र की परवाह किए बिना ‘जीरो एफआईआर’ दर्ज की हैं.

यह पुलिस द्वारा स्वत: संज्ञान लेकर दर्ज की गई हैं और इनमें आगजनी, हिंसा, हत्या आदि से संबंधित धाराएं लगाई गई हैं. रिपोर्ट में कहा गया है, ‘औसतन हर दिन 100 से अधिक मामले दर्ज किए गए.’

केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के 2 जून को राज्य से जाने के बाद 2,226 एफआईआर दर्ज की गईं. वहीं, 24 जून को शाह की अध्यक्षता में हुई सर्वदलीय बैठक के बाद 71 मामले दर्ज किए गए थे.

इस बीच, द वायर ने अपनी रिपोर्ट में मणिपुर में जमीनी स्तर पर लोगों का सरकार से मोह-भंग होने की बात कही है, जिसमें कुकी और मेईतेई दोनों पक्षों के प्रतिनिधियों ने कहा है कि उनसे किए गए केंद्रीय गृहमंत्री शाह के वादे पूरे नहीं हुए हैं.

इंडिजिनस ट्राइबल लीडर्स फोरम (आईटीएलएफ) के महासचिव मुआन टोंबिंग ने द हिंदू को बताया कि चूंकि समुदाय के लोग अपने मामले दर्ज कराने के लिए घाटी क्षेत्रों में नहीं जा सकते हैं, इसलिए वे दिल्ली, मिजोरम के आइजोल और असम के गुवाहाटी में जीरो एफआईआर दर्ज करा रहे हैं.

मणिपुर पहुंच कांग्रेस नेता राहुल गांधी को रोका गया

इस बीच कांग्रेस नेता राहुल गांधी गुरुवार (29 जून) को हेलीकॉप्टर के जरिये मणिपुर के सबसे ज्यादा हिंसा प्रभावित जिलों में से एक चुराचांदपुर पहुंच गए. हालांकि पुलिस ने हमले के डर से उनके काफिले को रोक दिया.

राहुल गांधी ने दो दिनों की यात्रा के दौरान राहत शिविरों का दौरा करने के साथ और हिंसा प्रभावित लोगों से मिलने की योजना बनाई है.

उनके काफिले को राजधानी इंफाल से लगभग 20 किमी दूर बिष्णुपुर में रोक दिए जाने की सूचना है.

कांग्रेस नेता केसी वेणुगोपाल ने समाचार एजेंसी एएनआई से कहा, ‘राहुल गांधी के काफिले को बिष्णुपुर के पास पुलिस ने रोक दिया है. पुलिस का कहना है कि वे हमें इजाजत देने की स्थिति में नहीं हैं. राहुल का अभिवादन करने के लिए लोग सड़क के दोनों ओर खड़े हैं. हम समझ नहीं पा रहे हैं कि उन्होंने हमें क्यों रोका है.’

एनडीटीवी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पुलिस ने कहा कि राहुल गांधी को सड़क मार्ग से यात्रा करने से रोका गया है, क्योंकि वहां महिलाएं सड़क रोक रही थीं. एक पुलिस अधिकारी ने कहा, ‘हमें ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति की आशंका है और इसलिए एहतियात के तौर पर उनके काफिले को बिष्णुपुर में रुकने का अनुरोध किया गया.’

हालांकि, कांग्रेस सूत्रों ने चैनल को बताया कि महिलाएं ‘राहुल को रोकने के लिए पुलिस के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रही थीं और वे चाहती थीं कि वह चुराचांदपुर के साथ-साथ उनके गांव का भी दौरा करें’.

एनडीटीवी के अनुसार, एक महिला ने कहा, ‘उन्होंने यह जानने के लिए मणिपुर का दौरा किया कि राज्य के लोग किस स्थिति से गुजर रहे हैं. वह यहां राजनीति करने नहीं आए हैं. वे (पुलिस प्रशासन) सड़क क्यों अवरुद्ध कर रहे हैं.’

इस बीच भारतीय जनता पार्टी के आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय ने राहुल गांधी से सवाल किया है कि उन्होंने ‘2015-17 के बीच’ राज्य का दौरा क्यों नहीं किया, जब राज्य में कांग्रेस सरकार थी और उसने कानून पारित किया था, जिसका विरोध हुआ था.

उन्होंने एक ट्वीट में कहा, ‘राहुल गांधी ने 2015-17 के बीच एक बार भी जातीय हिंसा के पीड़ितों से मिलने के लिए मणिपुर के चुराचांदपुर का दौरा नहीं किया, जो कांग्रेस के मुख्यमंत्री ओकराम इबोबी सिंह सरकार के तीन विधेयकों – मणिपुर पीपुल्स प्रोटेक्शन बिल 2015, मणिपुर भूमि राजस्व और भूमि सुधार (सातवां संशोधन) विधेयक 2015, और मणिपुर दुकानें और प्रतिष्ठान (दूसरा संशोधन) विधेयक 2015 – को पारित करने के फैसले के बाद भड़की थी.’

उन्होंने कहा कि इस विधेयकों को चूड़ाचांदपुर जिले के लोगों, जिनमें अधिकतर पाइते और कुकी शामिल थे, ने ‘आदिवासी विरोधी’ और बहुसंख्यक मेईतेई समुदाय द्वारा जनजातीय भूमि हड़पने की ‘साजिश’ के रूप में देखा था.

मालवीय ने कहा, ‘नौ युवकों की गोली मारकर हत्या कर दी गई और प्रदर्शनकारी समुदायों ने दो वर्षों तक उनका अंतिम संस्कार करने से इनकार कर दिया था.’

उन्होंने कहा, ‘तब राहुल गांधी मणिपुर क्यों नहीं गए? वह शांति के मसीहा नहीं हैं, सिर्फ एक राजनीतिक अवसरवादी हैं, जो मामले को गर्म रखना चाहते हैं. उनकी मणिपुर यात्रा लोगों की चिंता के कारण नहीं, बल्कि उनके अपने स्वार्थी राजनीतिक एजेंडे के कारण है. यही कारण है कि किसी को उन पर या कांग्रेस पर भरोसा नहीं है.’

इस बीच, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और जयराम रमेश सहित विपक्षी नेताओं ने गांधी की यात्रा को रोकने के कदम की आलोचना की है और मणिपुर को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुप्पी पर सवाल उठाए हैं.

खड़गे ने कहा, ‘मणिपुर में राहुल गांधी के काफिले को पुलिस ने बिष्णुपुर के पास रोक दिया है. वह राहत शिविरों में पीड़ित लोगों से मिलने और संघर्षग्रस्त राज्य में राहत पहुंचाने के लिए वहां जा रहे हैं.’

उन्होंने कहा, ‘पीएम मोदी ने मणिपुर पर अपनी चुप्पी तोड़ने की जहमत नहीं उठाई है. उन्होंने राज्य को अपने हाल पर छोड़ दिया है. अब उनकी डबल इंजन वाली विनाशकारी सरकारें राहुल गांधी को रोकने के लिए निरंकुश तरीकों का इस्तेमाल कर रही हैं. यह पूरी तरह से अस्वीकार्य है और सभी संवैधानिक तथा लोकतांत्रिक मानदंडों को तोड़ता है. मणिपुर को शांति की जरूरत है, टकराव की नहीं.’

पार्टी नेता जयराम रमेश ने कहा, ‘यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि मोदी सरकार राहुल गांधी को राहत शिविरों का दौरा करने और इंफाल के बाहर के लोगों के साथ बातचीत करने से रोक रही है.’

उन्होंने कहा, ‘उनकी दो दिवसीय मणिपुर यात्रा भारत जोड़ो यात्रा की भावना के अनुरूप है. प्रधानमंत्री चुप रहना या निष्क्रिय रहना चुन सकते हैं, लेकिन मणिपुरी समाज के सभी वर्गों को सुनने और उन्हें राहत देने के राहुल गांधी के प्रयासों को क्यों रोका जा रहा है?’

इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.

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