बीते 28 जून को बेंगलुरु के भारतीय विज्ञान संस्थान में छात्र कार्यकर्ताओं- नताशा नरवाल और देवांगना कलीता की अगुवाई में ‘यूएपीए, जेल और आपराधिक न्याय प्रणाली’ पर चर्चा को अंतिम समय पर रद्द कर दिया गया.
नई दिल्ली: 500 से अधिक वैज्ञानिकों, शिक्षाविदों और छात्रों ने बेंगलुरु के भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) के निदेशक को पत्र लिखकर छात्र कार्यकर्ताओं- नताशा नरवाल और देवांगना कलीता की अगुवाई में होने वाली चर्चा को आखिरी समय में रद्द करने को लेकर विरोध जाहिर किया है.
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, उन्होंने आग्रह किया है कि संस्थान आईआईएससी के सदस्यों के लिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सुनिश्चित करे.
अख़बार के अनुसार, सोमवार सुबह भेजे गए एक पत्र में आईआईएससी के 21 फैकल्टी सदस्यों सहित हस्ताक्षरकर्ताओं ने ‘गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (यूएपीए), जेल और आपराधिक न्याय प्रणाली’ पर चर्चा को रोकने के लिए आईआईएससी प्रशासन द्वारा की गई कार्रवाइयों पर निराशा व्यक्त की. 28 जून को निर्धारित हुई इस चर्चा का नेतृत्व नताशा और देवांगना को करना था.
ज्ञात हो कि पिंजरातोड़ कार्यकर्ताओं- नताशा और देवांगना को साल 2020 के दिल्ली दंगों से संबंधित मामले में साजिश का आरोप लगाते हुए गिरफ्तार किया गया था. जून 2021 में दिल्ली हाईकोर्ट ने उन्हें यह कहते हुए जमानत दे दी थी कि ‘असहमति की आवाज को दबाने की जल्दबाजी में सरकार ने विरोध के संवैधानिक अधिकार और आतंकवादी गतिविधियों के अंतर को खत्म-सा कर दिया है.’
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, 27 जून को आईआईएससी रजिस्ट्रार श्रीधर वारियर ने सेंटर फॉर कंटिन्यूइंग एजुकेशन (सीसीई) में आयोजित होने वाले उक्त कार्यक्रम को रद्द कर दिया, जिसके लिए छात्र आयोजकों ने सीसीई अध्यक्ष से अनुमति ली थी. कार्रवाई इस आधार पर की गई कि आयोजकों को विभाग से ही नहीं बल्कि संस्थान प्रशासन से भी अनुमति लेनी चाहिए थी.
चर्चा से एक दिन पहले हुई घटनाओं और परिसर में कार्यक्रम आयोजित करने की अनुमति मांगने की प्रक्रिया पर टिप्पणी और स्पष्टीकरण मांगने के लिए आईआईएससी रजिस्ट्रार को 30 जून को भेजे गए ईमेल का कोई जवाब नहीं मिला. नरवाल इस मामले पर टिप्पणी नहीं करना चाहती थीं और उन्होंने अख़बार से आयोजकों से संपर्क करने को कहा.
चर्चा के आयोजकों में से एक छात्र और आईआईएससी में ‘ब्रेक द साइलेंस’ समूह के सदस्य शैरिक सेनगुप्ता ने अखबार को बताया कि इस तरह का हस्तक्षेप (रजिस्ट्रार द्वारा) असामान्य है क्योंकि छात्रों को आम तौर पर केवल उस विभाग से अनुमति की जरूरत होती है जहां कार्यक्रम आयोजित किया जाना है.
500 से अधिक वैज्ञानिकों, शिक्षाविदों और छात्रों के पत्र में कहा गया है, ‘हमारा मानना है कि आईआईएससी के सदस्यों के लिए नताशा और देवांगना के अनुभव के बारे में सुनना और उन्हें कैद करने के लिए इस्तेमाल किए गए कानूनों पर विचार करना महत्वपूर्ण है. किसी के नजरिये के बावजूद, एक लोकतंत्र में ऐसी चर्चाएं महत्वपूर्ण हैं और एक शैक्षणिक संस्थान के रूप में आईआईएससी उनकी मेजबानी के लिए आदर्श स्थिति में है. इसके विपरीत, यदि संस्थान संवैधानिक प्रश्नों पर शांतिपूर्ण चर्चा की अनुमति देने को तैयार नहीं है, तो यह देखना कठिन है कि यह वैज्ञानिक कामों के लिए जरूरी आलोचनात्मक जांच की भावना को कैसे बढ़ावा दे सकता है.’
आईआईएससी निदेशक को संबोधित पत्र में यह भी कहा गया है कि चर्चा रद्द होने से राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आईआईएससी की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा है. पत्र के अंत में कहा गया है, ‘हमें उम्मीद है कि आप तत्काल सुधारात्मक उपाय करेंगे और सुनिश्चित करेंगे कि आईआईएससी के सदस्य विज्ञान और जिस समाज में हम रहते हैं, दोनों के बारे में विचार व्यक्त करने और चर्चा करने के लिए स्वतंत्र रहें.’
बताया गया है कि चर्चा रद्द होने के बाद आयोजकों ने चर्चा के स्थान पर आईआईएससी की एक कैंटीन- सर्वम कॉम्प्लेक्स के बाहर अनौपचारिक बातचीत शुरू की. पत्र में यह भी बताया गया है, ‘इस बिंदु पर प्रशासन ने इस अनौपचारिक सभा को तितर-बितर करने के लिए सिक्योरिटी टीम के सदस्यों को भेजा. आईआईएससी फैकल्टी सदस्यों के हस्तक्षेप के बाद ही यह टीम पीछे हटी.’
इस अनौपचारिक बातचीत में सुव्रत राजू भी मौजूद थे, जो टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च के इंटरनेशनल सेंटर फॉर थेओरेटिकल साइंसेज के फैकल्टी सदस्य हैं. वे भी पत्र पर दस्तखत करने वाले शिक्षाविदों में शामिल हैं. उनका कहना है, ‘यह पागलपन की सीमा है, क्योंकि कोई भी शैक्षणिक संस्थान एक ऐसी जगह होनी चाहिए जहां लोग वास्तव में विभिन्न मसलों पर बात और चर्चा कर सकें.’
पत्र पर हस्ताक्षर करने वाले 543 लोगों में से लगभग 280 विभिन्न संस्थानों- आईआईएससी, चेन्नई गणितीय संस्थान, इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स, टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च, आईआईटी कानपुर, आईआईटी बॉम्बे, आईआईएसईआर पुणे, आईआईएसईआर मोहाली, आईआईएसईआर कोलकाता और भारतीय सांख्यिकी संस्थान सहित विभिन्न संस्थानों के फैकल्टी सदस्य हैं.
पत्र में यह भी स्पष्ट किया गया है कि संस्थागत संबद्धता केवल पहचान के उद्देश्य से लिखी गई हैं और हस्ताक्षर इन संस्थानों के विचारों को नहीं दिखाते हैं. हस्ताक्षरकर्ताओं में लगभग 110 छात्र और पोस्टडॉक्टरल फेलो भी शामिल हैं.
(पूरा पत्र और हस्ताक्षरकर्ताओं के नाम पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)