भाजपा सांसद सुशील मोदी ने आदिवासियों को समान नागरिक संहिता से बाहर रखने का सुझाव दिया

क़ानून और न्याय पर संसदीय समिति के अध्यक्ष और भाजपा सांसद सुशील कुमार मोदी ने उत्तर-पूर्व और देश के अन्य हिस्सों के आदिवासियों को समान नागरिक संहिता के दायरे से बाहर रखने का सुझाव दिया. वहीं जबकि विपक्षी दलों ने इस विवादास्पद मुद्दे पर नए सिरे से विचार-विमर्श के समय पर सवाल उठाए हैं.

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सुशील कुमार मोदी. (फाइल फोटो: पीटीआई)

क़ानून और न्याय पर संसदीय समिति के अध्यक्ष और भाजपा सांसद सुशील कुमार मोदी ने उत्तर-पूर्व और देश के अन्य हिस्सों के आदिवासियों को समान नागरिक संहिता के दायरे से बाहर रखने का सुझाव दिया. वहीं जबकि विपक्षी दलों ने इस विवादास्पद मुद्दे पर नए सिरे से विचार-विमर्श के समय पर सवाल उठाए हैं.

सुशील कुमार मोदी. (फाइल फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: कानून और न्याय पर संसदीय समिति के अध्यक्ष और भाजपा सांसद सुशील कुमार मोदी ने बीते सोमवार को उत्तर-पूर्व और देश के अन्य हिस्सों के आदिवासियों को समान नागरिक संहिता (यूसीसी) के दायरे से बाहर रखने का सुझाव दिया, जबकि विपक्षी दलों ने विवादास्पद मुद्दे पर नए सिरे से विचार-विमर्श के समय पर सवाल उठाए हैं.

द टेलीग्राफ में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, सूत्रों ने बताया कि यह विचार एक बैठक में रखा गया, जहां विपक्षी सदस्यों ने विवादास्पद मुद्दे पर परामर्श शुरू करने के विधि आयोग के कदम के समय पर सवाल उठाया.

सूत्रों ने कहा कि कांग्रेस और द्रमुक सहित अधिकांश विपक्षी सदस्यों ने समान नागरिक संहिता पर सरकार के जोर देने को अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव से जोड़ा.

समान नागरिक संहिता पर परामर्श प्रक्रिया शुरू करने के बाद कानून और न्याय पर संसदीय स्थायी समिति की यह पहली बैठक है, जिसे समिति के प्रतिनिधियों और कानून मंत्रालय के कानूनी मामलों और विधायी विभागों के विचारों को सुनने के लिए आयोजित किया गया था.

पिछले महीने विधि आयोग ने ‘पर्सनल लॉ की समीक्षा’ विषय के तहत समान नागरिक संहिता पर विभिन्न हितधारकों से विचार आमंत्रित करते हुए एक सार्वजनिक नोटिस जारी किया था.

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, समिति की बैठक में सुशील कुमार मोदी ने कहा कि उत्तर-पूर्व, जो संविधान के अनुच्छेद 371 में उल्लेखित प्रावधानों के अनुसार शासित है और छठी अनुसूची में उल्लेखित आदिवासी क्षेत्रों को समान नागरिक संहिता से छूट दी जानी चाहिए.

समिति के अधिकांश सदस्यों ने कहा कि सरकार द्वारा मसौदा प्रस्ताव पेश करने के बाद ही पार्टियां इस मुद्दे पर अपनी औपचारिक प्रतिक्रिया दे सकेंगी. हालांकि सुशील मोदी ने कहा कि समान नागरिक संहिता पर बैठकों की श्रृंखला में यह पहली बैठक है.

वहीं, कांग्रेस सांसदों ने पूछा है कि क्या व्यक्तिगत कानूनों की समीक्षा या समान नागरिक संहिता को लागू करने से देश में धर्म की स्वतंत्रता को चुनौती मिलेगी.

रिपोर्ट के अनुसार, संसदीय समिति ने चर्चा के लिए कानून मंत्रालय और विधि आयोग के अधिकारियों को भी बुलाया था.

सूत्रों ने कहा कि कांग्रेस ने समलैंगिक विवाह पर केंद्र के सुप्रीम कोर्ट में विरोध के मामले भी उठाया, जहां सरकार ने तर्क दिया कि ‘विवाह स्वाभाविक रूप से किसी के धर्म से जुड़ा हुआ है’.

वरिष्ठ अधिवक्ता और कांग्रेस सांसद विवेक तन्खा ने कहा कि चूंकि सरकार ने तर्क दिया था कि विवाह व्यक्तिगत कानूनों का एक हिस्सा है, इसलिए समान नागरिक संहिता के कार्यान्वयन से लोगों की भावनाओं और उनकी धार्मिक स्वतंत्रता को ठेस नहीं पहुंचेगी.

अलग-अलग लिखित बयानों में तन्खा और डीएमके सांसद पी. विल्सन ने विधि आयोग के सदस्य सचिव के. बिस्वाल से पूछा कि समिति ने सार्वजनिक टिप्पणियां क्यों आमंत्रित की थीं, जबकि पिछले विधि आयोग, जिसका कार्यकाल 31 अगस्त, 2018 को समाप्त हो गया था, ने इस स्तर पर समान नागरिक संहिता को न तो आवश्यक और न ही वांछनीय बताया था.

भाजपा सदस्य महेश जेठमलानी ने समान नागरिक संहिता का जोरदार बचाव किया और संविधान सभा की बहसों का हवाला देते हुए कहा कि इसे हमेशा अनिवार्य माना गया है. हालांकि, ऐसे अन्य लोग भी थे, जिन्होंने बताया कि समान नागरिक संहिता को स्वैच्छिक भागीदारी के रूप में अधिक होना चाहिए.

यह पता चला कि कानून मंत्रालय के अधिकारियों ने परामर्श प्रक्रिया पर एक पावरपॉइंट प्रस्तुति भी दी.

विधि आयोग के अधिकारियों ने कहा कि 13 जून को एक सार्वजनिक नोटिस के बाद शुरू किए गए परामर्श पर 19 लाख सुझाव प्राप्त हुए. यह अभ्यास 13 जुलाई तक जारी रहेगा.

सूत्रों ने बताया कि समिति के 31 में से 17 सदस्य बैठक में शामिल हुए. इसमें शामिल नहीं होने वालों में टीएमसी और एनसीपी जैसी पार्टियां थीं.

द टेलीग्राफ की रिपोर्ट के मुताबिक, झारखंड में आदिवासी निकायों ने कहा है कि वे समान नागरिक संहिता का विरोध करेंगे, उनका तर्क है कि इसके अधिनियमन से उनके प्रथागत कानून कमजोर हो जाएंगे. संगठनों ने तर्क दिया है कि समान नागरिक संहिता संविधान की पांचवीं और छठी अनुसूची के प्रावधानों को प्रभावित करेगा.

पांचवीं अनुसूची झारखंड सहित आदिवासी राज्यों में अनुसूचित क्षेत्रों और इन क्षेत्रों में अनुसूचित जनजातियों के प्रशासन और नियंत्रण से संबंधित है. छठी अनुसूची में असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम में आदिवासी क्षेत्रों के प्रशासन से संबंधित प्रावधान हैं.

मालूम हो कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा पिछले महीने समान नागरिक संहिता की पुरजोर वकालत के बाद मेघालय, मिजोरम और नगालैंड में विभिन्न संगठनों ने इसके खिलाफ विरोधी तेवर अपना लिए हैं.

एक नगा संगठन ने विधानसभा द्वारा यूसीसी के समर्थन में विधेयक पारित करने की स्थिति में हिंसा की चेतावनी दी है. संगठन ने चेतावनी दी है कि अगर राज्य विधानसभा केंद्र के दबाव के आगे झुकती है और समान नागरिक संहिता के समर्थन में विधेयक पारित करती है तो सभी 60 विधायकों के आधिकारिक आवास को जला दिया जाएगा.

इससे पहले बीते 30 जून को मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड के. संगमा समान नागरिक संहिता को भारत की भावना के खिलाफ बता चुके हैं. उनकी पार्टी नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) भाजपा के एनडीए गठबंधन में सहयोगी है.

उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार (27 जून) को मध्य प्रदेश में ‘मेरा बूथ सबसे मजबूत’ अभियान के तहत भाजपा कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए समान नागरिक संहिता की पुरजोर वकालत करते हुए सवाल किया था कि ‘दोहरी व्यवस्था से देश कैसे चलेगा? अगर लोगों के लिए दो अलग-अलग नियम हों तो क्या एक परिवार चल पाएगा? तो फिर देश कैसे चलेगा? हमारा संविधान भी सभी लोगों को समान अधिकारों की गारंटी देता है.’

विपक्षी दलों ने मोदी के बयान की आलोचना करते हुए कहा था कि प्रधानमंत्री कई मोर्चों पर उनकी सरकार की विफलता से ध्यान भटकाने के लिए विभाजनकारी राजनीति का सहारा ले रहे हैं. मुस्लिम संगठनों ने भी प्रधानमंत्री की यूसीसी पर टिप्पणी को गैर-जरूरी कहा था.

गौरतलब है कि समान नागरिक संहिता भारतीय जनता पार्टी के प्रमुख मुद्दों में से एक रहा है. वर्ष 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में यह भाजपा के प्रमुख चुनावी वादों में शुमार था. उत्तराखंड के अलावा मध्य प्रदेशअसमकर्नाटक और गुजरात की भाजपा सरकारों ने इसे लागू करने की बात कही थी.

उत्तराखंड और गुजरात जैसे भाजपा शासित कुछ राज्यों ने इसे लागू करने की दिशा में कदम उठाया है. नवंबर-दिसंबर 2022 में संपन्न गुजरात और हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में भी समान नागरिक संहिता को लागू करना भाजपा के प्रमुख मुद्दों में शामिल था.