उत्तराखंड राज्य शिक्षा विभाग द्वारा एकत्र किए गए आंकड़ों के अनुसार, राज्य में प्रिंसिपल के स्वीकृत पदों में से 67 प्रतिशत से अधिक ख़ाली हैं. इस पद पर नियुक्ति केवल प्रमोशन के ज़रिये ही हो सकती है और पिछले चार सालों में ऐसा कोई प्रमोशन नहीं हुआ है.
नई दिल्ली: उत्तराखंड राज्य शिक्षा विभाग द्वारा एकत्र किए गए आंकड़ों से पता चला है कि स्वीकृत प्रिंसिपल पदों में से 67 प्रतिशत से अधिक पद खाली पड़े हैं.
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, हाल के वर्षों में पदोन्नति की कमी के कारण माध्यमिक शिक्षा विभाग द्वारा स्वीकृत ये पद खाली हैं.
बताया गया है कि प्रिंसिपल पद पर नियुक्ति केवल प्रमोशन के जरिये ही हो सकती है और पिछले चार सालों में ऐसा नहीं हुआ है, जिसके कारण सरकारी स्कूलों में प्रिंसिपल के बहुत सारे पद खाली हैं.
अखबार ने शिक्षा विभाग के अधिकारियों के हवाले से कहा कि ‘यह मामला फिलहाल अदालत में विचाराधीन है.’
महानिदेशक (शिक्षा) बंसीधर तिवारी ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया, ‘हम वरिष्ठता और पदोन्नति की समस्या को हल करने की दिशा में काम करते हुए योग्य शिक्षकों की नियुक्ति के लिए आंतरिक समीक्षा करके रिक्त प्रिंसिपल पदों के मुद्दे को हल करने पर काम कर रहे हैं.’
रिपोर्ट के अनुसार, रिक्त प्रिंसिपल पदों की यह समस्या अधिक संविदा नौकरियों और शिक्षण पदों में कम नियमितीकरण के साथ बढ़ती चली गई है.
राज्य शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद के सदस्य अंकित जोशी ने अखबार को बताया कि दरअसल यह मुद्दा पिछले दो दशकों से लटका हुआ है.
उन्होंने कहा, ‘एडहॉक शिक्षकों ने नियमितीकरण और वरिष्ठता के मुद्दों के समाधान के लिए पहली बार 2002 में अदालत का दरवाजा खटखटाया था और जब उनके पक्ष में निर्णय दिया गया, तो कमीशन शिक्षक ट्रिब्यूनल में गए. आदेशों को बार-बार चुनौती दी गई और याचिकाकर्ता सुप्रीम कोर्ट गए, जिसने उनकी याचिका खारिज कर दी. 20 साल की कानूनी लड़ाई के बाद विभाग को अप्रैल 2022 में सभी पदोन्नतियों को तीन महीने के लिए रोकने और वरिष्ठता सूची को अंतिम रूप देने का निर्देश दिया गया.’
उन्होंने जोड़ा, ‘हालांकि सूची को अंतिम रूप दे दिया गया है, लेकिन सरकार की ओर से देरी हो रही है, क्योंकि सरकार का तर्क है कि यह एक विभागीय मुद्दा है.’
सरकार की ओर से देरी के विरोध में जोशी और अन्य शिक्षक अप्रैल से काली पट्टी बांधकर कक्षाएं ले रहे हैं.
एक शिक्षक ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया, ‘जब तक यह मुद्दा अनसुलझा है, पदोन्नति रुकी हुई है, यही कारण है कि प्रिंसिपलों की नियुक्ति नहीं हो रही है. भले ही एक कार्यवाहक प्रिंसिपल नियुक्त किया गया हो, उनके पास हस्ताक्षर करने की शक्तियां नहीं हैं. वे आर्थिक मामलों से जुड़े निर्णय नहीं ले सकते, यहां तक कि स्कूलों में मरम्मत आदि करवाने के संबंध में बुनियादी निर्णय भी नहीं.’
उन्होंने कहा, ‘प्रिंसिपल के रूप में कार्य करने वाले शिक्षक को दो पदों का कार्यभार का संभालना पड़ता है, जिससे उनकी दक्षता प्रभावित होती है.’