मणिपुर: महिला अधिकार संस्था ने कहा- राहत शिविरों में गंभीर स्थिति में हैं हिंसा प्रभावित लोग

हिंसा प्रभावित मणिपुर का दौरा करने वाली नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वुमेन ने कहा कि राज्य सरकार और उसकी मशीनरी मौजूदा संकट में निष्क्रिय बनी हुई है और केंद्र सरकार की आपराधिक उदासीनता ने मौजूदा गंभीर स्थिति को बढ़ा दिया है.

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मणिपुर के एक राहत शिवर में महिलाएं और बच्चे. (फोटो: याकूत अली/द वायर)

हिंसा प्रभावित मणिपुर का दौरा करने वाली नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वुमेन ने कहा कि राज्य सरकार और उसकी मशीनरी मौजूदा संकट में निष्क्रिय बनी हुई है और केंद्र सरकार की आपराधिक उदासीनता ने मौजूदा गंभीर स्थिति को बढ़ा दिया है.

मणिपुर के एक राहत शिवर में महिलाएं और बच्चे. (फोटो: याकूत अली/द वायर)

नई दिल्ली: एक महिला अधिकार संस्था ने बीते सोमवार (3 जुलाई) को कहा कि मणिपुर में राहत शिविर गंभीर स्थिति में हैं और ज्यादातर राज्य सरकार के बहुत सीमित समर्थन के साथ नेक इरादे वाले नागरिकों और नागरिक समाज संगठनों के प्रयासों से चलाए जा रहे हैं. शिविरों में रह रहे अधिकतर लोग दिहाड़ी मजदूर और आम लोग हैं.

बीते 3 मई से राज्य में आदिवासी कुकी-ज़ो और मेईतेई समुदायों के बीच जातीय हिंसा भड़कने के बाद लगभग 60,000 लोग विस्थापित हो गए हैं और मणिपुर और पड़ोसी मिजोरम में राहत शिविरों में रह रहे हैं.

द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, 28 जून से 1 जुलाई तक मणिपुर का दौरा करने वाली नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वुमेन (एनएफआईडब्ल्यू) ने एक बयान में कहा गया है कि राज्य सरकार और उसकी मशीनरी मौजूदा संकट में निष्क्रिय बनी हुई है और केंद्र सरकार की आपराधिक उदासीनता ने मौजूदा स्थिति को गंभीर बना दिया है.

एनएफआईडब्ल्यू की महासचिव एनी राजा, निशा सिद्धू और दिल्ली स्थित वकील दीक्षा द्विवेदी के नेतृत्व में तीन सदस्यीय फैक्ट-फाइडिंग टीम ने कहा कि शिविरों में पिछले एक महीने से 80 और उससे अधिक उम्र वाले वृद्ध लोग रह रहे हैं.

संगठन ने कहा, ‘शिविरों में कई गर्भवती महिलाएं भी हैं. विभिन्न स्वास्थ्य स्थितियों वाले व्यक्ति उचित चिकित्सा देखभाल के बिना संघर्ष कर रहे हैं. सरकार द्वारा उपलब्ध कराया जाने वाला भोजन अपर्याप्त है, विशेषकर शिशुओं, बुजुर्गों, गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं के लिए. स्वच्छ पानी, स्वच्छता और सैनिटरी पैड की भी भारी कमी है.’

इसे ‘राज्य-प्रायोजित हिंसा’ करार देते हुए संगठन ने कहा कि दोनों समुदायों में सामान्य धारणा यह है कि स्थिति को ठीक से नहीं संभालने को लेकर मुख्यमंत्री के प्रति नाखुशी और गुस्सा है.

संगठन ने बयान में कहा, ‘बच्चे और युवा अनिश्चित भविष्य को लेकर चिंतित हैं, क्योंकि वे अपनी पढ़ाई जारी रखने या रोजगार के किसी भी अवसर की तलाश करने में असमर्थ हैं. राहत शिविर में रह रहे लोगों को राज्य सरकार द्वारा दिए जाने वाले किसी मुआवजे के बारे में जानकारी नहीं है. यह भी पता चला कि राज्य सरकार द्वारा कोई मुआवजा दावा आयोग गठित नहीं किया गया है.’

संगठन के इस दौरे से पहले एनएफआईडब्ल्यू ने दिल्ली में कुकी और मेईतेई समुदायों की महिलाओं के साथ कई बैठकें कीं, जिन्हें हिंसा के कारण मणिपुर से भागना पड़ा था. 28 जून को टीम ने इंफाल पूर्व में तीन राहत शिविरों और एक सरकारी अस्पताल (क्षेत्रीय आयुर्विज्ञान संस्थान) का दौरा किया था.

बयान में कहा गया है, ‘वर्तमान में मणिपुर में जो हो रहा है वह सांप्रदायिक हिंसा नहीं है और न ही यह केवल दो समुदायों के बीच की लड़ाई है. इसमें भूमि, संसाधनों और कट्टरपंथियों और उग्रवादियों की मौजूदगी के सवाल शामिल हैं.’

उल्लेखनीय है कि बीते 3 मई से कुकी और मेईतेई समुदायों के बीच भड़की जातीय हिंसा में अब तक लगभग 140 लोग मारे जा चुके हैं और लगभग 60,000 लोग विस्थापित हुए हैं.

मणिपुर में अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने की मेईतेई समुदाय की मांग के विरोध में बीते 3 मई को पर्वतीय जिलों में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ के आयोजन के बाद झड़पें हुई थीं, हिंसा में बदल गई और अब भी जारी हैं.

मणिपुर की 53 प्रतिशत आबादी मेईतई समुदाय की है और ये मुख्य रूप से इंफाल घाटी में रहते हैं. आदिवासियों- नगा और कुकी की आबादी 40 प्रतिशत है और ये पर्वतीय जिलों में रहते हैं.