छत्तीसगढ़ सर्व आदिवासी समाज ने कहा कि आदिवासी समाज में समान नागरिक संहिता लागू करना अव्यावहारिक लगता है. यह आदिवासी समाज के सदियों से चली आ रहे विशिष्ट रीति-रिवाजों को प्रभावित कर सकता है, जिससे इन समुदायों की पहचान और अस्तित्व को ख़तरा पैदा हो सकता है.
नई दिल्ली: छत्तीसगढ़ सर्व आदिवासी समाज (सीएसएएस) ने मंगलवार को कहा कि केंद्र सरकार को समान नागरिक संहिता (यूसीसी) को लागू करने में जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए क्योंकि इससे उन आदिवासियों की पहचान और पारंपरिक प्रथाओं को खतरा हो सकता है जो अपने समाज पर शासन करने के लिए पारंपरिक नियमों का पालन करते हैं.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, सीएसएएस के अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम ने रायपुर में एक मीडिया ब्रीफिंग में कहा कि आदिवासी संगठन समान संहिता का विरोध नहीं करता है, लेकिन केंद्र को इसे लाने से पहले सभी को विश्वास में लेना चाहिए.
पिछले हफ्ते छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भी यूसीसी पर सवाल उठाया था और कहा था कि इस कदम से आदिवासी संस्कृति नष्ट हो जाएगी.
नेताम ने कहा, ‘यूसीसी आदिवासी समाज की सदियों से चली आ रही विशिष्ट रीति-रिवाजों और परंपराओं को प्रभावित कर सकता है, जिसके परिणामस्वरूप इन समुदायों की पहचान और अस्तित्व को खतरा पैदा हो सकता है. आदिवासी समाज में यूसीसी लागू करना अव्यावहारिक लगता है. भारत के विधि आयोग ने देश में यूसीसी के लिए सुझाव आमंत्रित किए हैं और छत्तीसगढ़ के आदिवासी समुदायों ने अपने पारंपरिक नियमों को ध्यान में रखते हुए अपनी राय प्रस्तुत की है.’
उन्होंने कहा, ‘आदिवासी समुदाय जन्म, तलाक, विभाजन, उत्तराधिकार, विरासत, भूमि और संपत्ति के मामलों में अपने पारंपरिक कानूनों द्वारा शासित होता है और यही इसकी पहचान है, जो बाकी जातियों, समुदायों और धर्मों से अलग है.’
उदाहरण देते हुए नेताम ने कहा कि आदिवासी समाज में महिलाओं को पति को छोड़ने के बाद कई बार शादी करने की आजादी होती है और उन्हें पैतृक जमीन पर अधिकार नहीं होता है.
आदिवासियों की प्रथागत प्रथाओं को संविधान के अनुच्छेद 13(3)(ए) के तहत कानून का बल प्राप्त है. उन्होंने कहा, ‘आदिवासियों को संविधान की पांचवीं और छठी अनुसूची और पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम के तहत कई अधिकार प्राप्त हैं.’
नेताम ने कहा, ‘सीएसएएस मध्य भारत के अन्य राज्यों में आदिवासी समूहों के संपर्क में है ताकि वे ऐसे किसी भी कानून के खिलाफ सामूहिक रूप से आवाज उठा सकें जो उनके रीति-रिवाजों और परंपराओं के लिए खतरा है.’
पिछले हफ्ते, बघेल ने यह भी पूछा था कि अगर यूसीसी लागू किया गया तो आदिवासियों की संस्कृति और परंपराओं का क्या होगा.
बघेल ने सवाल किया था, ‘छत्तीसगढ़ में,हमारे पास आदिवासी लोग हैं. उनके विश्वास और नियमों का क्या होगा जिनके माध्यम से वे अपने समाज पर शासन करते हैं? अगर यूसीसी लागू हो गया तो आदिवासी परंपराओं और रीति-रिवाजों का क्या होगा?’
झारखंड में आदिवासी निकायों ने भी कहा है कि वे समान नागरिक संहिता का विरोध करेंगे, उनका तर्क है कि इसके अधिनियमन से उनके प्रथागत कानून कमजोर हो जाएंगे. संगठनों ने तर्क दिया है कि समान नागरिक संहिता संविधान की पांचवीं और छठी अनुसूची के प्रावधानों को प्रभावित करेगा.
22वें कानून आयोग के समक्ष आधिकारिक तौर पर लिखित रूप में अपना विरोध दर्ज कराने की तैयारी के अलावा, आदिवासी समूहों ने आदिवासी समन्वय समिति के बैनर तले यूसीसी के खिलाफ रांची में राजभवन के बाहर धरना-प्रदर्शन का आह्वान किया है.
पांचवीं अनुसूची झारखंड सहित आदिवासी राज्यों में अनुसूचित क्षेत्रों और इन क्षेत्रों में अनुसूचित जनजातियों के प्रशासन और नियंत्रण से संबंधित है. छठी अनुसूची में असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम में आदिवासी क्षेत्रों के प्रशासन से संबंधित प्रावधान हैं.
इससे पहले सोमवार को कार्मिक, सार्वजनिक शिकायतों और कानून और न्याय पर संसदीय समिति के प्रमुख – भारतीय जनता पार्टी के सांसद सुशील कुमार मोदी ने आदिवासी समुदायों और पूर्वोत्तर राज्यों को किसी भी प्रस्तावित यूसीसी के दायरे से बाहर रखने की वकालत की थी.
मालूम हो कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा पिछले महीने समान नागरिक संहिता की पुरजोर वकालत के बाद मेघालय, मिजोरम और नगालैंड में विभिन्न संगठनों ने इसके खिलाफ विरोधी तेवर अपना लिए हैं.
एक नगा संगठन ने विधानसभा द्वारा यूसीसी के समर्थन में विधेयक पारित करने की स्थिति में हिंसा की चेतावनी दी है. संगठन ने चेतावनी दी है कि अगर राज्य विधानसभा केंद्र के दबाव के आगे झुकती है और समान नागरिक संहिता के समर्थन में विधेयक पारित करती है तो सभी 60 विधायकों के आधिकारिक आवास को जला दिया जाएगा.
इससे पहले बीते 30 जून को मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड के. संगमा समान नागरिक संहिता को भारत की भावना के खिलाफ बता चुके हैं. उनकी पार्टी नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) भाजपा के एनडीए गठबंधन में सहयोगी है.
उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार (27 जून) को मध्य प्रदेश में ‘मेरा बूथ सबसे मजबूत’ अभियान के तहत भाजपा कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए समान नागरिक संहिता की पुरजोर वकालत करते हुए सवाल किया था कि ‘दोहरी व्यवस्था से देश कैसे चलेगा? अगर लोगों के लिए दो अलग-अलग नियम हों तो क्या एक परिवार चल पाएगा? तो फिर देश कैसे चलेगा? हमारा संविधान भी सभी लोगों को समान अधिकारों की गारंटी देता है.’
विपक्षी दलों ने मोदी के बयान की आलोचना करते हुए कहा था कि प्रधानमंत्री कई मोर्चों पर उनकी सरकार की विफलता से ध्यान भटकाने के लिए विभाजनकारी राजनीति का सहारा ले रहे हैं. मुस्लिम संगठनों ने भी प्रधानमंत्री की यूसीसी पर टिप्पणी को गैर-जरूरी कहा था.