विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने 2018 में विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में एंट्री-लेवल के पदों पर भर्ती के लिए जुलाई 2021 से पीएचडी को अनिवार्य कर दिया था. विरोध के बाद इसका कार्यान्वयन जुलाई 2023 तक के लिए स्थगित कर दिया था.
नई दिल्ली: विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने उच्च शिक्षा संस्थानों में सहायक प्रोफेसरों के लिए पीएचडी अनिवार्य करने के अपने फैसले को उलट दिया है; राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (नेट), राज्य पात्रता परीक्षा (एसईटी) और राज्य स्तरीय पात्रता परीक्षा (एसएलईटी) प्रवेश स्तर के पदों पर भर्ती का आधार बने रहेंगे.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, आयोग ने 2018 में विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में एंट्री-लेवल के पदों पर भर्ती के लिए मानदंड निर्धारित किए थे. उस समय इसने सभी विश्वविद्यालयों को जुलाई 2021 से भर्ती के लिए पीएचडी मानदंड लागू करना शुरू करने के लिए कहा था.
इस कदम की विभिन्न विश्वविद्यालयों के फैकल्टी सदस्यों ने आलोचना की थी और कहा था कि कई उम्मीदवार कोविड-19 महामारी के चलते अपनी पीएचडी पूरी नहीं कर सके हैं. इसके साथ ही उन्होंने केंद्र सरकार से पात्रता में ढील देने की अपील की थी.
अक्टूबर 2021 में आयोग ने घोषणा की कि वह मानदंड के कार्यान्वयन को अगले दो वर्षों यानी जुलाई 2023 के लिए स्थगित कर रहा है. लेकिन अब इसे पूरी तरह से समाप्त कर दिया गया है.
बीते बुधवार को सार्वजनिक हुई 30 जून की एक अधिसूचना के अनुसार, आयोग ने यूजीसी (विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में शिक्षकों और अन्य शैक्षणिक कर्मचारियों की नियुक्ति के लिए न्यूनतम योग्यता और उच्च शिक्षा में मानकों के रखरखाव के लिए अन्य उपाय) विनियम, 2018 में संशोधन किया है और पीएचडी की आवश्यकता वाला खंड हटा दिया गया है.
इसे एक अन्य खंड के साथ प्रतिस्थापित किया गया है, जिसमें कहा गया है कि ‘सभी उच्च शिक्षा संस्थानों के लिए सहायक प्रोफेसर के पद पर सीधी भर्ती के लिए एनईटी/एसईटी/एसएलईटी न्यूनतम मानदंड होगा.’
यूजीसी के अध्यक्ष एम. जगदीश कुमार ने कहा कि इस कदम से उन उम्मीदवारों को राहत मिलेगी, जो शिक्षण क्षेत्र में आना चाहते हैं. कुमार ने स्पष्ट किया कि एसोसिएट प्रोफेसर स्तर पर पदोन्नति के लिए अभी भी पीएचडी की आवश्यकता होगी.