बॉम्बे हाईकोर्ट ने सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) नियमों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अंतिम सुनवाई शुरू करते हुए ये टिप्पणियां कीं. आईटी नियम सरकार को फैक्ट चेक इकाई के माध्यम से सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर इसके बारे में ‘फ़र्ज़ी समाचार’ की पहचान करने और उन्हें हटाने का आदेश देने का अधिकार देती हैं.
नई दिल्ली: बॉम्बे हाईकोर्ट ने बीते गुरुवार (7 जुलाई) को कहा कि अगर किसी नियम या कानून का प्रभाव असंवैधानिक है, तो उसे जाना होगा, चाहे मकसद कितना भी प्रशंसनीय क्यों न हो.
जस्टिस गौतम एस. पटेल और जस्टिस नीला के. गोखले की खंडपीठ ने संशोधित सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) नियमों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अंतिम सुनवाई शुरू करते हुए ये टिप्पणियां कीं. आईटी नियम सरकार को फैक्ट चेक इकाई के माध्यम से सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर इसके बारे में ‘फर्जी समाचार’ की पहचान करने और उन्हें हटाने का आदेश देने का अधिकार देती हैं.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, पीठ ने संशोधित नियमों की आवश्यकता पर केंद्र सरकार की चुप्पी पर भी सवाल उठाया. इन नियमों को स्टैंडअप कॉमेडियन कुणाल कामरा, एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया, न्यू ब्रॉडकास्ट एंड डिजिटल एसोसिएशन और एसोसिएशन ऑफ इंडियन मैगजींस ने चुनौती दी है.
इस साल अप्रैल में संशोधित आईटी नियमों के अनुसार, फैक्ट चेक इकाई द्वारा ‘फर्जी या भ्रामक’ के रूप में चिह्नित सामग्री को ऑनलाइन मध्यस्थों (फेसबुक, ट्विटर जैसे मंचों और सभी डिजिटल मीडिया) द्वारा हटाना होगा, अगर वे अपना ‘सुरक्षित आश्रय’ (तीसरे पक्ष की सामग्री के खिलाफ कानूनी प्रतिरक्षा) बनाए रखना चाहते हैं.
इसके तहत ‘मध्यस्थों’ – जिनमें सोशल मीडिया कंपनियां भी शामिल हैं – के लिए अनिवार्य हो गया है कि वे ‘केंद्र सरकार के किसी भी कामकाज के संबंध में नकली, झूठी या भ्रामक जानकारी को प्रकाशित, साझा या होस्ट न करें.’
बार और बेंच की रिपोर्ट के अनुसार, पीठ ने पूछा:
‘वे कह रहे हैं कि फैक्ट चेक इकाई को अभी नहीं बनाया गया है, लेकिन पीआईबी लंबे समय से अस्तित्व में है. हमें उत्तरों में स्पष्टीकरण कहां मिलेगा कि वह एजेंसी (पीआईबी) अपर्याप्त क्यों है और आपको संशोधन की आवश्यकता क्यों है? जब भी पीआईबी कोई स्पष्टीकरण जारी करता है, तो हर समाचार चैनल और अखबार उसे प्रसारित करते हैं.’
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, कामरा का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ वकील नवरोज सीरवई ने कहा कि नियम यह संदेश देते हैं कि सरकार यह सुनिश्चित करने की योजना बना रही है कि सोशल मीडिया ‘केवल वही कवर करे जो वह चाहती है और बाकी सब कुछ सेंसर किया जाए’.
वकील ने कहा, ‘यह जनता के माता-पिता या दाई की भूमिका निभाना चाहता है.’
जब उन्होंने कहा कि विवादित नियम नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं, तो पीठ ने कहा, ‘चाहे इरादे कितने भी प्रशंसनीय या ऊंचे क्यों न हों, अगर प्रभाव असंवैधानिक है तो इसे जाना होगा.’
पीठ ने यह भी कहा कि सरकार यह नहीं बता सकी कि क्या मौजूदा तंत्र अपर्याप्त था और फैक्ट चेक इकाई की क्या आवश्यकता थी.
न्यायाधीशों ने एक संभावित परिदृश्य भी उठाया, जो 2024 के आम चुनावों के अभियान के दौरान उत्पन्न हो सकता है.
बार एंड बेंच के अनुसार, पीठ ने पूछा:
‘जैसा कि हम 2024 के करीब पहुंच रहे हैं, लोग चुनाव प्रचार अभियान पर बातें कहेंगे. मान लीजिए कि एक व्यक्ति ऑनलाइन किसी राजनीतिक प्रवक्ता द्वारा अभियान के दौरान दिए गए बयानों पर सवाल उठाता है, इसकी आलोचना करता है और अगर फैक्ट चेक इकाई कहती है कि इसे हटा दें, तो वह ऐसा कैसे कर सकता है? क्या यह सरकार का काम है? क्या इसे होस्ट करने वाली साइट सुरक्षित आश्रय खो सकती है, अगर सरकार की फैक्ट चेक इकाई इसे गलत के रूप में चिह्नित करती है और वे इसे हटाने से इनकार करते हैं?’
न्यायाधीशों ने यह भी कहा कि नियम ‘अज्ञात के डर’ से आते प्रतीत होते हैं, और अदालत को यह तय करना होगा कि यह वैध है या नहीं.
उन्होंने कहा:
‘आप प्रौद्योगिकी के दायरे, पहुंच और शक्ति की सीमा को नहीं समझते हैं. प्रकाशन के मामले में यह आवश्यक नहीं होता. आप बस यह नहीं समझ पा रहे हैं कि इंटरनेट क्या कर सकता है. सरकारें इंटरनेट को ख़त्म नहीं कर सकतीं, क्योंकि वे यहीं से अपना कारोबार करती हैं, लेकिन यह अपनी सीमाओं के साथ आता है. यह अज्ञात के डर की तरह है. और यही कारण है कि सरकार इसे (फैक्ट चेक इकाई) लेकर आई है. यह वैध है या नहीं, यह हमें तय करना है.’
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