दिल्ली स्थित साउथ एशियन यूनिवर्सिटी ने बीते जून महीने में अपने चार फैकल्टी सदस्यों को निलंबित कर दिया था. इन पर विश्वविद्यालय के ‘हितों के ख़िलाफ़ छात्रों को भड़काने’ का आरोप लगाया गया है. यह कार्रवाई स्नातकोत्तर छात्रों के लिए मासिक वज़ीफ़े में कटौती के विरोध में पिछले साल छात्रों के कई महीने चले विरोध प्रदर्शन के बाद की गई है.
नई दिल्ली: विभिन्न देशों के विश्वविद्यालयों के 500 से अधिक शिक्षाविदों ने दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) देशों के विदेश मंत्रियों को पत्र लिखकर नई दिल्ली स्थित साउथ एशियन यूनिवर्सिटी (एसएयू) के चार फैकल्टी सदस्यों के निलंबन के संबंध में हस्तक्षेप की अपील की है.
इन चारों शिक्षकों पर विश्वविद्यालय की आचार संहिता का उल्लंघन करते हुए ‘इसके हितों के खिलाफ छात्रों को भड़काने’ का आरोप लगाया गया है.
यह कार्रवाई स्नातकोत्तर छात्रों के लिए मासिक वजीफे में कटौती के विरोध में पिछले साल छात्रों के कई महीने चले विरोध प्रदर्शन के बाद की गई थी.
पत्र में बताया गया है कि 16 जून 2023 को विश्वविद्यालय के चार फैकल्टी सदस्यों (शिक्षक) को विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा इसलिए निलंबित कर दिया गया था, क्योंकि उन्होंने छात्रों के खिलाफ प्रशासन के अमानवीय व्यवहार और मनमानी दंडात्मक कार्रवाइयों को लेकर अपनी चिंता व्यक्त की थी.
निलंबित होने वाले फैकल्टी सदस्यों में फैकल्टी ऑफ इकोनॉमिक्स के डॉ. स्नेहाशीष भट्टाचार्य, फैकल्टी ऑफ लीगल स्टडीज के डॉ. श्रीनिवास बुर्रा, फैकल्टी ऑफ सोशल साइंसेज के समाजशास्त्र विभाग के डॉ. इरफानुल्लाह फारूकी और डॉ. रवि कुमार शामिल हैं.
पत्र में कहा गया है, ‘ये प्रोफेसर विश्वविद्यालय के उस संवेदनहीन तरीके पर सवाल उठा रहे थे, जिसके तहत उसने उन छात्रों के खिलाफ कार्रवाई की, जो पिछले साल अपने मासिक वजीफे में कमी किए जाने का विरोध कर रहे थे और यौन उत्पीड़न एवं जेंडर सेंसटाइजेशन समितियों में उचित प्रतिनिधित्व की मांग कर रहे थे.’
पत्र में कहा गया है कि प्रशासन ने उनकी मांगों पर गौर करने के बजाय विरोध करने के अपने लोकतांत्रिक अधिकार का प्रयोग कर रहे छात्रों को तितर-बितर करने के लिए पुलिस बुला ली.
साथ ही बताया गया है कि निलंबित शिक्षकों ने छात्रों के खिलाफ हस्तक्षेप करने के लिए परिसर में पुलिस को बुलाने और प्रदर्शनकारी छात्रों के खिलाफ प्रशासकों द्वारा उठाए गए प्रतिशोधात्मक कदमों के बारे में अपनी चिंताएं दर्ज कराई थीं. प्रोफेसर विश्वविद्यालय से छात्रों की चिंताओं को दूर करने और विवादों को हल करने के लिए रचनात्मक दृष्टिकोण अपनाने का आग्रह कर रहे थे.
पत्र में कहा गया है कि शिक्षकों के खिलाफ की गई निंदात्मक कार्रवाई खुलेपन, संवाद और पारस्परिकता की परंपराओं के विपरीत हैं, जो भारतीय शिक्षा प्रणाली की पहचान हैं.
साथ ही कहा गया है कि शिक्षकों का दायित्व छात्रों की ओर से बोलने और उनके लिए एक सुरक्षित एवं सहायक शिक्षण वातावरण सुनिश्चित करना होता है, जो छात्रों की भलाई और शैक्षिक विकास को बढ़ावा देता है. इन कार्रवाइयों का सीधा टकराव इन दायित्वों से होता है.
पत्र में कहा गया है, ‘पढ़ाना, अनुसंधान करना और अकादमिक समुदाय में योगदान देना सभी एक फैकल्टी सदस्य की पेशेवर जिम्मेदारियों के अभिन्न अंग हैं. इसलिए, निलंबन आदेश फैकल्टी सदस्यों के अपने पेशेवर कौशल का अभ्यास करने और अपने दायित्वों को पूरा करने के बुनियादी अधिकारों का उल्लंघन करता है, साथ ही छात्रों को मूल्यवान सीखों और मार्गदर्शन से वंचित करता है. एक जीवंत और उत्पादक शैक्षणिक समुदाय को बढ़ावा देने के लिए फैकल्टी सदस्यों के पेशेवर कौशल और योगदान को पहचानना और उनका सम्मान करना महत्वपूर्ण है.’
शिक्षाविदों ने कहा है, ‘किसी भी शैक्षणिक संस्थान का लक्ष्य एक ऐसा वातावरण बनाना है, जो न्याय, निष्पक्षता और फैकल्टी सदस्यों के अधिकारों के सम्मान के सिद्धांतों को कायम रखते हुए छात्रों के कल्याण की रक्षा करता है. प्रशासकों ने जिस मनमानी और कठोरता से उनके खिलाफ कार्रवाई की है, वह शैक्षणिक संस्थानों की जवाबदेही, पारदर्शिता, अखंडता और स्थिरता के मानदंडों का उल्लंघन है.’
सार्क देशों के विदेश मंत्रियों को संबोधित करते हुए पत्र में कहा गया है, ‘हम आप सभी से इस संबंध में हस्तक्षेप करने का आग्रह करते हैं और एसएयू प्रशासन से अनुचित और मनमाने निलंबन आदेशों को तुरंत रद्द करने और विश्वविद्यालय में एक सौहार्दपूर्ण शैक्षणिक माहौल स्थापित करने का आह्वान करते हैं.’
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