केंद्र ने जनता के मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए नागरिक संहिता की ‘गुगली’ डाली है: सचिन पायलट

कांग्रेस नेता और राजस्थान के पूर्व उप-मुख्यमंत्री सचिन पायलट ने समान नागरिक संहिता पर छिड़ी बहस के संबंध में कहा है कि संसद या स्थायी समिति में इस पर कोई ठोस प्रस्ताव नहीं है और इसे सिर्फ़ भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार द्वारा ‘राजनीतिक टूल’ के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है.

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सचिन पायलट. (फाइल फोटो: पीटीआई)

कांग्रेस नेता और राजस्थान के पूर्व उप-मुख्यमंत्री सचिन पायलट ने समान नागरिक संहिता पर छिड़ी बहस के संबंध में कहा है कि संसद या स्थायी समिति में इस पर कोई ठोस प्रस्ताव नहीं है और इसे सिर्फ़ भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार द्वारा ‘राजनीतिक टूल’ के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है.

सचिन पायलट. (फाइल फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: समान नागरिक संहिता (यूसीसी) पर जारी राजनीतिक बहस के बीच कांग्रेस नेता और राजस्थान के पूर्व उप-मुख्यमंत्री सचिन पायलट ने कहा है कि इसके बारे में चर्चा सिर्फ ‘हवा में तीर चलाने जैसा है’, क्योंकि ऐसा कोई ठोस प्रस्ताव नहीं है. उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा के नेतृत्व वाले केंद्र ने यह ‘गुगली’ लोगों से जुड़े वास्तविक मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए फेंकी है.

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पायलट ने कहा कि स्थायी समितियों या संसद में यूसीसी पर कुछ भी नहीं है और बातचीत सिर्फ ‘राजनीतिक बयानबाजी’ पर आधारित है.

उन्होंने कहा कि यूसीसी पर कोई ठोस प्रस्ताव नहीं है और इसे सिर्फ भाजपा के नेतृत्व वाले केंद्र द्वारा ‘राजनीतिक टूल’ के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है.

द प्रिंट के मुताबिक, यूसीसी पर जारी चौतरफा बहस के बारे में पूछे जाने पर पायलट ने कहा, ‘समान नागरिक संहिता क्या है, क्या कोई विधेयक आया है, क्या कोई प्रस्ताव आया है, क्या कोई खाका तैयार किया गया है, पता ही नहीं है. यूसीसी के नाम पर अलग-अलग लोग, अलग-अलग दल, अलग-अलग धर्मगुरु अपनी राय दे रहे हैं.’

उन्होंने पूछा, ‘सरकार का प्रस्ताव क्या है, संसद की स्थाई समिति क्या बोल रही है, क्या संसद में कोई विधेयक आया है, यूसीसी की परिभाषा क्या है?’

उन्होंने कहा, ‘मैं लैंगिक समानता, लोगों को व्यक्तिगत जीवन या उत्तराधिकार के तौर पर हर तरह से न्याय दिलाने के पक्ष में हूं, लेकिन इसका एक उचित प्रारूप होना चाहिए. हम उन मुद्दों के बारे में बात क्यों नहीं कर रहे हैं, जो इस विभाजनकारी एजेंडे के मुकाबले कहीं अधिक महत्वपूर्ण हैं.’

उन्होंने कहा कि ऐसा कुछ भी नहीं है, जो स्थायी समिति या संसद में कहा गया हो और यह सिर्फ एक बयानबाजी वाला राजनीतिक भाषण है जो प्रतिक्रियाएं पैदा करता है.

पायलट ने कहा, ‘हमें उन मुद्दों पर बात करनी है, जो लोगों के लिए मायने रखते हैं. वह कहीं अधिक महत्वपूर्ण है. उन्होंने गुगली फेंकी है, अब इस पर चर्चा करते रहिए. बहस जारी रहेगी. प्रस्ताव के बारे में किसी को कुछ नहीं पता. केंद्र सरकार जान-बूझकर ध्यान भटकाने का काम करती है, ताकि महंगाई पर कोई चर्चा न हो.’

मालूम हो कि समान नागरिक संहिता का अर्थ है कि सभी लोग, चाहे वे किसी भी क्षेत्र या धर्म के हों, नागरिक कानूनों के एक समूह के तहत बंधे होंगे.

समान नागरिक संहिता को सभी नागरिकों, चाहे वे किसी भी धर्म के हों, के लिए विवाह, तलाक, गोद लेने और उत्तराधिकार जैसे व्यक्तिगत मामलों को नियंत्रित करने वाले कानूनों के एक समान समूह के रूप में संदर्भित किया जाता है. वर्तमान में विभिन्न धर्मों के अलग-अलग व्यक्तिगत कानून (Personal Law) हैं.

विधि आयोग ने 14 जून को राजनीतिक रूप से संवेदनशील इस मुद्दे पर सार्वजनिक और मान्यता प्राप्त धार्मिक संगठनों सहित हितधारकों से विचार मांगकर एक नई परामर्श प्रक्रिया शुरू की थी.

यूसीसी का कार्यान्वयन दशकों से भाजपा के एजेंडे में रहा है, लेकिन बीते जून महीने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा मध्य प्रदेश में एक रैली के दौरान इसकी जोरदार वकालत करने के बाद इसे लेकर नए सिरे से राजनीतिक विमर्श शुरू हो गया है.

इसके बाद मेघालय, मिजोरम और नगालैंड में विभिन्न संगठनों ने इसके खिलाफ विरोधी तेवर अपना लिए हैं. छत्तीसगढ़ सर्व आदिवासी समाज ने इसे आदिवासियों की पहचान और पारंपरिक प्रथाओं लिए खतरा बताया है.

विपक्षी दलों ने मोदी के बयान की आलोचना करते हुए कहा था कि प्रधानमंत्री कई मोर्चों पर उनकी सरकार की विफलता से ध्यान भटकाने के लिए विभाजनकारी राजनीति का सहारा ले रहे हैं. मुस्लिम संगठनों ने भी प्रधानमंत्री की यूसीसी पर टिप्पणी को गैर-जरूरी बताया था.

बीते 5 जुलाई को ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) ने भारत के विधि आयोग को पत्र लिखकर यूसीसी के प्रति अपना विरोध दोहराया और कहा है कि ‘बहुसंख्यकवादी नैतिकता’ को अल्पसंख्यक समुदायों की धार्मिक स्वतंत्रता और अधिकारों पर हावी नहीं होना चाहिए.

इसके अलावा उत्तर-पूर्व के राज्य मिजोरम के मुख्यमंत्री जोरामथांगा ने भारत के विधि आयोग को पत्र लिखकर कहा था कि यूसीसी सामान्य रूप से जातीय अल्पसंख्यकों और विशेष रूप से मिजो समुदाय के हितों के खिलाफ है. वहीं, मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड के. संगमा भी कह चुके हैं कि यूसीसी अपने मौजूदा स्वरूप में भारत की भावना के खिलाफ है.

बीते फरवरी महीने में मिजोरम विधानसभा ने समान नागरिक संहिता को लागू करने के किसी भी प्रयास का विरोध करते हुए एक सर्वसम्मत प्रस्ताव पारित किया था.

मालूम हो कि समान नागरिक संहिता भारतीय जनता पार्टी के प्रमुख मुद्दों में से एक रहा है. वर्ष 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में यह भाजपा के प्रमुख चुनावी वादों में शुमार था. उत्तराखंड के अलावा मध्य प्रदेशअसमकर्नाटक और गुजरात की भाजपा सरकारों ने इसे लागू करने की बात कही थी.

उत्तराखंड और गुजरात जैसे भाजपा शासित कुछ राज्यों ने इसे लागू करने की दिशा में कदम उठाया है. नवंबर-दिसंबर 2022 में संपन्न गुजरात और हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में भी समान नागरिक संहिता को लागू करना भाजपा के प्रमुख मुद्दों में शामिल था.

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