क़ानूनी प्रक्रिया के बग़ैर पुलिस किसी पत्रकार का फोन ज़ब्त नहीं कर सकती: केरल हाईकोर्ट

केरल हाईकोर्ट ने एक मलयाली दैनिक समाचार पत्र के पत्रकार की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया, जिसमें पुलिस को उनका फोन सौंपने का निर्देश देने की मांग की गई थी. अदालत ने कहा कि सीआरपीसी के प्रावधानों के उल्लंघन में पत्रकार का मोबाइल फोन पुलिस अधिकारियों द्वारा ज़ब्त नहीं किया जा सकता.

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(फोटो साभार: swarajyamag.com)

केरल हाईकोर्ट ने एक मलयाली दैनिक समाचार पत्र के पत्रकार की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया, जिसमें पुलिस को उनका फोन सौंपने का निर्देश देने की मांग की गई थी. अदालत ने कहा कि सीआरपीसी के प्रावधानों के उल्लंघन में पत्रकार का मोबाइल फोन पुलिस अधिकारियों द्वारा ज़ब्त नहीं किया जा सकता.

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नई दिल्ली: केरल हाईकोर्ट ने सोमवार को कहा कि उचित कानूनी प्रक्रिया का पालन किए बिना किसी पत्रकार का मोबाइल फोन पुलिस द्वारा जब्त नहीं किया जा सकता है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, यह टिप्पणी तब आई जब जस्टिस पीवी कुन्हिकृष्णन की पीठ मलयालम दैनिक ‘मंगलम’ के पत्रकार जी. विशाकन द्वारा दायर एक याचिका पर विचार कर रही थी, जिसमें पुलिस को उनका फोन सौंपने का निर्देश देने की मांग की गई थी, जिसे पिछले सप्ताह जब्त कर लिया गया था.

मलयालम वेब पोर्टल ‘मरुनादन मलयाली’ के संपादक शजन स्कारिया के खिलाफ एक मामले के सिलसिले में जब पुलिस ने विशाकन के घर पर तलाशी ली तो उनका फोन जब्त कर लिया था.

स्कारिया कथित तौर पर माकपा विधायक पीवी श्रीनिजिन को ‘जान-बूझकर अपमानित’ करने के लिए एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत एक आपराधिक मामले का सामना कर रहे हैं.

अदालत ने पुलिस को उन परिस्थितियों के बारे में बयान दर्ज करने का निर्देश दिया जिनके तहत पत्रकार का फोन जब्त किया गया था.

मामले की अगली सुनवाई 21 जुलाई तय करते हुए अदालत ने कहा, ‘याचिकाकर्ता की शिकायत यह है कि पुलिस ने उसे किसी भी अपराध में आरोपित किए बिना उसका मोबाइल फोन जब्त कर लिया है और वह किसी भी आपराधिक मामले में गवाह भी नहीं है.’

न्यायाधीश ने आगे कहा, ‘मेरी सुविचारित राय है कि सीआरपीसी के प्रावधानों के उल्लंघन में पत्रकार का मोबाइल फोन पुलिस अधिकारियों द्वारा जब्त नहीं किया जा सकता. अगर किसी आपराधिक मामले के संबंध में मोबाइल फोन आवश्यक है, तो उन वस्तुओं को जब्त करने से पहले प्रक्रियाओं का पालन किया जाना चाहिए.’

अदालत ने कहा कि सिर्फ इसलिए कि किसी पत्रकार को अपने फोन पर किसी अपराध के बारे में कुछ जानकारी मिली होगी, उचित प्रक्रियाओं का पालन किए बिना फोन को जब्त नहीं किया जा सकता है.

अदालत ने यह भी जोड़ा कि इस मामले में आरोप थे कि याचिकाकर्ता और यहां तक कि उसके परिवार के सदस्यों को भी परेशान किया गया था. अदालत ने कहा, ‘इसकी इजाजत नहीं दी जा सकती.’

न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, वकील जयसूर्या भारतन के माध्यम से दायर याचिका में पत्रकार जी. विशाकन ने दावा किया कि पुलिस अधिकारियों ने बीते 3 जुलाई को उनके घर पर छापा मारा, तलाशी ली और मलयालम वेब पोर्टल ‘मरुनादन मलयाली’ के संपादक शजन स्कारिया के बारे में पूछा. फिर उन्होंने उन्हें पुलिस स्टेशन बुलाया, जहां उनका फोन जब्त कर लिया.

पत्रकार ने अदालत से आग्रह किया कि उनका मोबाइल वापस करने के लिए अंतरिम निर्देश जारी किया जाए, क्योंकि यह उनकी आजीविका का एकमात्र स्रोत है.

याचिकाकर्ता ने दलील दी है कि उसके घर की तलाशी अनधिकृत थी, क्योंकि उन्हें कोई पूर्व नोटिस नहीं दिया गया था, न ही अधिकारियों के पास कोई वारंट था.

विशकन ने यह भी दावा किया कि वह एससी/एसटी अधिनियम के तहत मामले में आरोपी नहीं थे और उनके खिलाफ कोई सबूत नहीं था. उन्होंने कहा कि आरोपी स्कारिया के साथ उनका एकमात्र संबंध पारिश्रमिक के लिए कभी-कभार समाचार साझा करना था.

उन्होंने अपने घर पर की गई कथित अवैध तलाशी के लिए पुलिस के खिलाफ कार्रवाई की भी मांग की है.

न्यू इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, केरल हाईकोर्ट द्वारा कुन्नाथुनाड निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाले विधायक पीवी श्रीनिजिन द्वारा एलमक्कारा पुलिस में दर्ज कराई गई शिकायत में स्कारिया की अग्रिम जमानत याचिका खारिज करने के कुछ दिनों बाद पुलिस ने ऑनलाइन पोर्टल के खिलाफ कार्रवाई तेज कर दी थी.

विधायक श्रीनिजिन द्वारा पुलिस में शिकायत दर्ज कराने के बाद आरोप लगाया गया कि ऑनलाइन पोर्टल चैनल ने जानबूझकर फर्जी खबरें फैलाकर उन्हें बदनाम किया है. इसके बाद स्कारिया ने गिरफ्तारी से सुरक्षा की मांग करते हुए विशेष अदालत का रुख किया था.

विशेष अदालत ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि उपहासपूर्ण और अपमानजनक टिप्पणियों वाले वीडियो का प्रकाशन कथित अपराधों को आकर्षित करने के लिए पर्याप्त है, इसलिए एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम की धारा 18 के तहत अग्रिम जमानत पर रोक लागू रहेगी.

इसके बाद स्कारिया ने हाईकोर्ट का रुख किया, लेकिन उसने सत्र अदालत के आदेश को बरकरार रखा.