मणिपुर हिंसा पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा- हम क़ानून व्यवस्था नहीं चला सकते, यह सरकार का काम है

मणिपुर ट्राइबल फोरम (दिल्ली) और मणिपुर विधानसभा की हिल एरिया कमेटी के अध्यक्ष द्वारा दायर दो अलग-अलग याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उसके समक्ष हो रही कार्यवाही को हिंसा को बढ़ावा देने के मंच के रूप में इस्तेमाल न किया जाए.

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सुप्रीम कोर्ट. (फोटो साभार: सुभाशीष पाणिग्रही/Wikimedia Commons. CC by SA 4.0)

मणिपुर ट्राइबल फोरम (दिल्ली) और मणिपुर विधानसभा की हिल एरिया कमेटी के अध्यक्ष द्वारा दायर दो अलग-अलग याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उसके समक्ष हो रही कार्यवाही को हिंसा को बढ़ावा देने के मंच के रूप में इस्तेमाल न किया जाए.

सुप्रीम कोर्ट. (फोटो साभार: सुभाशीष पाणिग्रही/Wikimedia Commons. CC by SA 4.0)

नई दिल्ली: मणिपुर में स्थिति को नियंत्रित करने में अपनी भूमिका सीमित बताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि स्थिति को नियंत्रण में लाना निर्वाचित सरकार की जिम्मेदारी है.

मणिपुर ट्राइबल फोरम (दिल्ली) और मणिपुर विधानसभा की हिल एरिया कमेटी के अध्यक्ष द्वारा दायर दो अलग-अलग याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ ने सोमवार (10 जुलाई) को याचिकाकर्ताओं से कहा कि उसके समक्ष हो रही कार्यवाही को हिंसा को बढ़ावा देने के मंच के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए और वकीलों से विभिन्न जातीय समूहों के खिलाफ आरोप लगाते वक्त संयम बरतने के लिए कहा.

सीजेआई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की दो सदस्यीय पीठ ने राज्य की स्थिति पर मणिपुर सरकार द्वारा दायर स्टेटस रिपोर्ट पर ध्यान देते हुए निम्नलिखित टिप्पणी की.

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, मणिपुर ट्राइबल फोरम (दिल्ली) की ओर से पेश हुए वकील कॉलिन गोंजाल्वेज को प्रतिक्रिया देते हुए सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा, ‘हम कानून-व्यवस्था नहीं चला सकते, चुनी हुई सरकार चलाती है. हम आपकी भावनाओं को समझते हैं, लेकिन इस न्यायालय के समक्ष बहस करने के कुछ तौर-तरीके होने चाहिए.’

गोंजाल्वेज ने आरोप लगाया था कि मणिपुर हिंसा ‘सरकार प्रायोजित’ आतंकवाद का मामला है.

एनडीटीवी के अनुसार, उन्होंने मणिपुर में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाली सरकार पर हिंसा भड़काने का आरोप लगाते हुए कहा, ‘यह मामला यूएपीए (गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम) के तहत अधिसूचित सशस्त्र समूहों द्वारा गंभीर (हिंसा) वृद्धि का है. इनका इस्तेमाल सरकार द्वारा किया जा रहा है.’

इस पर कोर्ट ने जवाब देते हुए कहा, ‘हम नहीं चाहते कि इस मंच का इस्तेमाल राज्य में हिंसा को और बढ़ाने के लिए किया जाए.’ इसके बजाय सीजेआई चंद्रचूड़ ने याचिकाकर्ताओं में से एक की ओर से पेश गोंजाल्वेज से राज्य में बढ़ती हिंसा को कम करने के लिए ‘ठोस सुझाव’ देने को कहा.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, सीजेआई ने कहा, ‘हम दोनों पक्षों के वकीलों से यह सुनिश्चित करने का अनुरोध करते हैं कि यह (सुनवाई) राज्य में पहले से मौजूद हिंसा और अन्य समस्याओं को और बढ़ाने का मंच नहीं बनना चाहिए.’

सीजेआई ने कहा, ‘हमें इस तथ्य के प्रति समान रूप से सचेत रहना चाहिए कि हम सुरक्षा तंत्र या कानून प्रवर्तन तंत्र नहीं चला रहे हैं. यदि आप वहां कोई कमी देखते हैं तो हम निश्चित रूप से प्राधिकरणों को निर्देश जारी कर सकते हैं और यह ऐसी चीज है, जिसके लिए हमें दोनों पक्षों की सहायता की आवश्यकता होगी. यह एक मानवतावादी स्थिति है और हम इस तथ्य से अवगत हैं कि एक संवैधानिक न्यायालय के रूप में हमारे पास भारी शक्तियां हैं.’

सीजेआई ने गोंजाल्वेज से कहा, ‘(मणिपुर सरकार द्वारा दायर) स्टेटस रिपोर्ट पर एक नजर डालें. ठोस सुझावों के साथ यहां आएं, हम उन्हें एसजी (सॉलिसिटर जनरल) को देंगे, उनसे इस पर विचार करवाएंगे. कल तक उन्हें तैयार करें.’

इस बीच मणिपुर सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, ‘हम इस तरफ जनता के लिए हैं. याचिकाकर्ता द्वारा इस मामले को अत्यंत संवेदनशीलता के साथ उठाया जा सकता है, क्योंकि किसी भी गलत सूचना से स्थिति बिगड़ सकती है. केंद्र और राज्य सरकार के काफी प्रयासों के बाद हालात सामान्य हो रहे हैं.’

हालांकि, गोंजाल्वेज ने यह कहना जारी रखा कि पिछली सुनवाई में केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा दिए गए आश्वासनों से हिंसा में कोई कमी नहीं आई. उन्होंने यह भी बताया कि मई के मध्य में मौतों की संख्या 10 से बढ़कर अब 110 हो गई है.

इस पर सीजेआई ने कहा, ‘आपका अविश्वास हमें कानून व्यवस्था संभालने के लिए प्रेरित नहीं कर सकता. यह केंद्र और राज्य के अधीन है.’

सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर ट्राइबल फोरम (दिल्ली) की याचिका खारिज की 

डेक्कन हेराल्ड की रिपोर्ट के अनुसार, शीर्ष अदालत ने (मंगलवार 11 जुलाई) को मणिपुर ट्राइबल फोरम (दिल्ली) की याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें भारतीय सेना द्वारा कुकी जनजाति के लिए सुरक्षा की मांग की गई थी.

कोर्ट ने कहा कि सेना और अर्धसैनिक बलों को ऐसे आदेश जारी करना उचित नहीं होगा. हालांकि, इसने कहा कि यह केंद्र और राज्य सरकारों पर मणिपुर में नागरिकों की सुरक्षा के लिए व्यवस्था करने के लिए दबाव डालेगा.

इस बीच मणिपुर सरकार द्वारा सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में सौंपी गई एक रिपोर्ट से पता चला है कि मणिपुर में दो महीने की हिंसा में 142 लोग मारे गए, जिनमें से अधिकांश मौतें इंफाल पश्चिम, इंफाल पूर्व और चुराचांदपुर जिलों में दर्ज की गईं.

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अदालत ने बीते 3 जुलाई को एक आदेश के माध्यम से राज्य सरकार से स्टेटस रिपोर्ट मांगी थी. मणिपुर के मुख्य सचिव विनीत जोशी द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट में कहा गया है कि पुलिस ने 3 मई से 4 जुलाई के बीच हिंसा के कारण 142 मौतें दर्ज की हैं.