यूसीसी मौजूदा मुस्लिम क़ानून, छठी अनुसूची के क़ानूनों को ख़त्म करने का प्रयास है: महिला संगठन

ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक विमेन एसोसिएशन ने भारत के विधि आयोग को सौंपे गए अपने एक पत्र में कहा है कि समान नागरिक संहिता का प्रयास बड़े पैमाने पर एक समान क़ानून लाने का होगा, जो बहुसंख्यकवादी क़ानून होंगे, न कि ऐसे क़ानून जो महिलाओं को वास्तव में समान अधिकार देते हों.

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ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक विमेन एसोसिएशन (एआईडीडब्ल्यूए) का लोगो. (फोटो साभार: फेसबुक)

ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक विमेन एसोसिएशन ने भारत के विधि आयोग को सौंपे गए अपने एक पत्र में कहा है कि समान नागरिक संहिता का प्रयास बड़े पैमाने पर एक समान क़ानून लाने का होगा, जो बहुसंख्यकवादी क़ानून होंगे, न कि ऐसे क़ानून जो महिलाओं को वास्तव में समान अधिकार देते हों.

ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक विमेन एसोसिएशन (एआईडीडब्ल्यूए) का लोगो. (फोटो साभार: फेसबुक)

नई दिल्ली: भारत के विधि आयोग को सौंपे गए अपने पत्र में ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक विमेन एसोसिएशन (एआईडीडब्ल्यूए) ने कहा है कि अकेले समान नागरिक संहिता (यूसीसी) से महिलाओं को समान अधिकार नहीं मिलेंगे, क्योंकि एकरूपता का मतलब बराबरी नहीं होता है.

व्यक्तिगत कानूनों से निपटने और सुधार के पिछले उपायों में सक्रिय रूप से शामिल होने के संगठन के अनुभव के बारे में बात करते हुए जारी एक एक बयान में कहा गया है, ‘हम दृढ़ता से महसूस करते हैं कि यूसीसी मौजूदा मुस्लिम कानून और आदिवासी क्षेत्रों से संबंधित छठी अनुसूची के तहत आने वाले कानूनों को खत्म करने का एक प्रयास है. लोकतांत्रिक मानदंडों को ध्यान में रखते हुए यह सिर्फ इसमें शामिल समुदायों के साथ व्यापक चर्चा के बाद ही किया जा सकता है.’

आगे कहा गया है, ‘हमें आशंका है कि यूसीसी की आवश्यकता पर फिर से विचार करने के बहाने, प्रयास बड़े पैमाने पर एक समान कानून लाने का होगा, जो बहुसंख्यकवादी कानून होंगे, न कि ऐसे कानून जो महिलाओं को वास्तव में समान अधिकार देते हों.’

बयान के अनुसार, ‘जैसा कि पहले कहा गया है, कानून की एकरूपता अपने आपमें महिलाओं के लिए समानता लेकर नहीं आएगी और वास्तव में इसका परिणाम संभवत: सभी समुदायों पर हिंदू कानूनों और इसके लैंगिक पूर्वाग्रहों की नकल को लागू करना होगा.’

एआईडीडब्ल्यूए ने यह भी पूछा है कि विधि आयोग एक बार फिर यूसीसी पर बहस क्यों छेड़ रहा है और जनता की राय मांग रहा है, क्योंकि ‘2018 में 21वां विधि आयोग भी हमारे विचार से सहमत था कि व्यक्तिगत कानून (Personal Law) को महिलाओं के मौलिक अधिकारों, वास्तविक बराबरी समेत, के साथ पंक्तिबद्ध करने के लिए यूसीसी न तो वांछनीय है और न ही आवश्यक है.’

भारत के विधि आयोग के सदस्य सचिव को भेजा गया यह पत्र आयोग द्वारा 14 जून 2023 को जारी किए गए उस सार्वजनिक नोटिस के संदर्भ में है, जिसमें यूसीसी की जरूरत पर विचार मांगे गए थे.

पत्र एआईडीडब्ल्यूए की अध्यक्ष पीके श्रीमती, विधिक सलाहकार एडवोकेट कीर्ति सिंह और महासचिव मरियम धवले की ओर से जारी किया गया है.

एआईडीडब्ल्यूए के देश भर में एक करोड़ से अधिक सदस्य हैं.

पत्र में कहा गया है कि 21वें विधि आयोग ने इस मुद्दे पर व्यापक साक्ष्य लिए थे, व्यापक शोध किया था, कई सेमिनारों और चर्चाओं में भाग लिया था और तब राय दी थी कि यूसीसी के लिए समय उपयुक्त नहीं है.

एआईडीडब्ल्यूए ने 21वें विधि आयोग की तब दी गई राय को भी उद्धृत किया है, जो इस प्रकार है, ‘प्रचलित व्यक्तिगत कानूनों के विभिन्न पहलू महिलाओं को वंचित करते हैं. इस आयोग का मानना है कि यह असमानता की जड़ में व्याप्त मतभेद नहीं, भेदभाव है. इस असमानता को दूर करने के लिए आयोग ने मौजूदा पारिवारिक कानूनों में कई तरह के संशोधनों का सुझाव दिया है.’

इसके साथ ही, आयोग ने यूसीसी को गैरजरूरी बताया था.

एसोसिएशन की ओर से कहा गया है, ‘हम अस्पष्ट शब्दों वाले नोटिस, जो विधि आयोग की संकल्पना का कोई खाका प्रदान नहीं करता है, के जरिये इस कवायद को फिर से शुरू करने की जरूरत नहीं समझ पा रहे हैं. इसके अलावा, एक महीने की बेहद सीमित अवधि के भीतर राय मांगने से हमें लगता है कि इस मुद्दे पर काम कर रहे विभिन्न संगठनों और लोगों की राय जानने का यह कोई गंभीर प्रयास नहीं है, बल्कि यह महज एक औपचारिकता है.’

इसके अनुसार, ‘ऐसा लगता है कि विधि आयोग का एजेंडा किसी भी तरह यूसीसी की सिफारिश करना है, क्योंकि विभिन्न राज्यों की भाजपा सरकार और खुद प्रधानमंत्री ने हाल ही में इसके पक्ष में बात की है.

इसमें आगे कहा गया है, ‘हमें इस बात पर भी आश्चर्य है कि विधि आयोग ने विशेष रूप से केवल विभिन्न धार्मिक निकायों से उनकी राय मांगी है. यूसीसी एक ऐसा मुद्दा है, जो महिलाओं के अधिकारों और समानता से संबंधित है और विधि आयोग को समुदायों की महिलाओं समेत इस मुद्दे पर काम करने वाले सभी लोगों को प्राथमिकता देनी चाहिए. इसलिए सरकार के आदेश पर इस मुद्दे को फिर से उठाने की वर्तमान कवायद ज्यादातर महिला संगठनों और समूहों और अल्पसंख्यक समुदायों की इच्छाओं के खिलाफ यूसीसी लाने की है, जिन्होंने इसकी मांग नहीं की थी.’

कहा गया है, ‘यह स्पष्ट है कि इस एजेंडे को उत्तराखंड जैसे राज्यों में भाजपा के नेतृत्व वाली विभिन्न सरकारों द्वारा भी सक्रिय रूप से आगे बढ़ाया जा रहा है, जिन्होंने खुले तौर पर समान नागरिक संहिता लाने के अपने इरादे की घोषणा की है.’

एआईडीडब्ल्यूए ने लिखा है, ‘जहां तक महिलाओं के समान अधिकारों के लिए सुधारों का सवाल है, वर्तमान सरकार का ट्रैक रिकॉर्ड खराब है. इसने कभी भी लैंगिक न्याय को प्राथमिकता नहीं दी या महिलाओं के लिए एक भी सुधार नहीं किया. उदाहरण के लिए कुछ हिंदू व्यक्तिगत कानूनों में सुधार की कई मांगों के बावजूद सरकार द्वारा इन कानूनों को बदलने और महिलाओं के लिए न्यायसंगत कानून लाने के लिए कोई कार्रवाई नहीं की गई है.’

इसमें हिंदू-मुस्लिम महिलाओं के सामने व्याप्त वर्तमान चुनौतियों और उनकी जरूरतों समेत संपत्ति और जमीन पर उन्हें उत्तराधिकार न मिलने, ऑनर किलिंग, प्रेम विवाह और अंतरधार्मिक विवाह में आने वाली समस्याओं आदि का उदाहरण सहित उल्लेख करते हुए विधि आयोग से अनुरोध किया गया है कि वह सिर्फ इसलिए इस मुद्दे को दोबारा न उठाए क्योंकि सरकार यूसीसी लाने के लिए प्रतिबद्ध है.

एआईडीडब्ल्यू की ओर से कहा गया है, ‘हमारा मानना है कि यूसीसी की सिफारिश करने का निर्णय लेने से पहले विधि आयोग को महिला संगठनों, समूहों और इस मुद्दे से संबंधित अन्य लोगों- विशेषकर अल्पसंख्यक समुदायों की महिलाओं और आदिवासी महिलाओं से व्यापक रूप से परामर्श करना चाहिए.’

इस रिपोर्ट और पूरे पत्र को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.