बिहार जेल नियमों में संशोधन के बाद गोपालगंज के तत्कालीन जिलाधिकारी जी. कृष्णैया की हत्या के दोषी आनंद मोहन सिंह को बीते 27 अप्रैल को रिहा कर दिया गया था. कृष्णैया की पत्नी ने सुप्रीम कोर्ट में जेल नियमों में संशोधन को चुनौती दी है.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट में बिहार सरकार ने गोपालगंज के तत्कालीन जिलाधिकारी जी. कृष्णैया की हत्या मामले में दोषी ठहराए और आजीवन कारवास की सजा काटने वाले पूर्व सांसद आनंद मोहन सिंह की रिहाई का बचाव किया.
आनंद मोहन को रिहा करने के अपने फैसले को सही ठहराते हुए बिहार सरकार ने कहा कि हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहे किसी दोषी को सिर्फ इसलिए छूट से इनकार नहीं किया जा सकता, क्योंकि मारा गया पीड़ित एक लोक सेवक था.
उल्लेखनीय है कि 1994 में गोपालगंज के तत्कालीन जिलाधिकारी जी. कृष्णैया की कथित रूप से आनंद मोहन सिंह द्वारा उकसाई गई भीड़ ने हत्या कर दी थी. गैंगस्टर से नेता बने सिंह को 2007 में बिहार की एक निचली अदालत ने मौत की सजा सुनाई थी. हालांकि, पटना हाईकोर्ट ने इसे आजीवन कारावास में बदल दिया था, जिसे 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखा था.
बीते 10 अप्रैल को बिहार सरकार ने ड्यूटी पर एक लोक सेवक की हत्या के दोषियों के लिए जेल की सजा को कम करने पर रोक लगाने वाले खंड को हटा दिया था. अपनी अधिसूचना में राज्य के कानून विभाग ने कहा था कि नए नियम उन कैदियों के लिए है, जिन्होंने 14 साल की वास्तविक सजा या 20 साल की सजा काट ली है. उसके बाद 27 अप्रैल को आनंद मोहन को सहरसा जेल से रिहा कर दिया गया था.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, बिहार सरकार ने अपने हलफनामे में यह कहते हुए कि राज्य की छूट नीति में न्यायिक हस्तक्षेप की सीमित गुंजाइश है, कहा, ‘किसी पीड़ित की स्थिति छूट देने या अस्वीकार करने का कारक नहीं हो सकती. प्रतिवादी नंबर 4 (आनंद मोहन) की छूट पर नीति के अनुसार और निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार विचार किया गया था.’
इसमें तर्क दिया गया कि विभिन्न प्रासंगिक कारकों पर ध्यान देने के बाद लोक सेवकों की हत्या के दोषियों को उम्रकैद की समय-पूर्व रिहाई के खिलाफ प्रतिबंध को हटाने के लिए 2012 के जेल नियमों को 10 अप्रैल को बदल दिया गया था और यह भी तथ्य है कि दिल्ली, पंजाब और हरियाणा जैसे अन्य राज्यों द्वारा बनाए गए समान नियमों में ऐसा कोई अंतर मौजूद नहीं है.
सरकार ने 10 अप्रैल की अधिसूचना के कारण बताते हुए कहा, ‘आम जनता या लोक सेवक की हत्या की सजा एक समान है. एक ओर आम जनता की हत्या के दोषी आजीवन कारावास की सजा पाने वाले कैदी को समय से पहले रिहाई के लिए पात्र माना जाता है और दूसरी ओर किसी लोक सेवक की हत्या के दोषी आजीवन कारावास की सजा पाने वाले कैदी को समय-पूर्व रिहाई के लिए विचार किए जाने के लिए पात्र नहीं माना जाता है. पीड़ित की स्थिति के आधार पर भेदभाव को दूर करने की मांग की गई थी.’
इसमें कहा गया कि प्रासंगिक रिपोर्ट अनुकूल होने के बाद मोहन को रिहा कर दिया गया. नीतीश कुमार सरकार ने कहा कि उन्होंने अपनी कैद के दौरान तीन किताबें लिखीं और जेल में सौंपे गए कार्यों में भी भाग लिया.
मालूम हो कि मारे गए आईएएस अधिकारी की पत्नी उमा कृष्णैया ने मोहन की समय-पूर्व रिहाई को चुनौती देते हुए 29 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था. उनकी याचिका में 10 अप्रैल के जेल नियमों में संशोधन को चुनौती दी गई है, जिसने आनंद मोहन की रिहाई का मार्ग प्रशस्त किया. याचिका में ये तर्क भी दिया गया कि राज्य सरकार 14 साल के अंत में किसी भी व्यक्ति को यांत्रिक रूप से रिहा नहीं कर सकती है.
आनंद मोहन को 2007 में दोषी ठहराया गया था, जब 2002 की छूट नीति प्रचलन में थी. 2002 की नीति में ड्यूटी पर लोक सेवकों की हत्या के दोषियों को समय से पहले रिहा करने से भी इनकार किया गया है.