बुंदेलखंड: केन नदी पर फैलता अवैध खनन का साम्राज्य

विशेष: बुंदेलखंड में केन नदी की लोअर स्ट्रीम का लगभग 106 किलोमीटर हिस्सा, जो मध्य प्रदेश के पन्ना ज़िले में अजयगढ़ से लेकर उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में चिल्ला घाट तक फैला है, बेतहाशा अवैध खनन के कारण अपनी मूल संरचना खो चुका है.

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केन नदी के किनारे अवैध रेत खनन करते ट्रकों की कतार. (सभी फोटो: सतीश मालवीय)

विशेष: बुंदेलखंड में केन नदी की लोअर स्ट्रीम का लगभग 106 किलोमीटर हिस्सा, जो मध्य प्रदेश के पन्ना ज़िले में अजयगढ़ से लेकर उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में चिल्ला घाट तक फैला है, बेतहाशा अवैध खनन के कारण अपनी मूल संरचना खो चुका है.

केन नदी के किनारे अवैध रेत खनन करते ट्रकों की कतार. (सभी फोटो: सतीश मालवीय)

बांदा/पन्ना/छतरपुर: गंभीर सूखे का त्रास झेलने वाली बुंदेलखंड की बड़ी आबादी की प्यास बुझाने और सिंचाई का जिम्मा केन नदी पर है, जो आज अवैध खनन की वजह से बदहाल हो चुकी है. 427 किलोमीटर लंबी इस नदी की लोअर स्ट्रीम का लगभग 106 किलोमीटर हिस्सा, जो मध्य प्रदेश के पन्ना जिले में अजयगढ़ से लेकर उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में चिल्ला घाट तक फैला है, बेतहाशा अवैध खनन के कारण अपनी मूल संरचना खो चुका है.

केन के कैचमेंट क्षेत्र में सालाना औसत बारिश 734 से 1100 मिमी के बीच है. ये अर्द्धशुष्क क्षेत्र की नदी है. कई शोध बताते हैं कि भविष्य में सबसे बुरा प्रभाव नदी की लोअर स्ट्रीम पर पड़ेगा, जिसके चलते इस क्षेत्र को भारी भूमि क्षरण और फ़्लैश फ्लड का सामना करना पड़ सकता है.

क्षेत्र के अवैध खनन के पड़ताल की यात्रा 29 मई की सुबह बांदा शहर से 26 किलोमीटर उत्तर की ओर खप्टिहा कलां गांव की तरफ निकलने से शुरू हुई, जहां रास्ते में बांदा-लखनऊ हाईवे पर बड़ी संख्या में बड़े डंफरों की कतारें मिलीं. एक तिराहे से खप्टिहा कलां की ओर मुड़ते हुए ये कतारें ज्यादा घनी और लंबी हो जाती हैं. इस सड़क की क्षमता इतने भारी वाहनों के भार को ढोने की नहीं है.

बांदा: खप्टिहा कलां

खेरई गांव से एक कच्चे रास्ते से होते हुए खनन क्षेत्र खंड 300/3खप्टिहा कलां पहुंचने पर यहां केन नदी का बेहद बिगड़ा हुआ रूप देखने को मिलता है. नदी एक पतली धारा में बदल चुकी है जिसे खनन माफिया ने डंफरों के आने-जाने के लिए मिट्टी के कच्चे बांध से बांध रखा है. नदी की सतह पर डंफर रेसिंग ट्रैक की तरह दौड़ रहे हैं, दर्जनों पोकलेन मशीन नदी के बीच से रेत निकालने में जुटी हुई हैं.

सरकारी कागजों में यहां खनन गतिविधि बंद है. खप्टिहा कलां में 356/1 व 356/3 रेत खनन की खदानें भी हैं, जिसकी खनन कंपनी को 2020 में ब्लैकलिस्ट कर दिया गया था.

खप्टिहा कलां के बाद सांडी गांव के खनन खंड संख्या 7 पहुंचे. यहां नदी के हालात बहुत भयावह हैं. इसमें नदी में रेत खत्म हो चुकी है इसलिए नदी कि तलहटी में स्थित खेत को खदान का हिस्सा बनाया है जिसमें 7 से 8 एकड़ क्षेत्र में कई फीट गहरे गड्डे बनाए गए हैं जिनके अंदर दर्जनों पोकलेन मशीनें और सेकड़ो डंफर रेत खनन में लगे हुए हैं.

खप्टिहा 100/3 खनन क्षेत्र खनन माफिया द्वारा क़िस्त जमा न करने के चलते बंद दिखाया जाता है, पर इसमें अवैध खनन 29 मई तक जारी था. 3 जून को इसी खंड में अवैध खनन माफिया द्वारा बनाए गड्डे में चार बहनें डूब गई थीं, जिनमें से दो बच्चियों की  जान चली गई.

सांडी गांव के 67 वर्षीय रामआश्रय निषाद मिले. वे कहते हैं, ‘केन नदी में खनन तो 1982 से चल रहा है पर वो छोटे स्तर पर होता था लेकिन अब पिछले 10-12 सालों में खनन बहुत बढ़ गया है. रेत खदानों ने नदी की धारा बदल दी है, पहले जहां नदी सालभर बहती थी अब पतली धारा है. खनन ने नदी के पाट को चौड़ा कर दिया है. जबसे खदान चली है तब से हैंडपंप और कुएं का जलस्तर भी कम हो गया है.’

रामआश्रय निषाद.

उन्होंने आगे बताया, ‘नदी में रेत नहीं बची, तो माफिया किनारे के खेतों से भूमिधरी की जमीन से रेत निकाल रहा है. माफिया किसी किसान से हज़ार से पंद्रह सौ रुपये प्रति ट्रक में कॉन्ट्रैक्ट कर लेता है तो कहीं किसी किसान से जोर-जबरदस्ती से करता है. जो नहीं करता है तो माफिया सरकारी अधिकारीयों से मिलकर उसका खसरा नदी और पानी में दिखा देता है .इससे कई खेत खदान में जा रहे हैं.कटाव हो रहा हो रहा जिससे बाढ़ का खतरा बढ़ गया है.’

नदी किनारे बगीचा डेरा के अशोक निषाद (परिवर्तित नाम ) कहते हैं, ’15 साल पहले नदी में साल भर नाव चलती थी पर अब लोग पैदल ही नदी पार कर लेते हैं, सिर्फ बारिश के बाद कुछ महीने ही नाव चलती है बाकि छह सात महीने नाव चलाने वाले बेरोजगार बैठते हैं. अब तो खनन की वजह से गर्मियों में यहां खीरा और ककड़ी की फसल भी नहीं हो पा रही है.’

अशोक के अनुसार, नदी किनारे उनके डेरे तक तलछट में हाथी की लंबाई जितनी गहराई तक रेत निकाली गई. डेरे की दूसरी तरफ हमीरपुर जिले का गुढ़ा गांव है. अशोक बताते हैं, ‘पहले नदी गुढ़ा गांव कि तरफ ही बहती थी पर वहां खनन माफिया ने 50 फीट गहराई तक खनन किया और अब नदी इस तरफ बहने लगी.’

स्थानीय एक्टिविस्ट और पत्रकार आशीष सागर दीक्षित केन नदी में हो रहे अवैध खनन पर गहरी नज़र रखते हैं. उनके हिसाब से खनन माफिया ने केन नदी की हत्या कर दी है. आशीष कहते हैं, ‘केन नदी हर लूट का केंद्र बना हुआ है. यहां सभी पर्यावरणीय नियम-कायदे ताक पर रखकर अवैध खनन जारी है. पांच साल के लिए पट्टे पर मिली खदान एक वर्ष में खाली कर दी जा रही है. नदी में रेत नहीं बची तो तलहटी से किसानों की भूमिधरी से रेत निकाली जा रही है.’

उन्होंने जोड़ा, ‘मई 2020 मे खप्टिहा की मौरम खदान 356/1 व 356/2 संचालक नव आरुषि ट्रेडर्स एवं सदर तहसील की लड़ाका पुरवा खदान संचालक यूफोरिया माइंस एंड मिनरल्स के खिलाफ अवैध खनन मामले में इलाहबाद उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया था जिसके बाद यह दोनों फर्म ब्लैकलिस्ट की गई व जुर्माना हुआ था. आज बांदा से ब्लैकलिस्ट कंपनी यूफोरिया माइंस एंड मिनरल्स (मुख्य मालिक हरप्रीत मल्होत्रा, पिपरिया, होशंगाबाद, कार्यालय भोपाल ) मध्य प्रदेश मे पन्ना की जिगनी खदान चला रही है. एक जगह ब्लैकलिस्ट कंपनी दूसरी जगह कैसे खदान चला रही है?’

आशीष अवैध खनन के मामले पर काफ़ी मुखर हैं और इसमें खनन कंपनियों की अफसरों और नेताओं की मिलीभगत की बात करते हैं. उनका कहना है कि यह संगठित अपराध है जिसे खनन माफिया प्रशासनिक अधिकारी और राजनेता मिलकर चला रहे हैं.

केन नदी.

वे आरोप लगाते हैं, ‘पोकलैंड के नीचे दबकर अक्सर मजदूर मर जाते है जिनकी एफआईआर दर्ज नही होती. समझौता कराकर आवाज दबाते है क्योंकि पुलिस व प्रशासन मामला न्यायालय व सरकार तक नही जाने देता. वैध पट्टे पर अवैध तरीके अपनाकर खनन किया जा जाता है. पांच वर्ष की खदान एक साल में खाली हो जाती है. नदी में मशीनों से खनन प्रतिबंधित है, केवल नदी से 25 मीटर दूर रहकर रास्ता निर्माण और मौरम लोडिंग-अनलोडिंग को जेसीबी प्रयोग की अनुमति है. नदी क्षेत्र में 3 मीटर तक मौरम निकाल सकते है. जहां जलधारा कम है वहां वो भी नहीं. नदी का सीमांकन होता है.’

उन्होंने आगे बताया, ‘बांदा प्रशासन ने खप्टिहा 100/3 और अमलोर खादर खंड 7 को लेकर एनजीटी में झूठी रिपोर्ट दाखिल की है. रिपोर्ट के मुताबिक यहां नदी का प्रवाह बाधित नहीं है. 100/3 का दृश्य आप खुद देख चुके है. सबसे बड़ी बात की अमलोर खादर की तरह खप्टिहा 100/3 को प्रशासन ने क़िस्त जमा न होने के चलते बंद दिखाया है. जबकि यह खंड में मौरम न होने से किसानों की निजी भूमि से लगातार खनन कर रही है.’

बांदा में किले के पास मातादीन निषाद का परिवार कई पीढ़ियों से नदी के जरिये आजीविका चलाता आ रहा है पर अब मुश्किल हो रही है.

मातादीन बताते हैं, ‘नदी में अब रेत नहीं है, सब माफिया ले गया. पहले हमारे एरिया में जो मछली मिलती रही है जैसे- महाशीर, कतला, रुहो, ब्रासकार्ड अब नहीं मिलती. 5-6साल पहले हम एक जाल डालते थे और 4-5 झोले मछली निकल आती थी, पर अब एक क्या, दस जाल फेंको तो एक झोला तो क्या खुद खाने के खाने के लिए भी निकल आए तो बहुत है.’

बांदा से आगे नदी के किनारे पिराई गांव है, जहां एक तरफ पन्ना जिले का भवानी पुरवा है तो दूसरी तरफ मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले के पिराई और दौलतपुर गांव.

दौलतपुर और भवानी पुरवा के बीच पुरानी बंद खदानें हैं. खनन से यहां नदी का पाट बहुत चौड़ा हो गया है. दौलतपुर गांव की तलहटी से रेत निकाली गई हैं और ये भी गुढ़ा गांव की तरह एक ऊंचे टीले में बदल गया है जिसके फ़्लैश फ्लड के दौरान भूस्खलन का शिकार होने का डर है.

यहां खनन से खेत और नदी में इस तरह कटाई करी गई है कि नदी एक विशाल सूखे मैदान में छोटी जलधारा-सी नजर आती है. पिराई गांव के नजदीक एक खदान अभी भी चल रही है जहां दो लिफ्टर और तीन पोकलेन मशीनों से अवैध खनन जारी था.

पन्ना: रामनई गांव

पिराई के बाद पन्ना जिले के रामनई गांव पहुंचने पर 85 साल की बूढ़ीबाई मिलती हैं. बूढ़ी बाई उन लोगों में से हैं, जिन पर साल 2020 में पन्ना प्रशासन ने अवैध खनन करने का आरोप लगाते हुए 22 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया था.

बूढ़ी बाई को जुर्माने के बारे में कोई खबर नहीं है, उन्हें बस ये पता है की हर महीने पेशी के लिए अजयगढ़ जाना होता था. बताया गया कि बूढ़ी बाई के सात बीघा खेत से खनन माफिया ने रेत निकाला था.

बूढ़ी बाई.

इसी तरह मोतीलाल पाल के खेत से भी रेत निकाली गई थी और उन पर जुर्माना भी लगा था. हालांकि इसके बारे में पूछने पर मोतीलाल नाराज हो जाते हैं और कहते हैं, ‘हमने बकायदा एग्रीमेंट किया था रेत ठेकेदार के साथ.’

रामनई गांव के किनारे दो किलोमीटर लंबी और सौ मीटर चौड़ी खाई-सी दिखाई देती है. इसी खाई में मोतीलाल का खेत है. बताया गया कि बूढ़ी बाई, मोतीलाल पाल, रामआश्रय पाल, जयपाल समेत गांव के एक दर्जन से ज्यादा किसानों के खेत से अवैध रूप से रेत निकाला गया था.

इसी गांव के प्रेम शंकर राजपूत बताते हैं, ‘रामनई के साथ दूसरे गांव के किसानों पर भी जुर्माना लगा था. सभी लगभग अनपढ़ किसान है. रेत खोदने वाला खोदकर चला गया, अब तहसील और वकीलों के चक्कर इन्हें लगाने पड़ रहे हैं. नदी से रेत निकालने के लिए ठेकेदार ने खेतीधरी की जमीन को रास्ता बना दिया और 2 किलोमीटर जमीन खराब कर दी.’

प्रेम शंकर आगे कहते हैं, ‘रामनई के पास अब नदी में रेत नहीं है इसलिए यहां खेतों से रेत निकाली गई. पर पास के बरौली, नेहरा और जिगनी में खूब धड़ल्ले से नदी में से लिफ्टरों और पोकलेन मशीनों से रेत निकाली जा रही है. वहां किसी बाहरी आदमी का जाना खतरनाक है, ठेकेदार ने दूसरे राज्यों के कुख्यात अपराधी अपने यहां रखे हुए हैं जो आए दिन लोगों से मारपीट करते हैं, इनका बहुत आतंक है यहां.’

पन्ना: बीरा सुनहरा खदान 

आगे एक सड़क बीरा सुनहरा खदान की तरफ जाती है. खदान से रेत भरकर आने वाले ट्रकों और डंफरों से गिरते पानी से सारा रास्ता कीचड़ से भरा है. यहां भी सड़क पर ट्रकों और डंफरों की लंबी कतारें हैं. इसी सड़क से पन्ना के बीरा गांव को छतरपुर के चंदला से जोड़ने वाले पुल के नीचे दोनों तरफ भारी अवैध खनन चल रहा है जिसमें दोनों तरफ आधा-आधा दर्जन पोकलेन मशीनें नदी के बीचोंबीच से पानी में रास्ता बनाकर रेत निकालने में लगी हुई थी. यहां रेत खनन विवाद में फायरिंग भी हो चुकी है.

बीरा गांव में सुरेंद्र पांडेय, विजय शर्मा, सूजन तिवारी, मुन्ना तिवारी मिले. इनका कहना है, ‘हम थक गए हैं खनन माफिया की शिकायत करते-करते. यहां सब नेता चाहे वो किसी भी पार्टी से हो, अफसर सभी माफिया से मिले हुए हैं. इतने बड़े-बड़े डंफर हमारे गांव के बीच से निकलते हैं आए दिन दुर्घटनाएं होती हैं. डंफर निकलने से गांव के कई मकानों में दरारें पड़ गई हैं. हमारी खड़ी फसल को डंफर रौंदकर खदान तक रास्ता बनाते हैं.’

मुन्ना तिवारी कहते हैं, ‘हमारी नदी के चिथड़े-चिथड़े कर दिए हैं माफिया ने. हमें डर है कि इस बरसात में चंदला से जोड़ने वाला पुल न गिर जाए एक दम उसके नीचे से रेत निकाली जा रही है.खुली लूट चल रही है. सारा अवैध खनन है, सरकार के इससे एक पैसा नहीं मिल रहा है. रोज यहां से 500 ट्रक निकल रहे हैं रेत के.’

अजयगढ़ अवैध खनन का गढ़ कहा जाने लगा है. यहां के कांग्रेस नेता भरत मिलन पांडेय मिले, जो अपने चुनाव मैनिफेस्टो में अवैध खनन को भी शामिल कर चुके हैं.

भरत मिलन कहते हैं, ‘अवैध खनन करने वाले खुले आम उपद्रव मचाए हुए हैं. यहां अवैध खनन कोई छुपाने वाली बात नहीं है न कोई रहस्य है क्योंकि यहां प्रशासन और सरकार ही माफिया है डंके की चोट पर खुलेआम सबमें शामिल हैं.

भरत मिलन स्थानीय भाजपा नेता, जो पार्टी और सरकार में अहम पदों पर हैं, पर अवैध खनन में सीधे शामिल होने का आरोप लगाते हैं. और अवैध खनन पर सारे सबूत देने का वादा करते हैं, हालांकि उन्होंने ऐसा किया नहीं.

गौरतलब है कि भरत मिलन पर भी अवैध खनन करने को लेकर दो बार एफआईआर हो चुकी है.

क्या है प्रशासन का जवाब 

अवैध खनन पर कार्रवाई के सवाल पर पन्ना के जिला खनिज अधिकारी रवि पटेल कहते हैं, ‘हम समय समय पर कार्रवाई करते रहते हैं. नदी पन्ना और छतरपुर जिलों की सीमा के बीच बहती है इसका अवैध खनन करने वालों को फायदा मिलता है. जब हम अवैध खनन करने वालों को पकड़ने जाते हैं तो वो दूसरे जिले की सीमा में भाग जाते हैं.’

अगला सवाल करने पर उन्होंने बाद में कॉल करने को कहा और फिर कॉल रिसीव नहीं किया.

बांदा के जिला खनिज अधिकारी वीरेंद्र सिंह ने भी फोन करने पर कोई स्पष्ट जवाब नहीं दिया और फोन काट दिया.

क्या होंगे पर्यावरणीय प्रभाव

वकील और शोधार्थी सेतु बंद उपाध्याय कहते हैं, ‘सरकारें रेत खनन के लिए पर्यावरणीय अनुमति प्रदान करती है पर खनन क्षेत्रों का सीमांकन किया नहीं जाता. अगर किया भी जाता है तो सही से नहीं किया जाता इसलिए आवंटित क्षेत्र से कहीं अधिक खनन अवैध रूप से होता है.’

सेतु के अनुसार, ‘भारत में रेत माफिया एक विस्तृत संगठित अपराध सिंडिकेट की तरह काम करता है जिसमें सबसे नीचे खतनाक अपराधी, खनन ठेकेदार,अफसर और शीर्ष पर राजनेता श्रेणीबद्ध रहते हैं और उच्च मांग वाले रेत के धंधे में मुनाफाखोरी करते हैं. रेत माफिया भारत में सबसे शक्तिशाली, हिंसक, अभेद्य और शातिर आपराधिक संगठनों में से एक है.

अदालतों में पर्यावरणीय मामलों को देखने वाले वकील राहुल चौधरी का कहना है, ‘अवैध खनन हो रहा है इसको सिद्ध करना बहुत मुश्किल होता है. रेत का खुला बाजार है, मुनाफा और मांग ज्यादा है इसलिए हर स्तर पर लोग इसमें शामिल होते हैं और गैर जिम्मेदाराना ढंग से ये धंधा चलाते हैं. इसमें मुनाफा ज्यादा जोड़ा रहता है इसलिए पर्यावरणीय मंजूरी से भी बाहर जाकर खननकर्ता खनन करता है. स्थानीय प्रशासन की जिम्मेदारी इस पर नज़र रखने की होती है. कोर्ट और एनजीटी तब तक असहाय होते हैं जब तक उन तक सही रिपोर्ट्स नहीं पहुंचे.’

नदियों में खनन पर रिसर्च करने वाले गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के विशाल कांबोज बताते हैं, ‘देखिए, नदी कभी खत्म नहीं होती वो बस अपना कैरेक्टर बदल लेती है. अवैध खनन से उसकी चैनल मोरफोलॉजी बदल जाती है, रिवर बेल्ट का क्षरण और बाढ़ का क्षेत्र बढ़ जाता है जिससे किनारे के खेतों से उपजाऊ मिट्टी बह जाती है.’

उनका कहना है, ‘ऐसा नहीं है कि नदी में खनन नहीं होना चाहिए, उसके अंदर जमा सेडिमेंट को समय-समय पर निकाला जाना चाहिए पर सस्टेनबल और पर्यावरणीय सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए मैन्युअली होना चाहिए. पोकलेन या किसी और मशीनरी से तो बिल्कुल भी खनन नहीं करना चाहिए. इस तरह से किया गया खनन नदी की बायो-डाइवर्सिटी को तबाह कर देता है. नदियां कई जलीय जीवों का निवास स्थान हैं. बुंदेलखंड जैसे इलाकों में अवैध खनन पानी में फ्लोराइड की मात्रा तो बढ़ाएगा ही साथ ही किनारे के इलाकों का जलस्तर भी कम होगा.’

(सतीश मालवीय स्वतंत्र पत्रकार हैं.)

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