एनएपीएम के साथ देशभर के तीन हज़ार से अधिक सामाजिक कार्यकर्ताओं और नागरिकों ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को संबोधित अपील में मणिपुर के हालात संभालने में विफल रहने के लिए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और मणिपुर के सीएम एन. बीरेन सिंह के इस्तीफ़े की मांग की है.
नई दिल्ली: देशभर के तीन हज़ार से अधिक सामाजिक कार्यकर्ताओं और नागरिकों ने मणिपुर की हिंसा के मद्देनज़र राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से वहां का दौरा करने और दो महीने से जारी हिंसा के बीच प्रताड़ना का शिकार बनी कुकी-ज़ो महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करने की अपील की है.
जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (एनएपीएम) के साथ देश भर के सैकड़ों आंदोलनों और संगठनों का प्रतिनिधित्व करते हुए करीब 3,200 से अधिक सामाजिक कार्यकर्ताओं, शिक्षाविदों, कलाकारों, सेवानिवृत्त अधिकारियों और नागरिकों ने रविवार को राष्ट्रपति से मणिपुर की ‘बेहद गंभीर परिस्थिति’ में तत्काल हस्तक्षेप की मांग करते हुए अनुरोध किया गया कि वे राज्य का दौरा करें.
इस बयान में कहा गया है, ‘लगभग तीन महीनों से मणिपुर अभूतपूर्व उथल-पुथल और हिंसा की स्थिति में है. जातीय हिंसा को रोकने और सामान्य स्थिति बहाल करने में केंद्र और राज्य की सरकार दयनीय रूप से विफल हो चुकी है.’ अपील में केंद्र और राज्य सरकार की भूमिका की भर्त्सना करते हुए कहा गया है कि वे न केवल सामान्य स्थिति बहाल करने में विफल रही हैं बल्कि वास्तव में जातीय तनाव को गहरा करने और बहुसंख्यक हिंसा को बढ़ावा देने के लिए जिम्मेदार है.
हस्ताक्षरकर्ताओं का कहना है कि इस विफलता के चलते केंद्रीय गृह मंत्री और मणिपुर के मुख्यमंत्री को नैतिक और कानूनी जिम्मेदारी लेते हुए तुरंत पद छोड़ने के लिए कहा जाना चाहिए.
अपील में राष्ट्रपति से सभी प्रताड़ित समुदायों, विशेष रूप से जनजातीय महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा करने और यह सुनिश्चित करने का भी आग्रह किया गया है कि अनुसूचित जनजातियों की सूची में कोई असंवैधानिक और अनुचित बदलाव न हो.
अपील में कहा गया है, ‘महिलाओं के शरीर को राज्य और वर्चस्ववादी, पितृसत्तात्मक ताकतों द्वारा क्रूर हिंसा के लिए उपयोग किया जाना बिल्कुल अस्वीकार्य और अनुचित है. एक तरफ जब इन हिंसाओं के पीछे बहुसंख्यक भीड़ और पुलिस सीधे तौर पर दोषी हैं, ऐसे में सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोगों की निष्क्रियता और मिलीभगत पर भी सवाल उठाने की जरूरत है. यहां तक कि राष्ट्रीय महिला आयोग जैसी संस्थाएं, जिन्हें एक महीने से अधिक समय से यौन हिंसा और बलात्कार की शिकायतें मिल रही थीं, उनके द्वारा लंबे समय तक कोई कार्रवाई नहीं की गई! बेहद दुख की बात है कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा भी बहुत देर से हस्तक्षेप किया गया.’
हस्ताक्षरकर्ताओं ने कहा है कि राष्ट्रपति सभी उत्पीड़ित लोगों, विशेष रूप से कुकी-ज़ो जनजातीय महिलाओं को न्याय का आश्वासन दें, जिन्होंने अत्यधिक पीड़ा व यौन, शारीरिक और मानसिक हिंसा का सामना किया है.
कार्यकर्ताओं और नागरिकों ने मांग की है कि हिंसा के सभी कृत्यों की समयबद्ध न्यायिक जांच सुनिश्चित की जाए और आरोपियों के खिलाफ उचित कार्रवाई हो. साथ ही, ऐसी जांच में सभी स्तरों के प्रशासनिक अधिकारियों और नेताओं की जवाबदेही तय की जानी चाहिए.
इसके अलावा यह अपील भी की गई है कि राष्ट्रपति वन कानूनों में हुए ‘प्रतिगामी संशोधनों’ पर सहमति न दें, जिसका उत्तर-पूर्व और पूरे भारत में वन क्षेत्र और वन-आश्रित समुदायों पर दूरगामी, प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा.
अपील पर हस्ताक्षर करने वालों में डॉ. रूपरेखा वर्मा, मेधा पाटकर, हर्ष मंदर, प्रो. वर्जिनियस खाखा, रूथ मनोरमा, मीना कंदासामी, डॉ. गेब्रियल डिट्रिच, प्रफुल्ल सामंतारा, एलिना होरो, एस.आर दारापुरी, प्रो. संदीप पांडे, एग्नेस खारशिंग समेत अन्य लोग भी शामिल हैं.
इस पूरे बयान और सभी हस्ताक्षरकर्ताओं के नाम नीचे दिए गए लिंक पर पढ़ सकते हैं.