असम में निर्वाचन आयोग द्वारा किए जा रहे विधानसभा और लोकसभा क्षेत्रों के परिसीमन को कांग्रेस, सीपीआई (एम), तृणमूल कांग्रेस समेत 10 राजनीतिक दलों ने चुनौती दी है.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को असम में निर्वाचन आयोग द्वारा किए जा रहे विधानसभा और लोकसभा क्षेत्रों के परिसीमन पर रोक लगाने से इनकार कर दिया.
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ यह सुनने के लिए सहमत हुई थी कि क्या जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 8ए, जो चुनाव आयोग को चार पूर्वोत्तर भारतीय राज्यों अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर और नागालैंड में परिसीमन करने की अनुमति देती है, संवैधानिक रूप से वैध है.
हालांकि पीठ ने कहा कि यह उस प्रक्रिया पर रोक नहीं लगाएगी जो पहले ही शुरू हो चुकी है.
2008 में पूरे हुए अंतिम परिसीमन के दौरान केंद्र ने असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, नगालैंड और जम्मू और कश्मीर (तब एक राज्य) को शामिल नहीं किया था. 2020 में सरकार ने छूटे हुए इन राज्यों के लिए परिसीमन आयोग का गठन किया. इसके सालभर बाद जब सरकार ने आयोग का कार्यकाल बढ़ाया तो पूर्वोत्तर के चार राज्यों में इस प्रक्रिया को छोड़ दिया- इसके बाद केवल जम्मू कश्मीर के निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन किया गया.
बता दें कि धारा 8ए, जिसे 2008 में एक संशोधन के माध्यम से शामिल किया गया था, के अनुसार राष्ट्रपति, यदि सहमति दें कि क्षेत्र के चार राज्यों में मौजूदा स्थितियां परिसीमन के अनुकूल हैं, तो परिसीमन को स्थगित करने के आदेश को रद्द कर सकती हैं. कानून के मुताबिक, इसके बाद चुनाव आयोग परिसीमन प्रक्रिया शुरू कर सकता है.
फरवरी 2020 में राष्ट्रपति द्वारा जारी एक आदेश में कहा गया था कि ‘इन राज्यों में सुरक्षा स्थिति में महत्वपूर्ण सुधार हुआ है’, जिससे चलते सरकार इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाने की अधिसूचना जारी करने में सक्षम हुई, जिसका एक मसौदा प्रस्ताव जून 2023 में जारी किया गया था.
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार की सुनवाई में पहले से चल रही प्रक्रिया पर रोक लगाने से इनकार करते हुए कहा, ‘स्थगन रद्द होने के बाद परिसीमन की प्रक्रिया शुरू हो गई है… इस स्तर पर, जब परिसीमन शुरू हो गया है, तो जून 2023 के मसौदा प्रस्ताव को ध्यान में रखते हुए प्रक्रिया में बाधा डालना उचित नहीं होगा. इसलिए, संवैधानिक चुनौती बरक़रार रखते हुए हम चुनाव आयोग को कोई और कदम उठाने से रोकने वाला आदेश जारी नहीं कर रहे हैं.’
अदालत कांग्रेस, सीपीआई (एम), तृणमूल कांग्रेस समेत 10 राजनीतिक दलों की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिन्होंने असम में परिसीमन प्रक्रिया को चुनौती दी थी.
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश होते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि संविधान कहता है कि परिसीमन जनसंख्या के आधार पर होना चाहिए, लेकिन असम में इसे ‘जनसंख्या घनत्व’ के आधार पर करने की मांग की गई है. उन्होंने इस प्रक्रिया पर रोक लगाने की मांग की.
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि चुनाव आयोग जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 8ए के अनुसार काम कर रहा है और जब तक अदालत इसे रद्द नहीं कर देती तब तक इसे अच्छा कानून माना जाना चाहिए.
उन्होंने यह भी जोड़ा कि इस प्रावधान को क़ानून में शामिल किए जाने के बाद 15 वर्षों में पहली बार चुनौती दी जा रही है.
गौरतलब है कि असम में स्थानीय दल भी इस प्रक्रिया का विरोध कर रहे हैं, जिसमें सत्तारूढ़ भाजपा के सहयोगी दल भी शामिल हैं.
भारतीय निर्वाचन आयोग द्वारा प्रकाशित मसौदा प्रस्ताव के अनुसार, परिसीमन के बाद असम में लोकसभा और विधानसभा क्षेत्रों की संख्या अपरिवर्तित रहेगी, जो कि क्रमश: 14 और 126 हैं, लेकिन चार विधानसभा सीटें सामान्य श्रेणी से आरक्षित की श्रेणी में डाल दी गई हैं, और बोडोलैंड टेरिटोरियल काउंसिल में तीन सीटें और शामिल कर दी गई हैं.
कुछ निर्वाचन क्षेत्रों- संसदीय और विधानसभा- का नाम बदलने का प्रस्ताव है और कथित तौर पर मुस्लिम मतदाताओं की शक्ति को कम करने के लिए कई की सीमाओं को फिर से निर्धारित किया जाएगा.
जहां ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) का कहना है कि परिसीमन प्रस्ताव का मसौदा धार्मिक और जातीय आधार पर मतदाताओं को ध्रुवीकृत करने की भाजपा की कोशिश को दर्शाता है, वहीं भाजपा के सहयोगी असम गण परिषद (एजीपी) ने अपने विधायकों के कब्जे वाले कुछ निर्वाचन क्षेत्रों के विलय का विरोध किया है.