मणिपुर हिंसा में जान गंवाने वालों में कुकी लोगों की संख्या दो तिहाई, 181 मृतक में 113 कुकी:​ रिपोर्ट

एक मीडिया रिपोर्ट में सरकारी आंकड़ों का विश्लेषण करके बताया गया है कि मणिपुर में बीते 3 मई से शुरू हुई जातीय हिंसा में 181 लोग मारे गए हैं, जिनमें कुकी लोगों की संख्या 113 है, जबकि मेईतेई समुदाय के मृतकों की संख्या 62 है. मई की शुरुआत में हिंसा के पहले सप्ताह में 10 मेईतेई लोगों की तुलना में 77 कुकी लोग मारे गए थे.

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(प्रतीकात्मक फोटो साभार: ट्विटर/@AmarnathAldona)

एक मीडिया रिपोर्ट में सरकारी आंकड़ों का विश्लेषण करके बताया गया है कि मणिपुर में बीते 3 मई से शुरू हुई जातीय हिंसा में 181 लोग मारे गए हैं, जिनमें कुकी लोगों की संख्या 113 है, जबकि मेईतेई समुदाय के मृतकों की संख्या 62 है. मई की शुरुआत में हिंसा के पहले सप्ताह में 10 मेईतेई लोगों की तुलना में 77 कुकी लोग मारे गए थे.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: ट्विटर/@AmarnathAldona)

नई दिल्ली: मणिपुर में जारी तनाव के बीच एक विश्लेषण बताता है कि इस जातीय हिंसा का दंश झेल रहे पीड़ितों में दो-तिहाई लोग कुकी समुदाय से हैं.

द टेलीग्राफ ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स द्वारा किए गए आंकड़ों के विश्लेषण के हवाले से बताया है कि बीते 3 मई से शुरू हुई जातीय हिंसा में जान गंवाने वाले 181 लोगों में से 113 कुकी समुदाय के हैं और 62 लोग मेईतेई समुदाय से हैं.

टेलीग्राफ ने लिखा है कि इस सप्ताह रॉयटर्स द्वारा समीक्षा किए गए नए सरकारी आंकड़ों के अनुसार, कुकी समुदाय ने हिंसा का अधिक खामियाजा भुगता है. वे मेईतेई आबादी का एक तिहाई हिस्सा हैं, लेकिन पीड़ितों में उनकी संख्या दो तिहाई है.

आंकड़ों के अनुसार, मरने वालों की संख्या 181 है, जिनमें 113 कुकी और 62 मेईतेई समुदाय के लोग शामिल हैं. मई की शुरुआत में हिंसा के पहले सप्ताह में 10 मेईतेई लोगों की तुलना में 77 कुकी लोग मारे गए थे.

मणिपुर स्थित एक संघीय सुरक्षा अधिकारी ने रॉयटर्स को बताया, ‘दोनों पक्षों के पास उपलब्ध संसाधन समान नहीं हैं. यह बराबरी के लोगों के बीच की लड़ाई नहीं है.’

सरकारी अनुमान के अनुसार, राज्य शस्त्रागार से चुराए गए 2,780 हथियार, जिनमें राइफलें, बंदूकें और पिस्तौल शामिल हैं, मेइतेई लोगों के पास हैं, जबकि कुकी समुदाय के लोगों के पास 156 हथियार हैं.

वहीं, मेईतेई-प्रभुत्व वाली राज्य पुलिस को भी पक्षपाती बताया जा रहा है, जबकि सेना के जवानों को शांति बनाए रखने का आदेश दिया गया है, लेकिन लड़ाकों को निशस्त्र करने का नहीं.

म्यांमार की सीमा से लगा मणिपुर 32 लाख की आबादी के साथ भारत के सबसे छोटे राज्यों में से एक है. जहां कुकी राज्य की आबादी का 16 फीसदी हैं, को वहीं मेईतेई 53 फीसदी हैं.

ज्यादातर कुकी, मेईतेई के प्रभुत्व वाले राजधानी इंफाल और आसपास के घाटी क्षेत्र को छोड़कर पहाड़ियों की ओर भाग गए हैं.

सुरक्षा अधिकारियों ने कहा कि ज्यादातर हिंसा और हत्याएं मणिपुर की तलहटी के पास बफर जोन में हुई हैं, जहां नियमित रूप से गोलीबारी होती रहती है.

राष्ट्रीय राजमार्ग का विस्तार जहां मेईतेई-प्रभुत्व वाला बिष्णुपुर जिला कुकी-नियंत्रित चुराचांदपुर से मिलता है, वह बफर जोन में से एक है, जहां सबसे खराब संघर्ष देखा गया है.

इतिहासकार और लेखक रामचंद्र गुहा ने स्थिति को ‘अराजकता और गृहयुद्ध का मिश्रण तथा राज्य प्रशासन का पूरी तरह से फेल होना’ बताया.

गुहा ने एक टेलीविजन साक्षात्कार में कहा, ‘गंभीर राष्ट्रीय संकट के समय में यह प्रधानमंत्री की विफलता है. नरेंद्र मोदी को बुरी खबरों से जुड़ना पसंद नहीं है और उन्हें उम्मीद है कि वह किसी तरह इससे बाहर निकल आएंगे.’

रिपोर्ट में बताया गया है कि प्रधानमंत्री कार्यालय पीएमओ और राज्य सरकार के प्रवक्ता ने टिप्पणी के अनुरोधों का जवाब नहीं दिया.

कुकी नागरिक समाज समूहों के एकीकृत संगठन ‘कुकी इनपी मणिपुर’ के महासचिव के. हाओपु गंगटे ने संघर्ष का दोष कुकी जमीन पर मेईतेई द्वारा अपना प्रभुत्व स्थापित करने की इच्छा को दिया. उन्होंने कहा कि कुकी लोग अब भारत में एक नया राज्य चाहते हैं.

गंगटे ने कहा, ‘जब तक हम राज्य का दर्जा हासिल नहीं कर लेते, हम नहीं रुकेंगे. हम केवल मेइतेई से नहीं लड़ रहे हैं, हम सरकार से भी लड़ रहे हैं.’

मेईतेई समुदाय का प्रमुख संगठन ‘मेईतेई लीपुन’ के संस्थापक प्रमोत सिंह ने कहा कि सभी मेईतेई संघर्ष का समर्थन करते हैं.

रिपोर्ट के अनुसार, इंफाल के पास अपने घर के बाहर पिस्तौल के साथ बैठे हुए उन्होंने कहा कि उनका गुट कुकियों से तब तक लड़ता रहेगा, जब तक वे मणिपुर से अलग राज्य बनाने की मांग बंद नहीं कर देते.

उन्होंने कहा, ‘मेईतेई की ओर से लड़ाई जारी रहेगी. यह तो बस शुरुआत है.’