जम्मू कश्मीर: पहाड़ियों को एसटी दर्जा देने वाले विधेयक का विरोध, कहा- मणिपुर जैसे हालात होंगे

केंद्र सरकार ने लोकसभा में पेश एक विधेयक में जम्मू कश्मीर के भाषाई अल्पसंख्यक पहाड़ी समुदाय को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने की बात की है. इसके विरोध में गुर्जर और बकरवाल समुदाय ने कहा कि सरकार सूबे में एक समुदाय को दूसरे समुदाय के ख़िलाफ़ खड़ा करके ‘मणिपुर जैसे हालात’ पैदा कर रही है.

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‘ऊंची’ जाति के पहाड़ियों को जनजातीय दर्जा देने संबंधी विधेयक के विरोध में रियासी जिले के धरमरी में बीते 28 जुलाई को ऑल रिज़र्व्ड कैटेगरीज़ जॉइंट एक्शन कमेटी के सदस्यों ने प्रदर्शन किया. (फोटो साभार: फेसबुक/Mohd Avais Choudhary)

केंद्र सरकार ने लोकसभा में पेश एक विधेयक में जम्मू कश्मीर के भाषाई अल्पसंख्यक पहाड़ी समुदाय को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने की बात की है. इसके विरोध में गुर्जर और बकरवाल समुदाय ने कहा कि सरकार सूबे में एक समुदाय को दूसरे समुदाय के ख़िलाफ़ खड़ा करके ‘मणिपुर जैसे हालात’ पैदा कर रही है.

‘ऊंची’ जाति के पहाड़ियों को जनजातीय दर्जा देने संबंधी विधेयक के विरोध में रियासी जिले के धरमरी में बीते 28 जुलाई को ऑल रिज़र्व्ड कैटेगरीज़ जॉइंट एक्शन कमेटी के सदस्यों ने प्रदर्शन किया. (फोटो साभार: फेसबुक/Mohd Avais Choudhary)

श्रीनगर: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार द्वारा ‘ऊंची’ जाति के पहाड़ियों को जनजातीय दर्जा देने के एक विधेयक ने जम्मू कश्मीर में एक बड़ा विवाद खड़ा कर दिया है, जिससे गुर्जर और बकरवाल समुदाय ने अगले महीने सड़कों पर उतरने की धमकी दी है.

केंद्र ने गुरुवार (27 जुलाई) को लोकसभा में संविधान (जम्मू और कश्मीर) अनुसूचित जनजाति आदेश (संशोधन) विधेयक-2023 पेश किया, जिसके तहत जम्मू कश्मीर में भाषाई अल्पसंख्यक पहाड़ी समुदाय को अनुसूचित जनजाति के रूप में अधिसूचित किया जाना तय है.

यदि यह विधेयक पारित हो जाता है तो यह किसी भाषाई समूह को जनजातीय दर्जा देने वाला अपनी तरह का पहला विधेयक होगा. इस तथ्य ने गुर्जर और बकरवाल जनजातियों को नाराज कर दिया है, जिनका आरोप है कि केंद्र सरकार जम्मू कश्मीर में भी एक समुदाय को दूसरे समुदाय के खिलाफ खड़ा करके ‘मणिपुर जैसे’ हालात पैदा कर रही है.

सरकार पर जातीय विभाजन पैदा करने का आरोप

गुर्जर नेता और ऑल रिज़र्व्ड कैटेगरीज़ जॉइंट एक्शन कमेटी (एआरसीजेएसी) के संस्थापक सदस्य तालिब हुसैन ने कहा कि विधेयक का उद्देश्य मुस्लिम-बहुल क्षेत्र में ‘जातीय विभाजन पैदा करना’ है. एआरसीजेएसी का गठन पिछले साल अनुसूचित जनजाति सूची में पहाड़ियों को शामिल करने का विरोध करने के लिए हुआ था.

उन्होंने द वायर को बताया, ‘भाजपा राजनीतिक लाभ के लिए जम्मू कश्मीर में मणिपुर प्रयोग को दोहराना चाहती है. हमारी बेरोजगारी दर देश में सबसे ज्यादा है और लोग दुखी हैं. यहां तक कि डोगरा वोट बैंक भी भाजपा के हाथ से फिसल रहा है, क्योंकि सरकार की गलत नीतियों के चलते उन्होंने अपना व्यापार और अन्य अवसर खो दिए हैं, जिन्हें गैर-स्थानीय लोगों ने हथिया लिया है.’

हुसैन ने कहा, ‘इस विधेयक का उद्देश्य भाजपा की विफलता को छिपाना और लोगों को विभाजित करना है, लेकिन हम इसका पूरी ताकत से विरोध करेंगे.’

राजौरी जिले के एक अन्य गुर्जर नेता जाहिद परवाज़ चौधरी ने कहा कि यह विधेयक भाजपा द्वारा ‘जम्मू कश्मीर के आदिवासी समुदाय की पहचान को नष्ट करके’ वोट बैंक बनाने का एक प्रयास है.

उन्होंने कहा, ‘यह जम्मू कश्मीर के आदिवासियों की पहचान पर हमला है और यह हिमाचल प्रदेश और अब मणिपुर की तरह ही किया जा रहा है. जम्मू कश्मीर के आदिवासी समुदाय इस फैसले को स्वीकार नहीं करेंगे.’

2011 की जनगणना के अनुसार, जम्मू कश्मीर में 8 से 12 लाख पहाड़ी भाषी लोग और लगभग 15 लाख गुर्जर एवं बकरवाल रहते हैं, जिनमें से अधिकांश पीर पंजाल क्षेत्र में रहते हैं, जिसमें जम्मू संभाग के राजौरी और पुंछ जिले शामिल हैं.

जम्मू के रहने वाले संपादक और राजनीतिक विश्लेषक जफर चौधरी ने कहा, ‘दोनों समूह मिलकर जम्मू कश्मीर की 25 विधानसभा सीटों पर चुनाव के नतीजों को प्रभावित कर सकते हैं.’ उन्होंने आगे कहा कि भाजपा पहाड़ियों को लुभाकर इन सीटों पर अपनी संभावनाएं उज्ज्वल करने की उम्मीद कर रही है.

गुर्जर-बकरवाल जनजाति और पहाड़ी समुदाय

गुर्जर-बकरवाल जनजाति और पहाड़ी समुदाय समान सामाजिक और सांस्कृतिक परिवेश साझा करते हैं और साथ में पीर पंजाल क्षेत्र में बहुमत बनाते हैं. गुर्जर ज्यादातर अपनी भैंसों, भेड़ों और बकरियों के साथ कश्मीर और जम्मू क्षेत्रों के बीच घूमकर खानाबदोश जीवन जीते हैं.

दूसरी ओर, पहाड़ी समुदाय जाति और अन्य जातीय विभाजनों वाला एक सामाजिक रूप से व्यवस्थित समुदाय है. इसमें ज्यादातर आर्थिक रूप से संपन्न और सांस्कृतिक रूप से बंधे हुए लोग हैं, जो भाषा के धागे से जुड़ा हुआ है.

केंद्र सरकार द्वारा 2019 में अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद से कश्मीर घाटी में एक ठोस चुनावी आधार पाने के लिए संघर्ष कर रही भाजपा पीर पंजाल क्षेत्र में पैठ बनाने का प्रयास कर रही है, जहां उसे कथित तौर पर गुर्जरों, बकरवालों और पहाड़ियों के भीतर विभाजन पैदा करके नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) जैसी पारंपरिक पार्टियों की संभावनाओं को नुकसान पहुंचाने की उम्मीद है.

25 दिसंबर 2019 को पहाड़ियों के एक प्रतिनिधिमंडल ने समुदाय के लिए एसटी दर्जे की मांग करते हुए केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात की थी. जनवरी 2020 में पहाड़ियों को ओबीसी श्रेणी में 4 प्रतिशत आरक्षण दिया गया था.

एक साल बाद सरकार द्वारा जीडी शर्मा की अध्यक्षता में ‘सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों पर जम्मू कश्मीर आयोग’ की स्थापना की गई. अपनी 2022 की रिपोर्ट में आयोग ने पहाड़ी, पद्दारी, कोली और गड्डा ब्राह्मण समुदायों को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने की सिफारिश की.

नवंबर 2022 में राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने भारत के रजिस्ट्रार जनरल की सिफारिश के बाद प्रस्ताव का समर्थन कर दिया.

गुर्जर नेता चौधरी ने कहा कि पहाड़ियों के लिए एसटी आरक्षण का मुद्दा भाजपा ने राजनीतिक हितों के लिए उठाया है. इस कदम को ‘धोखा’ करार देते हुए उन्होंने दावा किया कि आयोग में आदिवासी समुदायों से कोई सदस्य नहीं था.

उन्होंने कहा, ‘इतने सालों तक एसटी आयोग ने पहाड़ियों को एक आदिवासी समुदाय के रूप में नहीं देखा, लेकिन अचानक उसका मन बदल गया है, क्योंकि भाजपा सत्ता में है. शर्मा आयोग ने राजनीतिक सिफारिशें कीं और राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने आदिवासियों की पहचान पर किए गए इस हमले पर अपनी आंखें मूंद लीं.’

‘जम्मू कश्मीर आदिवासी राज्य बन जाएगा’

एआरसीजेएसी के संस्थापक सदस्य हुसैन ने कहा कि कानून ने किसी भी अल्पसंख्यक समुदाय को आदिवासी दर्जा देने के लिए एक ‘स्पष्ट मानदंड’ निर्धारित किया है.

उन्होंने दावा किया, ‘समुदाय को जातिगत रूप से अलग-थलग या आर्थिक रूप से पिछड़ा होना चाहिए. इन दोनों ही मानदंडों पर पहाड़ी लोग खरे नहीं उतरते. शर्मा आयोग ने अपनी सिफ़ारिश करने से पहले यह देखने की भी परवाह नहीं की कि पहाड़ी एक भी मानदंड पूरा नहीं करते हैं.’

चौधरी ने दावा किया कि पहाड़ी समुदाय में अलग-अलग जातियां हैं और यदि विधेयक पारित हो जाता है तो जम्मू कश्मीर में आदिवासियों की सूची में 300 और जातियां जुड़ जाएंगी. सूची में वर्तमान में केवल पांच जनजातियां शामिल हैं- गुज्जर, बकरवाल, शिना, गद्दी और स्पीति.

उन्होंने कहा, ‘अगर पुंछ के एक बुखारी (जाति का नाम) को आदिवासी दर्जा मिलता है, तो सरकार श्रीनगर में एक बुखारी को इससे कैसे इनकार कर सकती है? इसे परिभाषित करने का कोई मापदंड नहीं है कि पहाड़ी कौन है? पूरा जम्मू कश्मीर आदिवासी राज्य बन जाएगा.’

उन्होंने आगे कहा, ‘अगर भाजपा वास्तव में पहाड़ियों को सशक्त बनाना चाहती है तो उन्हें राजनीतिक आरक्षण प्रदान किया जाना चाहिए, जैसे कि हाल ही में कश्मीरी पंडितों और पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू कश्मीर (पीओके) के शरणार्थियों को दिया गया है. उन्हें आदिवासी दर्जा देने से वे अवसर कम हो जाएंगे, जिनका उद्देश्य गुर्जरों और बकरवालों का सामाजिक और आर्थिक सशक्तिकरण करना है.’

गुर्जर व बकरवाल और पहाड़ी, दोनों ने ही हाल के हफ्तों और महीनों में इस मुद्दे पर केंद्रीय गृह मंत्री से मुलाकात की है, लेकिन बैठकें गतिरोध खत्म करने में विफल रही हैं.

हुसैन ने कहा, ‘सरकार का कहना है कि पहाड़ियों को एसटी का दर्जा देने से गुर्जरों और बकरवालों के आरक्षण लाभ पर कोई असर नहीं पड़ेगा. लेकिन आरक्षण में कोटा के भीतर कोटा का कोई प्रावधान नहीं है.’

बड़े पैमाने पर आंदोलन की तैयारी

अगर केंद्र सरकार ने अपना फैसला वापस नहीं लिया तो जम्मू कश्मीर के आदिवासी बड़े पैमाने पर आंदोलन की तैयारी कर रहे हैं. अगस्त के पहले हफ्ते में जम्मू में एक बड़े विरोध प्रदर्शन की योजना बनाई जा रही है.

खबरों के मुताबिक, दलित नेता चंद्रशेखर आजाद और देश के आदिवासी नेताओं ने आंदोलन को अपना समर्थन दिया है और आने वाले दिनों में जम्मू में एक महापंचायत की भी योजना बनाई जा रही है.

पहाड़ियों को एसटी का दर्जा प्रदान करने के लिए विधेयक लाने का कदम ऐसे समय में उठाया गया है, जब केंद्र सरकार को विवादास्पद ‘भूमिहीनों के लिए भूमि’ योजना को मंजूरी देने के चलते आलोचना का सामना करना पड़ा है.

विपक्ष ने इस योजना को केंद्रशासित प्रदेश में गैर-स्थानीय लोगों को बसाकर मुस्लिम-बहुल क्षेत्र की जनसांख्यिकी को बदलने का लक्ष्य बताया है.

बता दें कि हिमाचल प्रदेश के हाटी समुदाय को आदिवासी दर्जा देकर लुभाने की भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार की कोशिश कोई चुनावी लाभ देने में विफल रही, क्योंकि वह विधानसभा चुनाव हार गई, जबकि मणिपुर में मेइतेई समुदाय को आदिवासी घोषित करने के प्रस्तावित कदम ने राज्य में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शनों और हिंसा को जन्म दिया है.

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