जिन पत्रकारों के पासपोर्ट निलंबित किए गए हैं, उनमें श्रीनगर के एक वरिष्ठ पत्रकार भी शामिल हैं जिन्होंने नई दिल्ली में हिंदुस्तान टाइम्स के साथ संपादक स्तर पर भी काम किया है, जबकि दूसरे दिल्ली की एक पत्रिका में काम करते हैं. उन्होंने बताया कि उनमें से कोई भी किसी आपराधिक मामले में आरोपी नहीं हैं.
श्रीनगर: अधिकारियों ने कुछ पत्रकारों और कश्मीर में कम से कम एक राजनीतिक कार्यकर्ता के पासपोर्ट निलंबित कर दिए हैं, उन्हें ‘भारत की सुरक्षा के लिए खतरा’ बताया गया है. द वायर इसकी पुष्टि कर सकता है.
पासपोर्ट अधिनियम, 1967 की धारा 10(3) को लागू करते हुए श्रीनगर के क्षेत्रीय पासपोर्ट कार्यालय ने कम से कम दो पत्रकारों और एक राजनीतिक कार्यकर्ता सहित अन्य को मेल भेजकर सूचित किया है कि उनके पासपोर्ट निलंबित कर दिए गए हैं.
धारा 10 (3) पासपोर्ट प्राधिकरण को किसी भारतीय नागरिक का पासपोर्ट जब्त करने या रद्द करने का अधिकार देती है, यदि वह ‘भारत की संप्रभुता और अखंडता, भारत की सुरक्षा, किसी देश के साथ भारत के मैत्रीपूर्ण संबंधों, या आम जनता के हित में ऐसा करना आवश्यक समझता है.’
[email protected] से भेजे गए ईमेल में उन्हें नेहरू पार्क के पास बुलेवार्ड रोड पर स्थित श्रीनगर कार्यालय से संपर्क करने का भी निर्देश दिया गया है. द वायर द्वारा देखे गए ईमेल में लिखा है, ‘यदि बताई गई तारीख से पहले संपर्क करने में असमर्थ रहते हैं तो आपके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी.’
श्रीनगर पासपोर्ट अधिकारी देविंदर सिंह ने कहा कि ‘खुफिया एजेंसियों के निर्देश’ हैं, जिसके आधार पर कश्मीरी निवासियों के कुछ पासपोर्ट जब्त किए जा रहे हैं.
सिंह ने विस्तृत जानकारी देने से इनकार करते हुए द वायर को बताया, ‘हमें दर्जनों लोगों के पासपोर्ट निलंबित करने के निर्देश मिले हैं लेकिन मैं सटीक संख्या का खुलासा नहीं कर सकता. उनमें से कुछ को कार्रवाई के बारे में सूचित कर दिया गया है.’
सूत्रों ने कहा कि जिन लोगों के पासपोर्ट जब्त किए जा रहे हैं उनकी सूची केंद्रीय और जम्मू कश्मीर सुरक्षा एजेंसियों द्वारा तैयार की गई है और इसमें कुछ पत्रकारों, शिक्षाविदों, वकीलों, राजनीतिक कार्यकर्ताओं और अन्य लोगों के नाम शामिल हैं.
किसी भी पत्रकार के खिलाफ कोई आपराधिक मामला नहीं
इस सूची में श्रीनगर के एक वरिष्ठ पत्रकार भी शामिल हैं, जिन्होंने कुछ साल पहले कश्मीर में स्थानांतरित होने से पहले नई दिल्ली में द हिंदुस्तान टाइम्स के साथ संपादक स्तर पर भी काम किया है. इसमें एक और पत्रकार शामिल हैं जो दिल्ली की एक पत्रिका में काम करते हैं.
पत्रकारों ने बताया कि उनमें से कोई भी किसी भी आपराधिक मामले में आरोपी नहीं हैं, और उनके पासपोर्ट के निलंबन के कारण के बारे में पासपोर्ट प्राधिकरण द्वारा उन्हें कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है.
हालांकि, कश्मीर पर रिपोर्टिंग के सिलसिले में सुरक्षा एजेंसियां पहले भी इन दोनों से पूछताछ कर चुकी हैं.
एक सूत्र ने कहा कि सूची में कश्मीर के 98 लोग शामिल हैं. एक अन्य ने कहा कि सूची में ‘200 से अधिक’ लोग हैं. हालांकि, अधिकारियों ने उन लोगों की वास्तविक संख्या की पुष्टि नहीं की जिनके पासपोर्ट रद्द किए गए हैं या रद्द होने की प्रक्रिया में हैं.
द वायर ने इस मुद्दे पर अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (कश्मीर) विजय कुमार से संपर्क करने की कोशिश की. हालांकि, बार-बार संपर्क करने के बाद भी उनकी ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई. उनका जवाब आने पर रिपोर्ट में जोड़ा जाएगा.
वहीद पारा के करीबी सहयोगी पीडीपी कार्यकर्ता भी शामिल
एक राजनीतिक कार्यकर्ता, जो पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के साथ काम करते हैं और पार्टी के युवा अध्यक्ष वहीद पारा के करीबी सहयोगी हैं, भी उन लोगों में शामिल है जिनके पासपोर्ट अधिकारियों ने जब्त कर लिए हैं. कार्यकर्ता को भी ‘भारत की सुरक्षा के लिए खतरा’ करार दिया गया है.
बता दें कि पारा 2019 में अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद हिरासत में लिए गए राजनीतिक बंदियों में से एक थे. उन्हें अधिकारियों द्वारा इस साल की शुरुआत में कश्मीर छोड़ने और येल विश्वविद्यालय में एक नेतृत्व कार्यक्रम में शामिल होने से रोक दिया गया था.
सूत्रों ने कहा कि हाल ही में श्रीनगर में जम्मू कश्मीर पुलिस की काउंटर-इंटेलिजेंस यूनिट द्वारा कुछ पत्रकारों को पूछताछ के लिए भी बुलाया गया था. नाम न छापने की शर्त पर द वायर से बात करने वाले कम से कम चार पत्रकारों ने कहा कि जांचकर्ताओं ने उनसे एक ‘चीनी पत्रकार’ के बारे में पूछा था, जिसके बारे में माना जाता है कि उसने हाल ही में कश्मीर का दौरा किया था.
पत्रकारों में से एक ने कहा, ‘मुझसे पूछा गया था कि क्या मैं इस चीनी पत्रकार से मिला था, लेकिन मुझे नहीं पता था कि वे किस बारे में बात कर रहे थे, और मैंने उन्हें यही कहा.’
एक सतत प्रक्रिया
यह पहली बार नहीं है कि अधिकारियों ने उन कुछ कश्मीरी कार्यकर्ताओं और पत्रकारों की आवाजाही पर प्रतिबंध लगाया है, जो राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संगठनों के साथ काम करते हैं. स्वतंत्र अभिव्यक्ति के पक्षधर कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया है कि ‘पत्रकारिता का अपराधीकरण’ प्रत्यक्ष रूप से जम्मू कश्मीर को चलाने वाली केंद्र सरकार द्वारा स्वतंत्र अभिव्यक्ति पर एक व्यापक हमले का हिस्सा है.
इस साल की शुरुआत में श्रीनगर की फोटो जर्नलिस्ट और मैग्नम फाउंडेशन की फेलो 29 वर्षीय सना इरशाद मट्टू को नई दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर इमिग्रेशन अधिकारियों द्वारा अमेरिका के लिए उड़ान भरने से रोक दिया गया था.
भारत में कोविड-19 महामारी की कवरेज के लिए पुलित्जर पुरस्कार जीतने वाली रॉयटर्स की टीम का हिस्सा मट्टू को पहले भी पेरिस जाने से रोक दिया गया था, जहां उन्हें एक किताब के लॉन्च और फोटोग्राफी प्रदर्शनी में भाग लेने के लिए जाना था.
इससे पहले, द हिंदू और तहलका पत्रिका के साथ काम कर चुके श्रीनगर के पत्रकार जाहिद रफीक को अमेरिका के कॉर्नेल विश्वविद्यालय में शिक्षण फेलोशिप के लिए कश्मीर छोड़ने से रोका गया था.
वर्तमान में ऐहतियातन हिरासत के तहत जेल में बंद कम से कम चार कश्मीरी पत्रकार आतंकवाद विरोधी जांच का सामना कर रहे हैं.
ह्यूमन राइट्स वॉच की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2019 में केंद्र सरकार द्वारा जम्मू कश्मीर को दो केंद्रशासित प्रदेशों में विभाजित करने के बाद से कम से कम 35 कश्मीरी पत्रकारों को अपने काम के संबंध में ‘पुलिस पूछताछ, छापे, धमकी, शारीरिक हमले या आपराधिक मामलों’ का सामना करना पड़ा है.’
(इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)