नाबालिग का लिव-इन रिलेशनशिप में रहना अनैतिक और अवैध: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक 17 वर्षीय मुस्लिम लड़के की याचिका को ख़ारिज कर दी जिसमें आपराधिक मुकदमे से संरक्षण की मांग की थी. यह मुक़दमा उनकी 19 वर्षीय हिंदू लिव-इन पार्टनर के परिवार द्वारा दायर किया गया था. कोर्ट ने कहा कि 18 साल से कम उम्र के किसी भी व्यक्ति को बच्चा माना जाता है और कोई बच्चा लिव-इन रिलेशनशिप में नहीं रह सकता.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: Allen Allen/Flickr CC BY 2.0)

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक 17 वर्षीय मुस्लिम लड़के की याचिका को ख़ारिज कर दी जिसमें आपराधिक मुकदमे से संरक्षण की मांग की थी. यह मुक़दमा उनकी 19 वर्षीय हिंदू लिव-इन पार्टनर के परिवार द्वारा दायर किया गया था. कोर्ट ने कहा कि 18 साल से कम उम्र के किसी भी व्यक्ति को बच्चा माना जाता है और कोई बच्चा लिव-इन रिलेशनशिप में नहीं रह सकता.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: Allen Allen/Flickr CC BY 2.0)

नई दिल्ली: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक आदेश में कहा कि एक नाबालिग लिव-इन रिलेशनशिप में नहीं रह सकता क्योंकि यह अनैतिक होने के साथ-साथ अवैध भी होगा.

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में एक 17 वर्षीय मुस्लिम लड़के को एफआईआर पर शुरू किए गए आपराधिक मुकदमे से बचाने की याचिका को खारिज कर दिया. इसे उनकी 19 वर्षीय हिंदू लिव-इन पार्टनर के परिवार द्वारा दायर किया गया था.

यह देखते हुए कि 18 वर्ष से कम उम्र के व्यक्ति को बच्चा माना जाता है, जस्टिस विवेक कुमार बिड़ला और राजेंद्र कुमार की पीठ ने कहा, ‘एक बच्चा लिव-इन रिलेशनशिप में नहीं रह सकता है और यह न केवल अनैतिक होगा, बल्कि अवैध भी है.’

युवक और उनकी लिव-इन पार्टनर द्वारा दायर याचिका में नाबालिग के अपहरण के आरोप में दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग की गई थी, साथ ही मामले में लड़के को गिरफ्तार न करने का अनुरोध भी की किया गया था.

उनकी याचिका खारिज करते हुए पीठ ने 11 जुलाई के अपने आदेश में कहा कि 18 साल से कम उम्र का आरोपी किसी बालिग लड़की के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रहने के आधार पर सुरक्षा नहीं मांग सकता.

पीठ ने आगे कहा, ‘यदि इसकी अनुमति दी जाती है, तो यह एक अवैध गतिविधि पर मुहर लगाने के समान होगा और इस प्रकार यह हमारे समाज के हित में नहीं होगा, और हम ऐसी कानूनी रूप से अस्वीकार्य गतिविधियों को इजाज़त देने के इच्छुक नहीं हैं.’

पीठ ने कहा कि हालांकि ऐसा कोई कानून नहीं है जो लिव-इन रिलेशनशिप पर रोक लगाता हो, लेकिन ऐसे रिश्ते को देश के किसी भी कानून के तहत कोई सुरक्षा नहीं दी गई है, सिवाय इसके कि दो बालिग व्यक्तियों को अपना जीवन जीने का अधिकार है और उस हद तक उनकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा की जानी है.

अदालत ने कहा कि हालांकि, वर्तमान मामले में लड़का बालिग नहीं है और उसे इस तरह के रिश्ते की अनुमति नहीं दी जा सकती है.

अदालत ने यह भी कहा कि मुस्लिम कानून के तहत लिव-इन रिलेशनशिप की अनुमति नहीं है और किरण रावत और अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के हालिया फैसले का हवाला दिया.

अदालत ने कहा कि 18 साल से कम उम्र के किसी भी व्यक्ति को बच्चा माना जाता है और कोई बच्चा लिव-इन रिलेशनशिप में नहीं रह सकता.