उत्तर प्रदेश के इटावा से भारतीय जनता पार्टी के सांसद राम शंकर कठेरिया पर आरोप था कि उन्होंने वर्ष 2011 में आगरा में एक बिजली कंपनी के कर्मचारियों के साथ मारपीट और कार्यालय में तोड़फोड़ की थी. कठेरिया पूर्व में दो बार आगरा से सांसद रहे हैं.
नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश के इटावा से भाजपा सांसद राम शंकर कठेरिया को शनिवार को आगरा की एक विशेष एमपी/एमएलए अदालत ने दो साल की कैद और 50,000 रुपये जुर्माने की सजा सुनाई.
लाइव लॉ के मुताबिक, यह फैसला मारपीट और दंगे के 12 साल पुराने मामले में सुनाया गया.
नवंबर 2011 में, कठेरिया और उनके समर्थकों पर आगरा में टोरेंट पावर लिमिटेड के कुछ कर्मचारियों की पिटाई करने का आरोप लगाया गया था. इस घटना को उन्होंने ‘बढ़े हुए’ बिजली बिल के बारे में मिली एक शिकायत के बाद अंजाम दिया था.
लाइव लॉ ने बताया है कि अदालत ने कठेरिया को आगरा के साकेत मॉल में टोरेंट पावर लिमिटेड कंपनी के कार्यालय में तोड़फोड़ करने का दोषी पाया.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक कठेरिया ने फैसला सुनाए जाने के बाद कहा, ‘मैं फैसले को ऊपरी अदालत में चुनौती दूंगा. मेरे खिलाफ आरोप राजनीति से प्रेरित हैं, क्योंकि पुलिस के आरोपपत्र में अधिकांश गवाहों ने गवाही दी है कि मैं उल्लिखित स्थान पर मौजूद नहीं था. जब मामला दर्ज किया गया तब उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी की सरकार सत्ता में थी. उस समय मेरे खिलाफ कई मनगढ़ंत मामले दर्ज किए जा रहे थे और यह उनमें से एक था.’
फैसले के मुताबिक कठेरिया को इस मामले में आईपीसी की धारा 147 (दंगा करना) और 323 (जानबूझकर चोट पहुंचाना) के तहत दोषी ठहराया गया है. लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, अदालत ने कहा कि अगर आरोपी जुर्माना नहीं जमा करता है तो उसकी सजा तीन महीने बढ़ा दी जाएगी.
कठेरिया के वकील देवेन्द्र सिंह ने कहा, ‘मेरा मुवक्किल निर्दोष है. हम मामले को उच्च अदालत में ले जाने के लिए तैयार हैं और जब तक वह निर्दोष साबित नहीं हो जाते, हम अपने कानूनी प्रयास जारी रखेंगे.’
अभियोजन पक्ष के वकील बीएम कुशवाहा ने दावा किया कि ‘मामला पहले दिन से ही बिल्कुल साफ़ था. हम हैरान हैं कि इसे इतने सालों तक क्यों खींचा गया.’
2009 से इटावा से सांसद चुने जाने से पहले कठेरिया दो बार आगरा से सांसद रहे हैं.
हालांकि, इस मामले में दोषी ठहराए जाने के कारण लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम-1951 की धारा 8 के साथ पढ़े गए संविधान के अनुच्छेद 102(1)(ई) के तहत सांसद के अपनी लोकसभा सदस्यता खोने की संभावना है.
1951 के अधिनियम के अनुसार, यदि किसी व्यक्ति को दो या उससे अधिक कारावास की सजा का दोषी पाया जाता है तो उसे संसद के किसी भी सदन या राज्य विधानसभा/परिषद की सदस्यता से अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा और रिहाई के बाद छह साल की अतिरिक्त अवधि के लिए भी वह चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य माना जाएगा.