मौजूदा प्रेस और पुस्तक पंजीकरण अधिनियम की जगह लाया गया नया विधेयक बीते सप्ताह विपक्ष की अनुपस्थिति में राज्यसभा में ध्वनि मत से पारित हुआ है. एडिटर्स गिल्ड ने कहा कि यह ‘कोई प्रकाशन कैसे काम करता है, इसमें अधिक दख़ल देने और मनमानी जांच के लिए सरकार की शक्तियों को विस्तृत’ करता है.
नई दिल्ली: एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने रविवार (6 अगस्त) को प्रेस एंड रजिस्ट्रेशन ऑफ पीरियोडिकल बिल, 2023 के ‘कठोर प्रावधानों’ पर चिंता व्यक्त की और लोकसभा अध्यक्ष से इसे संसदीय चयन समिति को सौंपने का आग्रह किया.
मौजूदा प्रेस और पुस्तक पंजीकरण अधिनियम 1867 (पीआरबी) का स्थान लेने के लिए लाया गया विधेयक 3 अगस्त को विपक्ष की अनुपस्थिति में राज्यसभा में ध्वनि मत से पारित हुआ था.
रिपोर्ट के अनुसार, गिल्ड अध्यक्ष सीमा मुस्तफा, महासचिव अनंत नाथ और कोषाध्यक्ष श्रीराम पवार द्वारा हस्ताक्षरित बयान में कहा गया कि नया कानून ‘एक प्रकाशन कैसे काम करता है, इसमें अधिक दखल देने और मनमानी जांच करने के लिए सरकार की शक्तियों को विस्तृत करता है’. साथ ही कहा कि कुछ प्रावधान ‘अस्पष्ट’ हैं और अस्पष्टता के ‘प्रेस की स्वतंत्रता पर प्रतिकूल प्रभाव’ हो सकते हैं.
बयान में कहा गया है कि नया विधेयक प्रेस रजिस्ट्रार के अलावा सरकारी एजेंसियों को इसके कार्यों का संचालन करने की अनुमति देता है, जिसमें पुलिस और अन्य कानून प्रवर्तन एजेंसियां भी शामिल हो सकती हैं और इस कदम को ‘बेहद परेशान करने वाला’ बताया.
पत्रकारों के निकाय ने इस ओर इशारा किया कि विधेयक की धारा 4(1) और 11(4) सरकार को यह अनुमति देती है कि वह ‘आतंकवादी कृत्य या गैरकानूनी गतिविधि’ या ‘राज्य की सुरक्षा के खिलाफ कुछ भी करने’ के आरोप में दोषी ठहराए गए लोगों को पत्रिका निकालने के अधिकार से वंचित कर सके.
बयान में कहा गया है, ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबाने के लिए पत्रकारों और मीडिया संगठनों के खिलाफ यूएपीए के साथ-साथ राजद्रोह समेत अन्य आपराधिक कानूनों के उदार और मनमाने इस्तेमाल को देखते हुए गिल्ड इन नए प्रावधानों के लाए जाने और और जिस तरह से सरकारों की आलोचना करने वाले व्यक्तियों को समाचार प्रकाशन लाने के अधिकार से वंचित करने के लिए उनका दुरुपयोग किया जा सकता है, से बहुत चिंतित है.’
इसने समाचार संगठनों के परिसरों में प्रवेश करने की सरकार की शक्ति को जारी रखने की भी आलोचना की और इसे ‘अत्यधिक दखल’ बताया.
विधेयक की धारा 19 केंद्र सरकार को नियम बनाने की शक्ति देती है जिसके तहत भारत में समाचार प्रकाशन किया जाना है. बयान में आईटी नियम 2021 और इसमें किए गए हालिया संशोधनों का भी उदाहरण दिया गया है जो सरकार को ‘एक फैक्ट-चेकिंग यूनिट स्थापित करने और सरकार के खिलाफ सामग्री हटाने के आदेश देने संबंधी व्यापक शक्तियां प्रदान करते हैं’, और आग्रह किया गया है कि ऐसे नियमों को अधिनियम में स्पष्ट रूप से परिभाषित किया जाना चाहिए और इसे भावी सरकार या अधिकरणों के विवेक पर नहीं छोड़ा जाना चाहिए.
गिल्ड ने कहा कि रजिस्ट्रार और विधेयक का जोर ‘पंजीकरण’ पर रहना चाहिए, न कि ‘विनियमन’ पर, क्योंकि इससे प्रेस की स्वतंत्रता पर लगाम कसने की संभावना है.