क्या पाकिस्तान में आम चुनाव हो सकेंगे?

पाकिस्तान में आम चुनाव की मांग ज़ोर पकड़ रही है. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या इमरान ख़ान की गिरफ़्तारी, सैन्य भागीदारी, आर्थिक अराजकता, बढ़ती महंगाई और देश में गैस और बिजली की भारी कमी के बीच वहां की सरकार ऐसा कर पाएगी?

(फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमन्स)

पाकिस्तान में आम चुनाव की मांग ज़ोर पकड़ रही है. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या इमरान ख़ान की गिरफ़्तारी, सैन्य भागीदारी, आर्थिक अराजकता, बढ़ती महंगाई और देश में गैस और बिजली की भारी कमी के बीच वहां की सरकार ऐसा कर पाएगी?

(फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमन्स)

‘तोशाखाना’ एक फ़ारसी शब्द है, जिसका तात्पर्य विदेशी शासनाध्यक्षों और प्रतिनिधिमंडलों द्वारा सरकारी अधिकारियों को दिए गए उपहारों के भंडार से है. ‘तोशाखाना’ के ख़ज़ाने हमेशा गोपनीयता से घिरे रहे हैं और अगर पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की सरकार पिछले साल अप्रैल में अविश्वास मत से बाहर नहीं हुई होती, तो यह शब्द लोकप्रिय चर्चा का विषय नहीं बनता.

पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के नेता खान को तोशाखाना से उपहार खरीदने और बेचने के लिए साल 2018 से 2022 तक अपने प्रधानमंत्री पद का दुरुपयोग करने के आरोप में 5 अगस्त को गिरफ्तार किया गया था. जज हुमायूं दिलावर ने विपक्षी नेता को तीन साल जेल की सजा सुनाते हुए फैसले में लिखा, ‘उनकी बेईमानी संदेह से परे स्थापित है.’ एक साल से अधिक समय तक चली अदालती प्रक्रिया के बाद इमरान खान द्वारा तोशाखाना उपहार बेचने का विवरण अंततः पाकिस्तान के चुनाव आयोग के एक आदेश द्वारा सार्वजनिक किया गया. खान 141 मिलियन पाकिस्तानी रुपये (सभी उपहारों के कुल मूल्य का 96 प्रतिशत) के उपहार अपने पास रखने के दोषी हैं.

सत्ता से हटने के बाद से भ्रष्टाचार, धोखाधड़ी और यहां तक कि हत्या के 100 से अधिक मामलों का सामना कर रहे खान की मई में हिरासत से काफी राजनीतिक उथल-पुथल मच गई थी और उनके समर्थकों और पुलिस के बीच घातक झड़पें हुई थीं. इस बार उनकी गिरफ्तारी पाकिस्तान में अगले तीन महीनों के भीतर होने वाले आम चुनावों से पहले हुई है. प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ के कार्यकाल की समाप्ति से तीन दिन पहले, 9 अगस्त 2023 को पाकिस्तान की नेशनल असेंबली को भंग करने की प्रक्रिया शुरू होगी.

तोशाखाना मामले में दोषसिद्धि से नवंबर की शुरुआत से पहले होने वाले राष्ट्रीय चुनावों में भाग लेने की उनकी संभावनाएं खत्म हो सकती हैं. अपनी गिरफ्तारी से पहले रिकॉर्ड किए गए और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (ट्विटर) पर पोस्ट किए गए एक वीडियो में खान ने फिर से अपने समर्थकों से विरोध में सड़कों पर उतरने का आह्वान किया है.

क्या संवैधानिक मानदंडों का पालन होगा?

पाकिस्तान में संवैधानिक मानदंडों का पालन न करने का इतिहास रहा है. पाकिस्तान के लंबे राजनीतिक और आर्थिक संकट का एकमात्र लोकतांत्रिक समाधान नए जनादेश के साथ स्वतंत्र रूप से निर्वाचित नागरिक सरकार है. क्या कार्यवाहक प्रशासन संवैधानिक रूप से अनिवार्य 90 दिनों की अवधि के भीतर मतदान कराने में सक्षम होगा?

पाकिस्तानी संविधान के तहत, चुनाव आयोग के लिए अगले आम चुनाव से पहले सभी विधानसभा क्षेत्रों का नए सिरे से परिसीमन करना अनिवार्य है. 1 अगस्त को पाकिस्तान के सांख्यिकी ब्यूरो ने 2023 की जनगणना की मंजूरी के लिए काउंसिल ऑफ कॉमन इंटरेस्ट्स (सीसीआई) को प्रस्तुत किया. जनगणना को मंजूरी मिलने के साथ ही चुनाव आयोग को नए सिरे से परिसीमन कराना होगा.

कई संवैधानिक और कानूनी जरूरतों के परिणामस्वरूप हो रही इस प्रक्रिया में समय लगता है, जिसके चलते ऐसी स्थिति उत्पन्न होगी कि 2024 की शुरुआत तक चुनाव नहीं हो सकेंगे. पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) और पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) का हित समय पर चुनाव टालने में है, ताकि पीटीआई मजबूत प्रदर्शन न कर सके. खान की गिरफ्तारी और चुनावों में देरी यह सुनिश्चित करेगी कि जनता के बीच उनकी लोकप्रियता समय के साथ कम हो जाएगी.

सेना की भूमिका

खान ने सत्ता में रहते हुए खान ने पाकिस्तान के तत्कालीन सैन्य प्रमुख क़मर जावेद बाजवा को भ्रष्टाचार के खिलाफ अपने अभियान, जो मुख्य रूप से शरीफ (पीएमएल-एन) और भुट्टो (पीपीपी) परिवारों को दंडित करने पर केंद्रित था, में एक सहयोगी बनाया था. लेकिन स्पायमास्टर के रूप में किसे नियुक्त किया जाए और बाजवा के कार्यकाल के विस्तार जैसे मुद्दों पर कड़वे मतभेदों के कारण इस दोस्ती में खटास आ गई.

9 मई के ‘विरोध’ के दौरान इमरान खान के सैकड़ों समर्थकों ने सरकारी इमारतों में तोड़फोड़ की, जिनमें शहीदों के स्मारक और रावलपिंडी में सेना जनरल मुख्यालय (जीएचक्यू) और लाहौर में कोर कमांडर के आवास जैसे स्थल शामिल थे.

पाकिस्तान की सेना ने ‘सरकार और सरकारी संस्थानों के खिलाफ नफरत से भरे और राजनीतिक रूप से प्रेरित विद्रोह करने वाले मास्टरमाइंडों’ पर ‘कानून का शिकंजा’ कसने की कसम खाई है. सेना जीएचक्यू पर हमले को लेकर खुद इमरान खान पर सख्त आतंकवाद विरोधी कानून के तहत मामला दर्ज किया गया है. तब से खान की पार्टी के नेता बड़ी संख्या में पीटीआई का साथ छोड़ रहे हैं-  57 सदस्यों ने घोषणा की कि वे अपनी पार्टी- तहरीक-ए-इंसाफ पार्लियामेंटेरियंस बना रहे हैं.

इमरान खान ने बार-बार आरोप लगाया है कि सत्ता में उनकी वापसी को रोकने के लिए सेना उन्हें निशाना बना रही है. अदालत के फैसले और खान को सज़ा दिए जाने से यह संदेह पैदा हो गया है कि वर्तमान  सरकार, खान को अयोग्य ठहराने और यह सुनिश्चित करने की जल्दी में है कि वह आगामी आम चुनाव में भाग न लें. हालांकि, भले ही खान सलाखों के पीछे रहें, फिर भी वह अन्य उम्मीदवारों का समर्थन करके अपने प्रतिद्वंद्वियों के लिए खतरा पैदा कर सकते हैं.

खान के साथ मतभेद, सैन्य स्थलों पर हमला और उसके बाद नागरिकों की सैन्य निशानदेही, सभी इस तथ्य की ओर इशारा करते हैं कि पाकिस्तान की समस्याग्रस्त सेना का राजनीति पर अपनी पकड़ कम करने का कोई इरादा नहीं है. देश सेना के खिलाफ किसी भी कार्रवाई से बचने वाले पूर्व प्रधानमंत्रियों को जेल भेजने के लिए कुख्यात है.

जाने-माने पाकिस्तानी पत्रकार हामिद मीर ने ट्वीट किया कि खान जेल भेजे गए पहले प्रधानमंत्री नहीं हैं और शायद आखिरी भी नहीं होंगे, ‘पहले हुसैन शहीद सुहरावर्दी, फिर जुल्फिकार अली भुट्टो, फिर बेनजीर भुट्टो, फिर नवाज शरीफ और अब इमरान खान.’

आगामी आम चुनाव से जुड़ा एक प्रमुख सवाल यह है कि क्या तीन बार के स्वनिर्वासित पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ और पीएमएल-एन के वास्तविक प्रमुख अपनी पार्टी के चुनाव अभियान का नेतृत्व करने के लिए पाकिस्तान लौटेंगे. जून के अंत में पाकिस्तान की नेशनल असेंबली ने सांसदों की आजीवन अयोग्यता को पांच साल तक सीमित करने के लिए एक विधेयक पारित किया, जिससे सक्रिय राजनीति फिर से शुरू करने के लिए नवाज शरीफ की लंदन से वापसी की संभावना का रास्ता खुल गया.

इस बीच पाकिस्तान में आम चुनाव की मांग जोर पकड़ रही है. चुनावों में देरी करके राजनीतिक शक्ति को मजबूत करने के प्रयास में अनिश्चितता का खतरा रहता है. खान की गिरफ्तारी, सैन्य भागीदारी, आर्थिक अराजकता, बढ़ती मुद्रास्फीति और देश में गैस और बिजली की भारी कमी के बीच राजनीतिक दलों का भाग्य क्या होगा?

(वैशाली रणनीतिक और आर्थिक मसलों की विश्लेषक हैं. उन्होंने नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल सेक्रेटेरिएट के साथ लगभग एक दशक तक काम किया है.)