मणिपुर सरकार ने सभी कर्मचारियों को ‘अलगाववादी, राष्ट्र-विरोधी, सांप्रदायिक और विभाजनकारी एजेंडे को आगे बढ़ाने वाले’ सोशल मीडिया समूहों से बाहर निकलने का एक साल पुराना आदेश फिर से जारी किया है. चेतावनी दी गई है कि हिंसाग्रस्त राज्य में अशांति फैलाने की कोशिश करने वाली किसी भी चीज़ से जुड़े पाए जाने पर उनके ख़िलाफ़ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी.
नई दिल्ली: मणिपुर सरकार ने सभी कर्मचारियों को ‘अलगाववादी, राष्ट्र-विरोधी, सांप्रदायिक और विभाजनकारी एजेंडे को आगे बढ़ाने वाले’ सोशल मीडिया समूहों से बाहर निकलने का एक साल पुराना आदेश फिर से जारी किया है.
आदेश में चेतावनी दी गई है कि हिंसाग्रस्त राज्य में अशांति फैलाने की कोशिश करने वाली किसी भी चीज या भड़काने की कोशिश करने वाले किसी भी व्यक्ति से जुड़े पाए जाने पर उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी.
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, नवीनतम निर्देश सुप्रीम कोर्ट द्वारा जोमी स्टूडेंट्स फेडरेशन द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई के साथ मेल खाता है, जिसमें ‘आधिकारिक पदों पर बैठे व्यक्तियों को किसी विशेष समुदाय के लिए उकसाने वाली या भड़काऊ टिप्पणी करने से रोकना’ सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाने की मांग की गई है, जो (चल रहे) संघर्ष को बढ़ा सकता है.
मणिपुर में मोबाइल इंटरनेट और अन्य प्लेटफार्मों पर जारी प्रतिबंध सोशल मीडिया पर फर्जी खबरों, नफरत भरी टिप्पणियों और उकसावे की लहर को रोकने में विफल रहा है.
राज्य में हिंसा भड़कने के हफ्तों बाद 29 मई को भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार ने एक नोटिस जारी किया था, जिसमें विशेष रूप से बड़े पैमाने पर सोशल मीडिया पर मौजूद ‘जिम्मेदार पदों पर बैठे व्यक्तियों’ से वर्तमान कानून और व्यवस्था के संबंध में जानकारी उत्पन्न करने और साझा करने को रोकने के लिए कहा गया था.
सरकारी कर्मचारियों को उत्तेजक सामग्री वाले सोशल मीडिया ग्रुप को छोड़ने का निर्देश देने वाला मूल आदेश पिछले साल 10 अगस्त को ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन मणिपुर द्वारा अनिश्चितकालीन आर्थिक नाकेबंदी के बीच जारी किया गया था, जो तब मणिपुर (पहाड़ी क्षेत्र) स्वायत्त जिला परिषद (संशोधन) विधेयक 2021 को विधानसभा में पेश करने की मांग कर रहे थे.
द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, आदेश में कहा गया है, ‘यह देखा गया है कि फेसबुक, वॉट्सऐप और अन्य चैट ग्रुप्स जैसे सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर कई औपचारिक और अनौपचारिक समूह अलगाववादी, राष्ट्र-विरोधी, राज्य-विरोधी, असामाजिक, सांप्रदायिक और विभाजनकारी एजेंडे को आगे बढ़ाने में लगे हुए हैं, जो राज्य की मौजूदा शांतिपूर्ण सामाजिक सद्भाव और कानून व्यवस्था की स्थिति में गड़बड़ी पैदा करते हैं.’
इसमें कहा गया है कि ग्रुप के सदस्य, अपने-अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए, झूठी जानकारी, घृणास्पद भाषण और वीडियो फैलाने में लिप्त हैं, साथ ही ऐसी जानकारी साझा करते हैं, जो सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध नहीं होनी चाहिए.
पत्र में कहा गया है कि कई वरिष्ठ अधिकारी अनजाने में या पसंद से ऐसे सोशल मीडिया ग्रुप के सदस्य हैं. इसमें चेतावनी दी गई है कि ऐसे ग्रुप का सदस्य होना अखिल भारतीय सेवा (आचरण) नियम, 1968 के नियम 5 और 7 या दोनों, और केंद्रीय सिविल सेवा (आचरण) नियम 1964 के नियम 5, 9, और 11 या तीनों का उल्लंघन है. ऐसे सदस्य अनुशासनात्मक कार्रवाई का सामना करने के लिए उत्तरदायी होंगे.
इसी बीच, स्वतंत्रता दिवस की अपील में मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने सोमवार को कहा कि राज्य में हर किसी को जातीय संघर्ष का समाधान खोजने के लिए तैयार रहना चाहिए.
उन्होंने कहा, ‘’दोनों तरफ के लोग नफरत और प्रतिशोध के विचारों से प्रेरित होकर हिंसा के कृत्यों में लगे हुए हैं. तर्क की आवाज शायद ही उन्हें आकर्षित करती है, लेकिन 150 से अधिक लोगों की मौत और सैकड़ों के घायल होने, घरों और आस्था के स्थानों के जमींदोज हो जाने के बाद हम अपने बच्चों और अपनी भावी पीढ़ियों के लिए एक अच्छी विरासत नहीं छोड़ रहे हैं.‘
अंतरराष्ट्रीय समाचार एजेंसी रॉयटर्स द्वारा बीते जुलाई महीने में जारी आंकड़ों के अनुसार, तीन मई को राज्य में पहली बार कुकी और मेईतेई समुदायों के बीच भड़की जातीय हिंसा के बाद से 181 लोग मारे गए हैं, जिनमें कुकी लोगों की संख्या 113 है, जबकि मेईतेई समुदाय के मृतकों की संख्या 62 है. बताया गया है कि अब तक राज्य से 50,000 के करीब लोग विस्थापित हुए हैं.
मणिपुर में अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने की मेईतेई समुदाय की मांग के विरोध में बीते 3 मई को पर्वतीय जिलों में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ के आयोजन के बाद झड़पें हुई थीं, हिंसा में बदल गई और अब भी जारी हैं.
मणिपुर की 53 प्रतिशत आबादी मेईतेई समुदाय की है और ये मुख्य रूप से इंफाल घाटी में रहते हैं. आदिवासियों- नगा और कुकी की आबादी 40 प्रतिशत है और ये पर्वतीय जिलों में रहते हैं.