हाल ही में हरियाणा स्थित निजी अशोका यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र के सहायक प्रोफेसर सब्यसाची दास ने अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया था. वह एक शोध-पत्र के लिए चर्चा में हैं, जिसमें उन्होंने 2019 के लोकसभा चुनावों में ‘हेरफेर’ की संभावना का आरोप लगाया था. यूनिवर्सिटी के सूत्रों ने कहा कि अर्थशास्त्र विभाग के प्रोफेसर पुलाप्रे बालाकृष्णन ने सब्यसाची के साथ ‘एकजुटता दिखाते हुए’ इस्तीफ़ा देने का फैसला किया है.
नई दिल्ली: अपने एक हालिया शोध-पत्र से उपजे राजनीतिक विवाद के चलते हरियाणा के सोनीपत स्थित निजी अशोका यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्री सब्यसाची दास के इस हफ्ते इस्तीफा देने के ठीक बाद अर्थशास्त्र विभाग के एक अन्य प्रोफेसर पुलाप्रे बालाकृष्णन ने भी अपना इस्तीफा दे दिया है.
अशोका यूनिवर्सिटी में दास एक सहायक प्रोफेसर थे, वहीं बालाकृष्णन एक पूर्ण प्रोफेसर हैं, जो 2015 में इस निजी विश्वविद्यालय के साथ जुड़े थे. इससे पहले वह ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी, भारतीय सांख्यिकी संस्थान, कोझिकोड स्थित भारतीय प्रबंधन संस्थान और विश्व बैंक में काम कर चुके हैं.
वह कई प्रसिद्ध पुस्तकों के लेखक हैं, जिनमें इंडियाज़ इकोनॉमी फ्रॉम नेहरू टू मोदी नामक किताब भी शामिल है. 2022 में अशोक यूनिवर्सिटी के सहयोग से परमानेंट ब्लैक द्वारा इस किताब को प्रकाशित किया गया था.
हालांकि बालाकृष्णन के इस्तीफे की अभी तक अशोका यूनिवर्सिटी ने घोषणा नहीं की है और उनका त्याग-पत्र सार्वजनिक नहीं है, यूनिवर्सिटी के सूत्रों ने कहा कि वरिष्ठ अर्थशास्त्री ने सब्यसाची दास के साथ ‘एकजुटता दिखाते हुए’ इस्तीफा देने का फैसला किया है.
बीते सोमवार (14 अगस्त) को द वायर द्वारा सब्यसाची दास के द्वारा संस्थान छोड़ने की खबर सामने आने के तुरंत बाद अशोका यूनिवर्सिटी के कुलपति सोमक रायचौधरी ने कहा कि प्रबंधन ने उनका इस्तीफा स्वीकार कर लिया है.
सब्यसाची एक शोध-पत्र के लिए चर्चा में हैं, जिसे उन्होंने 2019 के लोकसभा चुनावों में ‘हेरफेर’ की संभावना का आरोप लगाते हुए लिखा था, जिसके बाद भाजपा 2014 की तुलना में अधिक अंतर के साथ सत्ता में वापस आई थी.
इस शोध पत्र के सामने आने के बाद भाजपा नेताओं ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी.
कुलपति रायचौधरी ने कहा, ‘फैकल्टी के सदस्यों को अपने चुने हुए क्षेत्रों में पढ़ाने और अनुसंधान करने की स्वतंत्रता है. विश्वविद्यालय अपने फैकल्टी सदस्यों और छात्रों को उच्च शिक्षा संस्थान में शैक्षणिक स्वतंत्रता के लिए सबसे सक्षम वातावरण प्रदान करता है. यह शैक्षणिक स्वतंत्रता सब्यसाची दास पर भी लागू होती है.’
हालांकि, बालाकृष्णन के इस्तीफे से इस आशंका को बल मिलने की संभावना है कि सब्यसाची दास का इस्तीफा विश्वविद्यालय द्वारा उनके 25 जुलाई, 2023 के शोध-पत्र ‘डेमोक्रेटिक बैकस्लाइडिंग इन द वर्ल्ड्स लारजेस्ट डेमोक्रेसी’ के कारण उपजे विवाद से निपटने के कारण हुआ.
अशोका यूनिवर्सिटी ने बीते 1 अगस्त को एक ट्वीट में सार्वजनिक रूप से खुद को सब्यसाची दास के शोध पत्र से अलग कर लिया था और इस आधार पर इसकी गुणवत्ता पर भी सवाल उठाया कि इसकी समीक्षा (Peer-Reviewed ∼ एक लेखक के विद्वतापूर्ण कार्य, शोध या विचारों की अन्य लोगों से जांच, जो उसी क्षेत्र के विशेषज्ञ हैं) नहीं की गई थी.
वास्तव में दुनिया भर के अग्रणी विश्वविद्यालयों में शिक्षाविदों के लिए किसी पीयर रिव्यू पत्रिका में अंतिम प्रकाशन से पहले टिप्पणी और चर्चा के लिए अपने शोध के मसौदे को अपलोड करना आम बात है.
हालांकि भारत और विदेशी शिक्षाविदों द्वारा दास से दूरी बनाने के लिए अशोका यूनिवर्सिटी की व्यापक आलोचना की गई.
2015 में बालाकृष्णन की नियुक्ति के तुरंत बाद अशोका यूनिवर्सिटी ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की जिसमें कहा गया था कि ‘संस्थान में फैकल्टी में शिक्षकों की संख्या इस साल दोगुनी से अधिक हो गई है, क्योंकि भारत और दुनिया भर से सर्वश्रेष्ठ शिक्षाविद और विद्वान विश्वविद्यालय में शामिल हुए हैं’.
बहरहाल सब्यसाची दास और बालाकृष्णन के इस्तीफे की खबर से भारत में शैक्षणिक स्वतंत्रता की स्थिति के बारे में चिंताएं फिर से बढ़ने की संभावना है.
बालाकृष्णन के इस्तीफे पर टिप्पणी मांगने के प्रयास में द वायर ने अशोका यूनिवर्सिटी प्रशासन से संपर्क किया है. उनकी प्रतिक्रिया मिलने पर इस रिपोर्ट को अपडेट किया जाएगा.
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