तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने कहा कि शिक्षा को संविधान की समवर्ती सूची से राज्य सूची में लाना राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (एनईईटी) को ख़त्म करने का रास्ता है. स्टालिन ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से राज्य के एनईईटी छूट विधेयक को जल्द से जल्द मंज़ूरी देने का आग्रह किया है.
नई दिल्ली: बीते मंगलवार (15 अगस्त) को चेन्नई में अपने स्वतंत्रता दिवस के संबोधन के दौरान तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने कहा कि शिक्षा को संविधान की समवर्ती सूची से राज्य सूची में लाना राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (एनईईटी) को खत्म करने का रास्ता है.
लाइवमिंट की रिपोर्ट के अनुसार, स्टालिन की यह टिप्पणी बीते दिनों में एक किशोर और उसके पिता की कथित तौर पर आत्महत्या से हुई मौतों के बाद आई है. 19 वर्षीय एस. जगदीश्वरन ने एनईईटी पास करने में असमर्थ होने के बाद बीते शनिवार (12 अगस्त) की शाम आत्महत्या कर ली थी.
एक दिन बाद छात्र के पिता पी. सेल्वासेकर (48 वर्ष) चेन्नई के क्रोमपेट स्थित अपने घर में मृत पाए गए थे. कथित तौर पर अपने बेटे का गम बर्दाश्त नहीं कर पाने के कारण पिता ने भी आत्महत्या कर ली थी.
मुख्यमंत्री ने बीते 14 अगस्त को छात्रों को एक विशेष संदेश में उनसे अतिवादी कदम न उठाने का आग्रह किया था और एनईईटी पर प्रतिबंध लगाने की कसम खाई थी, जिसकी राज्य में छात्र समुदाय और उनके माता-पिता दोनों लंबे समय से मांग कर रहे थे.
राज्य में एनईईटी पर प्रतिबंध लगाने वाले तमिलनाडु विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों पर हस्ताक्षर करने से इनकार करने वाले राज्यपाल आरएन रवि पर निशाना साधते हुए स्टालिन ने अपने विशेष संदेश में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से राज्य के एनईईटी छूट विधेयक को जल्द से जल्द मंजूरी देने का आग्रह किया, जो ‘तमिलनाडु के लोगों की सामूहिक इच्छा थी’.
उन्होंने राष्ट्रपति को यह भी लिखा कि अपनाया गया विधेयक ‘तमिलनाडु के लोगों की सामूहिक इच्छा से उत्पन्न विधायी सर्वसम्मति का परिणाम’ है और ‘इसके कार्यान्वयन में हर एक दिन की देरी से न केवल योग्य छात्रों के लिए मूल्यवान मेडिकल सीटें, बल्कि हमारे समाज के लिए अमूल्य मानव जीवन भी बर्बाद होता है’.
द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, उन्होंने बताया कि विधेयक लंबित है, हालांकि तमिलनाडु सरकार ने विभिन्न केंद्रीय मंत्रालयों की टिप्पणियों पर स्पष्टीकरण दिया है.
तमिलनाडु की स्टालिन सरकार एनईईटी पर प्रतिबंध लगाने के लिए प्रस्तावित कानून पर दो बार विधानसभा में विधेयक लेकर आई, लेकिन राज्यपाल ने उन्हें लौटा दिया. चूंकि मामला समवर्ती सूची से संबंधित था, इसलिए विधेयक को राष्ट्रपति की सहमति के लिए भेजा गया था.
हालांकि, राज्य सरकार और राज्यपाल के बीच विधेयक को लेकर कई बार मतभेद हो चुके हैं. बीते 12 अगस्त को की गई राज्यपाल की टिप्पणी से स्टालिन सरकार भी नाराज हो गई. राज्यपाल ने कहा था, ‘(विधेयक) मुझे दिया, मैं इसे कभी नहीं दूंगा। इसके बारे में आश्वस्त रहें.’
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