मणिपुर के 10 कुकी-ज़ोमी विधायकों, जिनमें भाजपा के आठ विधायक भी शामिल हैं, ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक ज्ञापन सौंपा, जिसमें कहा गया है कि इंफाल कुकी-ज़ोमी लोगों के लिए मौत और विनाश की घाटी बन गया है. विधायकों ने यह भी कहा है कि वे ‘व्यवस्थित जातीय सफाये’ के शिकार हैं. उन्होंने प्रधानमंत्री से समुदाय के उचित पुनर्वास के लिए 500 करोड़ रुपये मंज़ूर करने की अपील की है.
नई दिल्ली: मणिपुर के 10 कुकी-ज़ोमी विधायकों, जिनमें भाजपा के आठ विधायक भी शामिल हैं, ने बुधवार (16 अगस्त) को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक ज्ञापन सौंपा, जिसमें कहा गया कि राज्य के पांच पहाड़ी जिलों के लिए मुख्य सचिव और डीजीपी या इनके समकक्ष पद स्थापित किए जाएं. राज्य में जातीय हिंसा भड़कने के बाद से समुदाय के सदस्य इन्हीं पांच पहाड़ी जिलों में रह रहे हैं.
विधायकों ने प्रधानमंत्री राहत कोष से 500 करोड़ रुपये की मंजूरी भी मांगी है.
मणिपुर में मेईतेई समुदाय आबादी का लगभग 53 प्रतिशत है, जो ज्यादातर इंफाल घाटी में रहते हैं. आदिवासी, जिनमें नगा और कुकी शामिल हैं, आबादी का 40 प्रतिशत हिस्सा हैं और ज्यादातर पहाड़ी जिलों में रहते हैं, जो घाटी इलाके के चारों ओर स्थित हैं.
ये वही विधायक हैं, जिन्होंने मणिपुर के कुकी-ज़ोमी निवासियों के लिए एक अलग प्रशासन की मांग की थी. मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह की सरकार बीते 21 अगस्त को मणिपुर विधानसभा के एक विशेष सत्र में मणिपुर की क्षेत्रीय अखंडता को संरक्षित करने के लिए एक प्रस्ताव पेश कर सकती है, जो इन विधायकों की मांग के खिलाफ जा सकती है.
ज्ञापन में हस्ताक्षर करने वाले विधायकों में हाओखोलेट किपगेन (सैतु, स्वतंत्र), लेटपाओ हाओकिप (तेंगनौपाल, भाजपा), एलएम कौटे (चुरचांदपुर, भाजपा), नेमचा किपगेन (कांगपोकपी, भाजपा), नगुर्सांगलुर सनाटे (टिपाइमुख, भाजपा), पाओलिएनलाल हाओकिप (सैकोट, भाजपा), चिनलुनथांग (सिंघट, केपीए), लेटज़मंग हाओकिप (हेंगलेप, भाजपा), किम्नेओ हाओकिप हैंगशिंग (सैकुल, केपीए) और वुंगज़ागिन वाल्टे (थानलॉन, बीजेपी) शामिल हैं.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, अपने अनुरोध को तर्कसंगत बनाते हुए विधायकों ने कहा कि यह उनके समुदाय के निवास वाले क्षेत्रों के ‘कुशल प्रशासन’ के लिए आवश्यक है. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि चल रहे जातीय संघर्ष के परिणामस्वरूप ये क्षेत्र राजधानी इंफाल से पूरी तरह से कट गए हैं.
जिन पांच जिलों के लिए उन्होंने यह मांग उठाई है, उनमें चुराचांदपुर, कांगपोकपी, चंदेल, तेंगनौपाल और फेरज़ावल शामिल हैं.
अपने ज्ञापन में उन्होंने कहा कि इंफाल कुकी-ज़ोमी लोगों के लिए मौत और विनाश की घाटी बन गया है.
उनके ज्ञापन में कहा गया है, ‘कुकी-ज़ो जनजातियों से संबंधित आईएएस और एमसीएस (मणिपुर सिविल सर्विसेस) अधिकारी और आईपीएस और एमपीएस (मणिपुर पुलिस सर्विस) अधिकारी भी काम करने और अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने में असमर्थ हैं, क्योंकि इंफाल घाटी भी हमारे लिए मौत की घाटी बन गई है.’
उन्होंने अनुरोध किया कि प्रशासन के लिए और कुकी-ज़ोमी आदिवासियों से संबंधित सरकारी कर्मचारियों के सामने आने वाली समस्याओं को हल करने के लिए इन क्षेत्रों के लिए डीजीपी और मुख्य सचिव या समकक्ष के पद सृजित किए जाएं.
16 अगस्त को दिए गए ज्ञापन में कहा गया है कि 3 मई के बाद से, ‘ग्रेटर इंफाल क्षेत्र में मेईतेई मिलिशिया जैसे अरामबाई तेंगगोल और मेईतेई लीपुन के साथ-साथ मेईतेई लोगों भीड़ द्वारा कुकी-ज़ोमी समुदाय के सरकारी कर्मचारी, व्यवसायी, दैनिक वेतन भोगी और मजदूरों पर विनाशकारी हमले हुए हैं.’
ज्ञापन में कई घटनाओं को सूचीबद्ध किया गया है जहां कुकी-ज़ोमी लोगों को कथित तौर पर प्रताड़ित किया गया, छेड़छाड़ की गई, बलात्कार किया गया और मार दिया गया.
इसमें थानलॉन विधायक वुंगज़ागिन वाल्टे पर हमले का हवाला देते हुए कहा गया है, यहां तक कि राज्य विधानसभा के सदस्यों को भी नहीं बख्शा गया, जिन्हें पीटा गया और मृत अवस्था में छोड़ दिया गया. उनका ड्राइवर हिंसा में मारा गया. दो कैबिनेट मंत्रियों (ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने वालों में शामिल) के घर भीड़ द्वारा जला दिए गए थे.
इसमें कहा गया है कि मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ‘लगभग हर दिन पहाड़ी जिलों के गांवों पर हमला करके कुकी-ज़ोमी पहाड़ी आदिवासियों के खिलाफ युद्ध छेड़ते रहे हैं’.
ज्ञापन में ऐसे कई उदाहरणों का हवाला दिया गया है, जिसमें मुख्यमंत्री और बहुसंख्यक मेईतेई समुदाय के नेताओं ने कथित तौर पर कुकी-ज़ोमी लोगों के खिलाफ हिंसा का आह्वान किया है. इसमें वर्तमान में जारी हिंसा को ‘कुकी-ज़ोमी आदिवासियों के खिलाफ एक राज्य प्रायोजित युद्ध’ भी कहा गया है.
इसमें कहा गया है, ‘कोई भी कुकी-ज़ोमी लोग इंफाल नहीं जा सकते, न ही इंफाल की राजधानी और अन्य घाटी जिलों में तैनात सरकारी कर्मचारी अपने कार्यालयों में जा सकते हैं.’
इसमें कहा कि कुकी-ज़ोमी आदिवासियों से संबंधित सरकारी कर्मचारियों की समस्याओं को हल करने और हमारे द्वारा बसाए गए जिलों के कुशल प्रशासन के लिए मुख्य सचिव और डीजीपी या इसके समकक्ष का पद तुरंत सृजित करने की आवश्यकता है. इसके अलावा नागरिक और पुलिस विभाग में अन्य प्रमुख वरिष्ठ स्तर के पद भी जनहित में सृजित किए जाने चाहिए.
जून की शुरुआत में मणिपुर सरकार ने त्रिपुरा-कैडर के आईपीएस अधिकारी राजीव सिंह को मणिपुर का नया डीजीपी नियुक्त किया था. वर्तमान पी. डोंगेल को विशेष कर्तव्य अधिकारी (गृह) बनाया गया, जो रातों-रात बनाया गया पद था. डोंगेल कुकी समुदाय के सदस्य हैं.
द वायर से बात करते हुए कुकी पीपुल्स एलायंस (केपीए) के सह-संस्थापक विल्सन हैंगशिंग, जिनके दो विधायकों ने भी ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं, ने कहा, ‘जमीनी हकीकत को देखते हुए यह एक वैध मांग है. हम इंफाल हवाई अड्डे तक भी नहीं पहुंच सकते. चुराचांदपुर के लोग मणिपुर से बाहर उड़ान भरने के लिए पड़ोसी राज्य मिजोरम तक लंबी दूरी तय कर रहे हैं; कांगपोकपी से कुकी हवाई यात्रा के लिए नगालैंड जा रहे हैं. इसमें पूरा दिन लग जाता है, जबकि इंफाल हवाई अड्डा चुराचांदपुर से केवल 70 किलोमीटर दूर है.’
हैंगशिंग ने कहा कि राज्य सरकार ने कुछ समय पहले एक आदेश जारी कर सभी कुकियों को घाटी क्षेत्रों में अपनी नौकरी पर लौटने के लिए कहा था, लेकिन उनकी सुरक्षा के सवाल पर ध्यान नहीं दिया.
उन्होंने आगे कहा कि बताया जा रहा है कि बीजेपी नेता और मुख्यमंत्री बीरेन के दामाद आरके इमो सिंह ने हाल ही में कुकी समुदाय के सभी पार्टी विधायकों से 21 अगस्त को विधानसभा के विशेष सत्र में भाग लेने का आग्रह करते हुए कहा कि प्रशासन उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करेगा.
उन्होंने कहा, ‘यह केवल इंगित करता है कि यदि राज्य प्रशासन चाहे, तो वह लोगों की रक्षा कर सकता है. घाटी के जिलों में कुकियों के खिलाफ हिंसा के दौरान ऐसा नहीं था.’
विधायकों ने यह भी कहा है कि वे ‘व्यवस्थित जातीय सफाये’ के शिकार हैं और उन्होंने प्रधानमंत्री से कुकी-ज़ोमी लोगों के उचित पुनर्वास के लिए 500 करोड़ रुपये मंजूर करने की अपील की है.
जून में मणिपुर सरकार के सुरक्षा सलाहकार कुलदीप सिंह ने विस्थापित लोगों के लिए 101.75 करोड़ रुपये के राहत पैकेज की घोषणा की थी.
उल्लेखनीय है कि मणिपुर में बीते 3 मई को जातीय हिंसा बहुसंख्यक मेईतेई समुदाय की अनुसूचित जनजाति (एसटी) के दर्जे की मांग के कारण भड़की थी, जिसे पहाड़ी जनजातियां अपने अधिकारों पर अतिक्रमण के रूप में देखती हैं.
अंतरराष्ट्रीय समाचार एजेंसी रॉयटर्स द्वारा बीते जुलाई महीने में जारी आंकड़ों के अनुसार, तीन मई को राज्य में पहली बार कुकी और मेईतेई समुदायों के बीच भड़की जातीय हिंसा के बाद से 181 लोग मारे गए हैं, जिनमें कुकी लोगों की संख्या 113 है, जबकि मेईतेई समुदाय के मृतकों की संख्या 62 है. बताया गया है कि अब तक राज्य से 50,000 के करीब लोग विस्थापित हुए हैं.
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