अशोका यूनिवर्सिटी: ‘गवर्निंग बॉडी के दख़ल के चलते स्कॉलर डर के माहौल में काम करने को मजबूर’

अशोका यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र के शिक्षक सब्यसाची दास ने एक रिसर्च पेपर में 2019 के लोकसभा चुनाव में ‘हेरफेर’ की संभावना ज़ाहिर की थी, जिस पर विवाद के बाद उन्होंने इस्तीफ़ा दे दिया. अब अर्थशास्त्र विभाग ने कहा है कि इस पेपर पर विश्वविद्यालय की गवर्निंग बॉडी की प्रतिक्रिया संस्थागत उत्पीड़न है.

(स्क्रीनग्रैब साभार: यूट्यूब/अशोका यूनिवर्सिटी)

अशोका यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र के शिक्षक सब्यसाची दास ने एक रिसर्च पेपर में 2019 के लोकसभा चुनाव में ‘हेरफेर’ की संभावना ज़ाहिर की थी, जिस पर विवाद के बाद उन्होंने इस्तीफ़ा दे दिया. अब अर्थशास्त्र विभाग ने कहा है कि इस पेपर पर विश्वविद्यालय की गवर्निंग बॉडी की प्रतिक्रिया संस्थागत उत्पीड़न है.

(स्क्रीनग्रैब साभार: यूट्यूब/अशोका यूनिवर्सिटी)

नई दिल्ली: अशोका विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग के एक खुला पत्र लिखते हुए में विश्वविद्यालय की गवर्निंग बॉडी (निकाय) द्वारा एक स्कॉलर के हालिया शोध पत्र पर दी गई प्रतिक्रिया देने को लेकर कहा है कि यह  ‘संस्थागत उत्पीड़न है, जो शैक्षणिक स्वतंत्रता को कम करती है और स्कॉलर्स को भय के माहौल में काम करने के लिए मजबूर करती है.’

मामला सब्यसाची दास के एक रिसर्च पेपर से संबंधित है, जिन्होंने 2019 के आम चुनाव में ‘हेरफेर’ पर अपने निष्कर्षों से उपजे राजनीतिक विवाद के बाद इस्तीफा दे दिया था. उनके इस्तीफे के बाद अर्थशास्त्र विभाग के प्रोफेसर पुलाप्रे बालाकृष्णन ने सब्यसाची के साथ ‘एकजुटता दिखाते हुए’ इस्तीफ़ा देने का फैसला किया.

रिपोर्ट के अनुसार, इसके बाद 16 अगस्त को प्रोफेसर अश्विनी देशपांडे द्वारा पूरे विभाग के नाम से जारी और ट्विटर पर पोस्ट किए गए एक बयान में सार्वजनिक रूप से दो मांगें की गई हैं: पहला, दास को तुरंत बहाल किया जाए और विश्वविद्यालय की गवर्निंग बॉडी फैकल्टी की रिसर्च के मूल्यांकन के लिए कोई समिति या ऐसे किसी अन्य तरीके का इस्तेमाल न करने का वादा करे.

इससे पहले 1 अगस्त को यूनिवर्सिटी ने दास के रिसर्च पेपर से खुद को अलग कर लिया था, लेकिन सूत्रों के हवाले से बताया जा रहा है कि उनके इस्तीफे का कारण गवर्निंग बॉडी द्वारा उनके पेपर की ‘जांच’ या कम से कम इसका शीर्षक बदलवाने के प्रयास थे.

अपने बयान में अर्थशास्त्र विभाग ने कहा है कि ‘प्रो. दास ने अकादमिक प्रक्रिया के किसी भी स्वीकृत मानदंड का उल्लंघन नहीं किया है. बयान में आगे कहा गया:

‘अकादमिक शोध का पेशेवर मूल्यांकन पियर रिव्यू (समीक्षा) के ज़रिये किया जाता है. उनके हालिया अध्ययन की जांच करने की इस प्रक्रिया में गवर्निंग निकाय का दखल संस्थागत उत्पीड़न है, अयह कादमिक स्वतंत्रता को कम करता है और स्कॉलर्स को डर के माहौल में काम करने के लिए मजबूर करता है. हम इसकी कड़े शब्दों में निंदा करते हैं और सामूहिक रूप से उक्त निकाय द्वारा भविष्य में अर्थशास्त्र विभाग के फैकल्टी सदस्यों के शोध के मूल्यांकन के किसी भी प्रयास में सहयोग करने से इनकार करते हैं.’

यूनिवर्सिटी की गवर्निंग बॉडी में इसके कई प्रमोटर्स सदस्य के तौर पर शामिल हैं, जिनमें से दो प्रमुख हैं- प्रमथ राज सिन्हा और आशीष धवन. द वायर  ने अर्थशास्त्र विभाग के बयान पर प्रतिक्रिया के लिए उनसे और कुलपति से संपर्क किया है.  उनका जवाब आने पर खबर को अपडेट किया जाएगा.

अर्थशास्त्र विभाग ने कहा कि दास के इस्तीफे और यूनिवर्सिटी द्वारा इसे जल्दबाज़ी में स्वीकार करने से उनका, छात्रों, और यूनिवर्सिटी के शुभचिंतकों का भरोसा कम हुआ है. उन्होंने उनकी चिंताओं के  निदान के लिए 23 अगस्त तक की समयसीमा तय की है.

उन्होंने जोड़ा कि जब तक बुनियादी शैक्षणिक स्वतंत्रता से संबंधित इन प्रश्नों को मानसून 2023 सेमेस्टर की शुरुआत से पहले हल नहीं किया जाता है, विभाग के सदस्य अपने शैक्षणिक दायित्वों को निभाने में असमर्थ रहेंगे.

अन्य विभागों ने भी समर्थन किया

यूनिवर्सिटी के अंग्रेजी विभाग ने भी अर्थशास्त्र विभाग के समर्थन में एक बयान जारी किया है. उनकी मांगों का समर्थन करते हुए अंग्रेजी विभाग ने कहा, ‘हमें यह भी उम्मीद है कि यूनिवर्सिटी के आधिकारिक सोशल मीडिया हैंडल भविष्य में अपने फैकल्टी सदस्यों द्वारा अकादमिक शोध को बदनाम करने वाले बयान देना बंद कर देंगे.’ मांगें पूरी न होने पर उन्होंने भी नए सत्र की कक्षाओं के बहिष्कार की बात की है.

इससे पहले दास का इस्तीफ़ा स्वीकार होने से पहले 82 फैकल्टी सदस्यों द्वारा जारी एक अलग बयान में कहा गया है, ‘भारत में विश्वविद्यालयों के अंदर स्वतंत्र विचार आज संकट में है, जिसका मुख्य कारण आलोचना के प्रति लगभग पूर्ण असहिष्णुता है… आलोचना को दबाना शिक्षाशास्त्र की रगों में जहर घोलना है; परिणामस्वरूप, यह हमारे छात्रों के भविष्य को नुकसान पहुंचाएगा.’

इसके अलावा, यूनिवर्सिटी के समाजशास्त्र और मानवविज्ञान, रचनात्मक लेखन (क्रिएटिव राइटिंग) विभागों ने  16 अगस्त को एकजुटता जताने वाले बयान जारी किए, जबकि राजनीति विज्ञान विभाग ने गुरुवार (17 अगस्त) को अपना बयान जारी किया है.