अयोध्या का रंग-रूप बदलकर ‘त्रेता की वापसी’ करा देने के लिए वहां चल रही व्यापक तोड़-फोड़ की आपाधापी और अनियोजित कवायदों से ध्वस्त हुई नागरिक व्यवस्थाओं के चलते कई लोग जान गंवा चुके हैं.
भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक की हाल ही में आई रिपोर्ट ने केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी स्वदेश दर्शन योजना के तहत अयोध्या में संचालित बहुप्रचारित डेवलपमेंट प्रोजेक्ट में हुए विकट भ्रष्टाचार की ही नहीं, अयोध्या के विश्वस्तरीय विकास की पोल भी खोल दी है.
लेकिन आगामी जनवरी में नवनिर्मित ‘भव्य व विशाल’ राम मंदिर की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों प्राण-प्रतिष्ठा से पहले अयोध्या का रंग-रूप बदलकर ‘त्रेता की वापसी’ करा देने के लिए वहां व्यापक तोड़-फोड़ के बीच खासी आपाधापी में जो कवायदें की जा रही हैं और उनसे सामान्य जनजीवन जिस तरह संकटग्रस्त व दुश्वार हो चला है, उसका कोई सामाजिक या आर्थिक ऑडिट शायद ही कभी संभव हो.
अभी तो वह किसी की चर्चा का भी विषय नहीं है. कारण? वैकल्पिक नजरिये से संपन्न और अयोध्या के अपने वक्त के महत्वपूर्ण कवियों में से एक स्मृतिशेष चंद्रमणि त्रिपाठी ‘सहनशील’ के शब्दों में बताएं तो ‘बस्ती के सभी लोग हैं ऊंची उड़ान पै, किसकी निगाह जाएगी जलते मकान पै!
जो भी हो, सरकार व प्रशासन के स्तर पर इस संकट को कतई संकट की तरह न लेने और इस कारण उससे निपटने के प्रयासों की कोई जरूरत ही न समझने की जैसी प्रविधि काम में लाई जा रही है, उससे लगता है कि पिछले वर्ष के आखिरी महीनों में शुरू हुई व्यापक तोड़फोड़ के बाद से अब तक इस संकट के शिकार होकर अपनी जानें गंवा देने वाले लोग भी आधी-अधूरी खबरें बनकर ही रह जाएंगे. इस कारण और कि उनमें ज्यादातर ऐसे गरीब व मजदूर हैं, जिन्हें अपवादस्वरूप ही कोई सामाजिक सुरक्षा प्राप्त है और जिनकी ‘न्यू इंडिया’ में फिलहाल कोई आवाज नहीं बचने दी गई है.
बहरहाल, जब हम ये पंक्तियां लिख रहे हैं, निर्माणाधीन अंतरराष्ट्रीय मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम एयरपोर्ट के टर्मिनल के ऊपरी हिस्से में रंग-रोगन कहें या पेंटिंग कर रहे मध्य प्रदेश के भिंड जिले के सुरपुरा थानाक्षेत्र के मूल निवासी ऋषि यादव नामक मजदूर के गिरकर मर जाने की खबर लोगों की चेतना पर छाई हुई है. कहा जा रहा है कि उसकी सुरक्षा के लिए थोड़े-बहुत एहतियात भी बरते गए होते तो उसको इस तरह अपनी जान नहीं गंवानी पड़ती.
लेकिन कैसे बरते जाते, जब ऐसे हादसों के सिलसिले के गत वर्ष नवंबर में ही शुरू हो जाने के बावजूद किसी भी स्तर पर उससे कोई सबक लेने की जरूरत नहीं समझी गई और अब तक सब कुछ जस का तस चला आ रहा है.
ज्ञातव्य है कि गत नवंबर में भक्ति पथ को चौड़ा करने के लिए दुकानों व प्रतिष्ठानों का ध्वस्तीकरण शुरू होते ही उसमें लगे एक मजदूर को अपनी जान गंवानी पड़ी थी. कारण यह कि प्रशासन ने कुछ ऐसा माहौल बना दिया था कि बुलडोजर द्वारा ध्वस्त किए जाने से ज्यादा नुकसान की आशंका से भयभीत दुकानों व प्रतिष्ठानों के स्वामियों ने उन्हें खुद अपने खर्चे पर गिराना आरंभ कर दिया था- फौरन से पेश्तर.
फिर तो सरकारी अमले ने उससे जुड़ी अपनी जिम्मेदारियों की इस तरह छुट्टी कर दी थी कि कोई यह तक देखने वाला नहीं रह गया था कि गंभीर जोखिम वाले इस काम में जिन मजदूरों को लगाया जा रहा है, उन्हें ऐसे कामों का कोई अनुभव भी है अथवा नहीं? नहीं है तो उनकी अनुभवहीनता से कोई हादसा हुआ तो घायलों को फौरन अस्पताल पहुंचाने और मुआवजा वगैरह देने की क्या व्यवस्था है और कोई व्यवस्था नहीं है तो क्यों?
यह स्थिति तब थी, जब कई सर्विस प्रोवाइडर बाकायदा प्रचार करके ‘तेजी से ध्वस्तीकरण’ की सेवाएं व ‘मजदूरों को रोजगार’ उपलब्ध कराने लगे थे और उन पर कोई अंकुश नहीं था. इन्हीं हालात में अठारह नवंबर को भक्ति पथ पर सआदतगंज में हरिश्चंद्र मार्केट की एक दुकान गिराते वक्त उसकी छत अचानक टूटकर सीतापुर से लाए गए प्रांशू नामक 18 वर्ष के मजदूर पर आ गिरी. फिर तो किसी से तत्काल कुछ करते नहीं बना और चिकित्सा सुविधा उपलब्ध होने तक उसकी मौत हो गई.
लेकिन उसकी मौत भी जिम्मेदारों के लिए कोई सबक नहीं बन सकी, इसलिए दिसंबर में राम जन्मभूमि दर्शन मार्ग पर रामगुलेला के पास हुए ऐसे ही एक हादसे में एक और मजदूर को अपने प्राण गंवाने पड़े. इसके अगले महीने, अठारह जनवरी को रामपथ पर पुराने फैजाबाद के साहबगंज मोहल्ले में स्थित राम-जानकी मंदिर के बाहर की दीवार तोड़ने में लगना धर्मदेव सोनकर नामक साठ साल के मजदूर की जान पर बन आया तो भी किसी कान पर जूं नहीं रेंगी.
गत तेरह जुलाई को जब प्रदेश सरकार और स्थानीय प्रशासन द्वारा जोर-शोर से दावा किया जा रहा था कि पूरे प्रदेश की तरह राम की नगरी में भी कांवड़ियों के लिए पलक-पांवड़े बिछा दिए गए हैं, देवघर में जल चढ़ाकर विंध्याचल के रास्ते साथियों के साथ अयोध्या आए मऊ जिले की घोसी तहसील के गौरीडीह गांव निवासी एक कांवड़ यात्री की हनुमानगढ़ी के पास हादसे में मौत हो गई, जबकि उसके साथी कई यात्रियों को भी चोटें आईं.
कहा जाता है कि इस हादसे के पीछे एक कार्यदायी संस्था द्वारा भूमिगत बिजली केबल डाले जाने में बरती गई लापरवाही की भूमिका थी. संस्था द्वारा डाले गए केबल कई जगह खुले हुए थे क्योंकि उनके लिए खोदे गए गड्ढे पाटे ही नहीं गए थे. कुछ लोगों के अनुसार, उक्त कांवड़ यात्री ऐसे ही एक पानी भरे गड्ढे में विद्युत प्रवाहित तार छू जाने से मरा. प्रत्यक्षदर्शी उसके साथियों को उसके पास जाने से रोक न देते तो वे भी विद्युत स्पर्शाघात के शिकार हो जाते और हादसा बड़ा हो जाता. लेकिन पुलिस न इस बात की पुष्टि करती है, न ही उसका कांवड़ यात्री होना स्वीकारती है.
यह और बात है कि बाद में मीडिया में इस आशय की भी खबरें आईं कि हादसे के बाद संबंधित अमले ने अचानक जागकर कई जगह बिजली के खंबों और तारों पर टेप आदि चिपकाकर उनको सुरक्षित बनाने के जतन किए. फिर भी लोगों ने प्रशासन व कार्यदायी संस्था के विरुद्ध आक्रोश जताया और मृतक के घायल यात्री के साथियों ने कसम खाई कि अब वे जीते जी कभी अयोध्या नहीं आएंगे.
अफसोस कि इसके बावजूद यह हादसा भी अंतिम नहीं सिद्ध हुआ. गत बारह अगस्त की देर शाम काम से लौटते वक्त एक धागा कंपनी में काम करने वाला बेगमपुरा का संतोष कुमार उर्फ चप्पू नामक मजदूर अपनी साइकिल समेत रामपथ पर स्थित टेढ़ी बाजार में डक्ट निर्माण के लिए खोदे गए गहरे गड्ढे में जा गिरा. गड्ढे के चारो ओर बैरीकेडिंग, संकेतक अथवा उजाले के अभाव में हुए इस हादसे की तत्काल किसी को भी खबर नहीं हो पाई. संतोष रात भर उसी गड्ढे में पड़ा रहा और सुबह उनका शव निकाला गया. वह अपने परिवार का एकमात्र कमाऊ सदस्य था और काम से लौटकर घर नहीं पहुंचा तो उसके परिजनों ने रात में ही उसे ढूंढ़ना शुरू कर दिया था, मगर वे उस तक पहुंच नहीं सके.
जहां वह गड्ढे में गिरा था, वह क्षेत्र सुरक्षा के लिहाज से संवेदनशील माना जाता और येलो जोन में आता है. वहां कड़े एहतियात का दावा किया जाता है और सीसीटीवी कैमरे भी हैं, लेकिन इनमें से कुछ भी संतोष की जान बचाने में काम नहीं आया. लोगों में इसको लेकर गुस्सा भड़का और उन्होंने प्रदर्शन व नारेबाजी शुरू की तो कार्यदायी संस्था के विरुद्ध लापरवाही बरतने का केस दर्ज किया गया. साथ ही सड़क पर खोदे गए सभी गड्ढों के चारों ओर समुचित बैरीकेडिंग कराने के निर्देश दिए गए.
इन निर्देशों का कितना पालन होगा, कहा नहीं जा सकता, लेकिन समझा जा सकता है कि जब येलो जोन जैसे संवेदनशील क्षेत्र में खासा गहरा गड्ढा बिना बैरीकेडिंग या संकेतक के छोड़ा जा सकता है तो अन्य क्षेत्रों की स्थिति क्या होगी.
अभी जो हालात हैं, उनमें ई-रिक्शों के पलटने, दुपहिया और चार पहिया वाहनों के कीचड़, मिट्टी या धूल में धंसने व फिसलने वगैरह से यात्रियों को चोटें आना इतना आम हो गया है कि उनकी ओर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता. लेकिन समाजवादी जनता पार्टी (चंद्रशेखर) के अयोध्या निवासी प्रदेश अध्यक्ष अशोक श्रीवास्तव कहते हैं कि पथों के चौड़ीकरण की अनियोजित कवायदों ने न सिर्फ अयोध्या की सड़कों को असुरक्षित बना दिया है, बल्कि पेयजल व विद्युत आपूर्ति की व्यवस्था को भी चरमराकर रख दिया है, जिससे नागरिकों के समक्ष ‘न जी पा रहें हैं, न मर’ वाली स्थिति पैदा हो गई है.
ऐसे में आज सबसे मौजूं सवाल यही है कि अयोध्या के लोगों को ‘त्रेता की वापसी’ की अभी कितनी और बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी? लेकिन इसका जवाब नदारद है.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं.)