दिल्ली: आंबेडकर यूनिवर्सिटी के फैकल्टी समूह ने ख़राब व्यवस्थाओं और उत्पीड़न का मुद्दा उठाया

दिल्ली की बीआर आंबेडकर यूनिवर्सिटी के फैकल्टी सदस्यों ने एक बयान जारी करते हुए कहा है कि यूनिवर्सिटी में आवेदन की संख्या लगातार गिरती जा रही है. साथ ही, काम के ख़राब माहौल समेत विभिन्न समस्याओं के चलते साल 2020 से 15 से अधिक फैकल्टी सदस्य इस्तीफ़ा दे चुके हैं.

आंबेडकर यूनिवर्सिटी, दिल्ली. (फोटो साभार: aud.ac.in)

दिल्ली की बीआर आंबेडकर यूनिवर्सिटी के फैकल्टी सदस्यों ने एक बयान जारी करते हुए कहा है कि यूनिवर्सिटी में आवेदन की संख्या लगातार गिरती जा रही है. साथ ही, काम के ख़राब माहौल समेत विभिन्न समस्याओं के चलते साल 2020 से 15 से अधिक फैकल्टी सदस्य इस्तीफ़ा दे चुके हैं.

आंबेडकर यूनिवर्सिटी, दिल्ली. (फोटो साभार: aud.ac.in)

नई दिल्ली: बीआर आंबेडकर यूनिवर्सिटी दिल्ली फैकल्टी एसोसिएशन (एयूडीएफए) ने एक बयान में विश्वविद्यालय में काम के बिगड़ते माहौल, निशाना बनाकर किए जा रहे उत्पीड़न, संवाद ख़त्म होने और जर्जर बुनियादी ढांचे समेत कई मुद्दे उठाए हैं.

रिपोर्ट के अनुसार, 17 अगस्त को जारी इस बयान में आवेदनों की संख्या में हुई बड़ी गिरावट पर चिंता जताते हुए कहा गया, ‘साल 2020 के बाद से यूनिवर्सिटी के स्नातक औरस्नातकोत्तर कोर्स के लिए आवेदन चिंताजनक रूप से कम हो गए हैं. इंटरडिसिप्लिनरी पीजी कार्यक्रम को लगातार 400 से अधिक आवेदन मिला करते थे, जो संख्या अब कुछ दर्जन पर आ गई है. यहां तक कि सबसे लोकप्रिय कार्यक्रमों में भी आवेदकों की संख्या में कमी देखी गई है.’

इसमें कहा गया है कि बाहरी फंडिंग की परियोजनाएं खत्म हो गई हैं. ‘एयूडी फैकल्टी और केंद्र नियमित रूप से प्रतिवर्ष लगभग 5-7 करोड़ रुपये की परियोजनाएं और परामर्श लिया करते थे, आज यह संख्या आज बमुश्किल 1 करोड़ रुपये तक पहुंचती है.’

बयां में यह भी बताया गया है कि साल 2020 से कुछ तजुर्बेकार शिक्षाविदों सहित 15 से अधिक फैकल्टी सदस्यों ने विश्वविद्यालय से इस्तीफा दिया है. कुछ लोग निजी संस्थानों में चले गए हैं, जबकि कुछ अन्य ने काम के चुनौतीपूर्ण माहौल के चलते बिना नई नौकरी के ही यूनिवर्सिटी छोड़ दी.

बयान के अनुसार, फैकल्टी सदस्यों को नियमित रूप से शैक्षणिक कामों के लिए एनओसी (अनापत्ति प्रमाण पत्र) न मिलने, वीजा संबंधी मुद्दों और शैक्षणिक पदों के लिए लंबित अनुमोदन जैसी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. बाहरी प्रोजेक्ट के लिए बोझिल प्रक्रियाओं के कारण कुछ लोग शोध के लिए बाहर से मिलने वाली ग्रांट (अनुदान) के लिए आवेदन करने  भी छोड़ रहे हैं.

इसमें आगे कहा गया है, ‘प्रशासन द्वारा विभिन्न आधार पर फैकल्टी को परेशान किया जाता है. अतीत में भी प्रशासन और/या समितियों द्वारा लिए गए निर्णयों के किसी मकसद से अलग अर्थ निकाले जाते हैं, जिससे फैकल्टी को बिना किसी गलती के दंडात्मक कार्रवाई का सामना करना पड़ता है. इनमें से कुछ कार्रवाइयों में नौकरी जाने और मानसिक तनाव के अलावा संबंधित सदस्यों पर अचानक वित्तीय बोझ भी पड़ा है.’

विश्वविद्यालय में संवाद न होने की ओर इशारा करते हुए सदस्यों ने कहा, ‘विश्वविद्यालय के लिए दीर्घकालिक परिणाम वाले महत्वपूर्ण निर्णयों पर कई हितधारकों के साथ चर्चा नहीं की जाती है. परामर्श और रचनात्मक समीक्षा की आदर्श प्रक्रियाएं को छोड़ दिया गया है.’

बयाना आगे कहता है, ‘एयूडी परिसर जर्जर, गंदा और असुरक्षित इंफ्रास्ट्रक्चर से जूझ रहा है. विद्यार्थी और शिक्षक नियमित रूप से टूटे हुए फर्नीचर, बिजली कटौती, न चल रहे एयर कंडीशनर और पंखे, फंगल, फफूंद, काम न करे रहे शौचालय और पानी भरे कमरों में काम करते हैं. कागजों में बड़े पैमाने पर खर्च के बावजूद वास्तविक स्थितियां बहुत ख़राब हैं.’

एयूडीएफए ने मांग की है कि निम्नलिखित कदम तत्काल उठाए जाएं:

1. फैकल्टी का उत्पीड़न बंद हो; कारण बताओ नोटिस और वसूली तुरंत वापस लिए जाएं.
2. करिअर एडवांसमेंट स्कीम को समयबद्ध और निष्पक्ष तरीके से लागू करें. अनुचित और ग़लत निर्णयों की पुनः जाँच करें और उन्हें वापस लिया जाए.
3. परिसरों को सुरक्षित और आरामदायक बनाने के लिए मौजूदा इंफ्रास्ट्रक्चर की मरम्मत और रेनोवेशन हो.
4. काम के लिए सुविधाजनक और पारस्परिक रूप से सम्मानजनक माहौल बनाने की दिशा में काम हो.
5. परामर्शात्मक प्रक्रियाओं को बहाल करें और निर्णय लेने में फैकल्टी के विभिन्न समूहों को शामिल करें. प्रभावी शैक्षणिक कार्य के लिए स्वायत्तता सुनिश्चित करें.