एक प्रेस बयान में कुकी-ज़ो-हमार विधायकों ने स्पष्ट किया कि बीते 3 मई को राज्य में जातीय हिंसा भड़कने के बाद से मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह के साथ उनकी कोई बातचीत नहीं हुई है. मुख्यमंत्री ने दावा किया था वह कुकी-ज़ो-हमार विधायकों के साथ ‘नियमित’ संपर्क में थे, जो पहाड़ी ज़िलों के लिए अलग प्रशासन की मांग कर रहे हैं.
नई दिल्ली: मणिपुर के 10 आदिवासी विधायकों ने मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह के इस दावे का खंडन किया है कि वह उनके संपर्क में हैं.
शुक्रवार (25 अगस्त) को जारी एक प्रेस बयान में कुकी-ज़ो-हमार विधायकों ने स्पष्ट किया कि बीते 3 मई को राज्य में हिंसा भड़कने के बाद से मुख्यमंत्री के साथ उनकी कोई बातचीत नहीं हुई है.
इससे पहले हिंदुस्तान टाइम्स ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने कहा है कि वह 10 कुकी-ज़ो-हमार विधायकों के साथ ‘नियमित’ संपर्क में थे, जो पहाड़ी जिलों के लिए अलग प्रशासन की मांग कर रहे हैं.
मुख्यमंत्री ने अखबार को बताया था, ‘मैंने विधायकों से कहा है कि मैं उन्हें सुरक्षा प्रदान करूंगा और हमें सामान्य स्थिति बहाल करने के लिए मिलकर काम करना चाहिए. मैंने इंफाल (मेईतेई समूहों) में नागरिक समाज संगठनों से भी बात की है और कहा है कि विधायकों को काम के लिए घाटी (इंफाल) जाने से नहीं रोका जाना चाहिए. विधायकों को तुरंत काम पर लग जाना चाहिए. साथ ही मैं दोहरा दूं कि मणिपुर का कोई विभाजन नहीं हो सकता.’
मुख्यमंत्री के दावों पर प्रतिक्रिया देते हुए 10 आदिवासी विधायकों ने आरोप लगाया कि उनका दावा ‘उनके और कुकी-ज़ो समुदाय के लोगों के बीच अविश्वास के बीज बोने की एक चाल हो सकता है’.
विधायकों ने घोषणा की, ‘सभी 10 कुकी-ज़ो-हमार विधायकों द्वारा यह स्पष्ट किया गया है कि मई 2023 में (मणिपुर में) सांप्रदायिक हिंसा फैलने के बाद से हम मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह के संपर्क में नहीं हैं.’
इस घोषणा पर हस्ताक्षर करने वाले 10 विधायकों में से 7 सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), दो कुकी पीपुल्स अलायंस (केपीए) और एक निदर्लीय विधायक हैं.
इन विधायकों ने राज्य में हिंसा शुरू होने के एक दिन बाद 4 मई को अपने साथी विधायक वुंगज़ागिन वाल्टे पर हुए हिंसक हमले का जिक्र किया. भाजपा विधायक और मुख्यमंत्री के सलाहकार वाल्टे को गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती कराया गया था.
उन्होंने कहा कि वाल्टे पर राज्य की राजधानी इंफाल में उस समय बेरहमी से हमला किया गया, जब वह मुख्यमंत्री के आधिकारिक बंगले पर हुई एक बैठक से लौट रहे थे.
यह आरोप लगाते हुए कि इस मामले में अब तक कोई पूछताछ या गिरफ्तारी नहीं हुई है, आदिवासी विधायकों ने कहा कि वे घाटी में जाकर अपने सहयोगी के जैसे ‘भाग्य’ का ‘सामना’ नहीं करना चाहते हैं.
विधायकों ने कहा, ‘हाल ही में इंफाल कुकी-ज़ो-हमार लोगों के लिए ‘मौत की घाटी’ बन गया है.’
यह कहते हुए कि उनका मुख्यमंत्री के साथ बातचीत का कोई इरादा नहीं है, उन्होंने भारत सरकार के साथ एसओओ समूहों/एनओ-यूपीएफ की राजनीतिक बातचीत के समापन तक अस्थायी उपाय के रूप में पहाड़ी जिलों के लिए एक अलग मुख्य सचिव और पुलिस प्रमुख की अपनी मांग दोहराई.
उन्होंने 16 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सौंपे ज्ञापन में भी यही मांग की थी.
विधायकों ने केंद्र सरकार से राज्य में स्थायी शांति और समाधान बहाल करने के लिए संविधान के दायरे में एक अलग प्रशासन के निर्माण की उनकी ‘वैध मांग’ को स्वीकार करने का भी आग्रह किया.
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